काली मिर्च (Black Pepper Farming) की खेती कैसे करे ?
नमस्कार किसान भाईयों, काली मिर्च को मसालों की रानी कहा जाता है. यह बारहमासी आरोही बेल से प्राप्त होती है. इसकी खेती ज्यादातर दक्षिण भारत के राज्यों में की जाती है.लेकिन छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों के किसान इसकी खेती कर रहे है.आज गाँव किसान (Gaon kisan) अपने इस लेख के द्वारा काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) कैसे करे ? इसकी पूरी जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा.तो आइये जानते है काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) की पूरी जानकारी-
काली मिर्च के फायदे
विश्व के प्रसिध्द मसालों में से काली मिर्च एक है.काली मिर्च का उपयोग सब्जी के मसाले के रूप में हर घर में किया जाता है.काली मिर्च का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है.इसके उपयोग से पाचन, खांसी, कैंसर, कोलेस्ट्रोल, ब्लड सुगर, तथा त्वचा रोगों आदि में लाभ मिलाता है. काली मिर्च में काफी मात्रा में पौष्टिक तत्व पाए जाते है. काली मिर्च में प्रोटीन 10.39 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 63.95 ग्राम, कैल्सियम 443 मिली० ग्रा०, मैग्नीशियम 171 मिली० ग्रा०, फास्फोरस 158 मिली ग्रा०, प्रति 100 ग्राम काली मिर्च में पाए जाते है.
उत्पत्ति एवं क्षेत्र
काली मिर्च की उत्पत्ति दक्षिण भारत को ही माना जाता है. भारत के अलावा इसकी खेती चीन, इंडोनेशिया, बोर्निया, मलय, लंका, स्याम आदि देशों में की जाती है. भारत में असम, महाराष्ट्र, कोच्ची, मालाबार, अंडमान एवं निकोबार द्वीपों में आदि स्थान पर इसकी खेती की जाती है.
जलवायु एवं मृदा
काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) के लिए गर्म एवं नमी वाली जलवायु की जरुरत होती है.इसकी अच्छी वृध्दि के लिए 250 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त होते है.साथ ही इसे कम वर्षा क्षेत्र में भी उगाया जा सकता है.यदि बारिश सही समय पर होती है.जब इसके पौधे 20 दिनों के होते है तो 70 मि० मी० वर्षा की आवश्यकता होती है, जिससे नई पत्तियां एवं पुपन प्रक्रिया अच्छी प्रकार हो सके.लेकिन नई पत्तियों से लेकर फलों के विकास तक इसे नियमित बारिश की आवश्यकता होती है.लम्बी अवधि तक सूखी जलवायु इसकी फसल वृद्धि को नुकसान पहुचाती है.
काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) का पौधा 10 डिग्री सेल्सियस न्यूनतम तथा 40 डिग्री सेल्सियस तक का अधिकतम तापमान सहन करता है.20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान में इसकी अच्छी उपज होती है.इसे समुद्र की सतह से 1200 मीटर ऊंचाई तक उगाया जा सकता है.परन्तु कम ऊंचाई अनुकूलन होती है. काली मिर्च के अच्छे विकास के लिए जैविक तत्वों से उपयुक्त हल्की झराझर एवं सूखी मृदा उपयुक्त होती है.मिट्टी में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिये. जल भराव की स्थिति पौधों के लिए घातक हो सकती है. इसलिए भारी अवसंरचा वाली मिट्टी जहाँ पर जल निकास की पर्याप्त सुविधाएँ नही है वहां पर इसकी खेती से बचना चाहिए.
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स्थान का चयन
काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) के लिए सामान्य ढलान वाले स्थान उपयुक्त होते है.क्योकि यह पर पानी नही रुकता है.ढलान का रूख दक्षिण दिशा की ओर हो, उसी स्थान हो चुनाव करना चाहिए. यह इसलिए जरुरी है क्योकि शिशु पौधों को गर्मी के दिनों में सूर्य की तेज किरणों से बचाव हो सके.काली मिर्च को सुपारी या नारियल के बागानों में उगाया जा सकता है.
मूल पौधे का चयन
नियमित रूप से बढ़िया उपज देने वाले मूल पौधों का चयन करना चाहिए.जिनमें वांछित गुण, जैसे सशक्त वृध्दि, पौधों में गुच्छे की अधिकतम संख्या, लम्बे गुच्छे बेरियों की सघनता, रोग प्ररोधी हो.उन पौधों का चयन करना चाहिए जिनकी उम्र 5 से 12 वर्ष के बीच हो. चयन किये गये पौधों को अक्टूबर से नवम्बर माह तक लगा ले.
जड़युक्त कतरनों को उगाना
काली मिर्च का प्रवर्धन वानस्पतिक रूप से कतरनों से होता है.मुख्य पौधे के मूल में उत्पन्न क्षैतिज तनों का चयन करने के बाद इन्हें एक गोल लपेटकर ऊंचाई पर रखा जाता है.इन्हें फरवरी मार्च के दौरान बेलों से अलग किया जाता है.रनर रूट के बीच का एक तिहाई भाग रोपाई के लिए उपयोग किया जाता है.तने के तरुण व सख्त भागों का उपयोग न करे.तने को 2 से 3 गाँठ के साथ छोटे टुकड़ों में काट ले. यदि पत्तियां हो तो उन्हें तने पर एक छोटी टहनी रखते हुए काट ले. कतरनों को जैव उर्वरकों से उपचारित किया जाता है.इन कतरनों को नर्सरी क्यारियों या पालीथिन बैग या गमलों में रोपित करे.कतरनों को रोपित करने दौरान कम से कम एक गाँठ को मृदा में गाड़ दें. कतरनों को रोपण करने के बाद छाया में रख दे. कतरनों को सूर्य की सीधी धूप से बचाना चाहिए.इसके अलावा नर्सरी में नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर पानी देते रहे.
काली मिर्च (Black Pepper) की रोपाई
काली मिर्च के पौधों की रोपाई अप्रैल से मई में मानसून के पहले शुरू किया जाना चाहिए.रोपाई वाली जगह पर कतरनों को 40 से 50 सेमी० गहरी संकीर्ण छिद्रों में रोपाई कर दे.समतल भूमि में कतरनों के बीच 3 x 3 मीटर तथा ढलानों में कतरनों के बीच की दूरी, ढीली भूमि में चार मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए.लगाने वाली जगह के आस-पास की मिट्टी को अच्छी तरह दबा दे, जिससे पौधे को मजबूती मिल सके.काली मिर्च के रोपण के लिए आश्रयों के उत्तरी ओर 15 सेमी० की दूरी पर गड्ढे बनाये.गड्ढों का आयतन माप 50 घन सेमी० होना चाहिए.इन गड्ढों में कम्पोस्ट खाद या अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद 5 किग्रा० प्रति गड्ढे की दर से डालना चाहिए.कतरनों से उगने वाले भाग को खीचकर आश्रय स्थलों से बांध दिया जाना चाहिए.
रोपाई के बाद का प्रबन्धन
यदि काली मिर्च लगाने वाला स्थान गीला या ढीला और असमतल है तो मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए सीढ़ीदार खेत बनने चाहिए.सुरुवात में काली मिर्च की बेल को आश्रयों से बाँधा देना चाहिए.जब बेल एक साल की हो जाया तो उसकी छंटाई कर देनी चाहिए.जिससे दूसरी अन्य नयी शाखाएं निकल आये और बेल की पकड मजबूत हो.काली मिर्च की बेसिनों में ग्रीष्म कालीन मल्चिंग करना अत्यधिक लाभदायक है.बुरादा, सुपारी की भूसी, तथा सूखी पत्तियां मल्चिंग के लिए उपयुक्त होती है. हर साल मार्च और अप्रैल में आश्रयों की भी कटाई-छंटाई कर दे जिससे अति वृध्दि को रोककर उचित आकार दिया जा सके.
उर्वरक एवं खाद प्रबन्धन
काली मिर्च की अच्छी उपज के लिए नियमित रूप से खाद देना आवश्यक है. काली मिर्च को अप्रैल या मई महीने में 10 किलो प्रति पेड़ गोबर की सड़ी हुई खाद देनी चाहिए. इसके अलावा 210 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सुपर फास्फेट तथा 140 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश भी प्रति पेड़ में डाले.यह तीन सालों तक काली मिर्च की बेलों में डाला जाता है.खाद को दो भागों में अप्रैल-मई तथा सितम्बर-अक्टूबर में दिया जा सकता है.खाद को बेल से 30 सेमी० दूरी पर डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए.
सिंचाई
काली मिर्च की अच्छी उपज के लिए 7 लीटर पानी सूखा दिन की दर से टपक सिंचाई से देना चाहिए.काली मिर्च की बेलों को 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.
खरपतवार प्रबन्धन
खरपतवार नियंत्रण के लिए अवांछित टहनियों को काट देना चाहिए.भूमि की खुदाई से बचना चाहिए.खरपतवारों को काट देना चाहिए और काटे खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए.
कीट एवं रोग प्रबन्धन
काली मिर्च की बेलों को थ्रिप्स, बेधक, पत्ती खाने वाली सूंडीयाँ तथा एफिड जैसे कीट नुकसान पहुंचाते है.तथा कवक जनित रोग तना सड़न इसका प्रमुख रोग है.रोग तथा कीटों से बचाव के लिए पादप स्वच्छता उपायों को अपनाना चाहिए.जिसके तहत कैनोपी में नमी को कम करने के लिए छाँव का विनियमन जिससे संक्रमण की तीव्रता कम हो सकती है. जैव नियंत्रक कीटनाशी जैसे ट्राईकोडर्मा हरजियानम तथा सूडोमोनास फ्लोरसेन्स के उपयोग से रोग तीव्रता कम होती है ट्राईकोडर्मा हरजियानम का उपयोग बेल के मूल में 50 ग्राम प्रति बेल की दर से मानसून के प्रारंभ होने दौरान किया जाना चाहिए.दूसरी बार सितम्बर में किया जाना चाहिए.मानसून की बौछारों के बाद सभी बेलों के 45 से 50 सेमी० के अर्ध ब्यास में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.2 प्रतिशत) 5 से 10 लीटर प्रति बेल की दर से ड्रेचिंग करनी चाहिए.बोर्डों मिश्रण 1 प्रतिशत का पर्णीय छिडकाव करना चाहिए. ड्रेचिंग और छिडकाव दोबारा अक्टूबर माह में फिर से कर सकते है.
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तुड़ाई एवं सुखाना
काली मिर्च की बेलों में फल तीसरे या चौथे वर्ष से लगते है.बेलों में मई जून के दौरान पुष्पन होता है और पुष्पन से पकने तक 6 से 8 महीने का समय लगता है.इसकी दिसम्बर से फरवरी के दौरान कटाई की जाती है.जब गुच्छे पर एक या दो बेरी लाला हो जाय तो पूरे गुच्छे को तोड़ लिया जाता है.दोनों हाथों से गुच्छे को रगड़ कर बेरियों को अलग कर लिए जाता है तथा इन्हें 7 से 10 दिन तक सुखाया जाता है.जब तक परत काली और झुर्रीदार नही हो जाती है.पकी बेरियों से लगभग 33 प्रतिशत काली मिर्च प्राप्त होती है.
उपज
काली मिर्च की लताओं में पूर्ण वहन अवस्था रोपाई के 7वें या 8वें वर्ष में आती है.काली मिर्च के एक हेक्टेयर के बागान से औसतन 800 से 1000 किग्रा० काली मिर्च की उपज प्राप्त होती है.
निष्कर्ष
किसान भाईयों, उम्मीद है गाँव किसान (Gaon kisan) के इस लेख से आप सभी को काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) सम्बंधित सभी जानकारियां मिल पायी होगी.गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा काली मिर्च के फायदे से लेकर उपज तक सभी जानकारियां दी गयी है.फिर भी काली मिर्च की खेती (Black Pepper Farming) सम्बन्धित कोई जानकारी या प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में जाकर पूछ सकते है.इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट करके जरुर बताये.महान कृपा होगी.
आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद. जय हिन्द.