Apple farming in Hindi – सेब की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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Apple farming in Hindi
सेब की खेती (Apple farming in Hindi) कैसे करे ?

सेब की खेती (Apple farming in Hindi) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, सेब की खेती (Apple farming in Hindi) देश के ठन्डे पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है. यह एक स्वास्थ्यवर्धक फल है. बाजार में इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है. किसान भाई इसके बाग़ लगाकर अच्छा लाभ कमा सकते है. इसलिए गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख में सेब की खेती (Apple farming in Hindi) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है सेब की खेती (Apple farming in Hindi) की पूरी जानकारी-

सेब के फायदे 

अंग्रेजी की एक बहुत पुरानी कहावत है “एन एप्पल ए डे, कीप्स डॉक्टर अवे”. इसका मतलब यह है कि अगर आप एक सेब रोजना खाते हो तो आप डॉक्टर से दूर रहोगें. सेब में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है. इसमें विटामिन ए, बी, सी, कैल्शियम, पोटेशियम और एंटीऑक्सीडेंटस आदि उचित मात्रा में पाए जाते है. इसके सेवन से ह्रदय रोग, अल्जाइमर रोग, किडनी स्टोन, इम्यून सिस्टम, आखों की रोशनी आदि को ठीक रहता है. इसमें भरपूर मात्रा में आयरन पाए जाने के कारण यह खून की मात्रा को बढाता है. इसके अलावा सेब के द्वारा जैम, जूस, मुरब्बा आदि प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्माण किया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

सेब का वानस्पतिक नाम मैलस सिल्वेस्ट्रिस (Malus sylvestris linn.) है. यह रोजेसी (Rosaceae) कुल का पौधा है. इसकी उत्पत्ति मध्य एशिया में मानी गयी है. लेकिन बाद में इसको यूरोप में भी उगाया जाने लगा. यही से यह उत्तरी अमेरिका में बेचा जाता है. यूनान और यरोप में इसका काफी धार्मिक महत्त्व है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में कई स्थानों में की जाती है. कश्मीरी सेब पूरे भारत में काफी मशहूर है.

जलवायु एवं भूमि 

सेब की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. इसकी द्रुतशीतन आवश्यकता उत्तर भारत के पर्वतों में 1600 से 2700 मीटर की उंचाई पर हो जाती है. समुचित रूप से वितरित 100 से 150 सेमी० वर्षा वाले क्षेत्र इसकी बागवानी के लिए उत्तम है. फूल आने के समय वर्षा, पाला व हिमपात नही होना चाहिए.

इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से सूखी दोमट मिट्टी जिसकी गहराई 45 सेमी० हो सर्वोत्तम होती है. साथ ही भूमि का पी० एच० मान 5.5 से 6.5 हो तो उचित रहता है. इसके इसके अलावा भूमि में जल निकास का उचित व्यवस्था होनी चाहिए.

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उन्नत किस्में 

  • जम्मू-कश्मीर में सेब की अगेती किस्मों के लिए बिनौनी, आइस्पीक आदि प्रमुख किस्में है.
  • मध्य समय में पकने वाली किस्मों में कॉक्स ओरेंज पीपिन, रेड डेलीशस, ग्रेवेस्टीन आदि प्रमुख किस्में है.
  • देर से पकने वाली मैकइन्टोश, वाल्डिन, अम्बरी, लाल अम्बरी आदि प्रमुख किस्में है.
  • ठन्डे स्थानों हेतु कोर्टलैंड स्पार्टन, मैकइन्टोश आदि प्रमुख किस्में है.
  • घाटी में बुवाई करने हेतु ट्रोपिकल ब्यूटी, वेरेड, अन्ना आदि किस्में है.
  • हिमाचल प्रदेश प्रदेश के लिए अगेती किस्मों में रेडजून, टाइडमेंसअर्ली आदि प्रमुख उन्नत किस्में है.
  • मध्य में पकने वाली किस्मों में रेड स्पर, स्पार्टन, जोनाथन, रेड फ्यूजी आदि प्रमुख किस्में है.
  • पछेती किस्मों में रस पीपिन, ग्रेनी स्मिथ आदि प्रमुख किस्में है.
  • उत्तरांचल के लिये अगेती किस्मों में अर्लीशैनवरी, फैनी, बिनौनी, ग्रीन स्वीट, रेड स्ट्रेकेन, चौबटिया प्रिंसेज, चौबटिया अनुपम आदि प्रमुख किस्में है.
  • मध्य में पकने वाली किंग ऑफ पीपिन, मेकाइन्टोश, जोनाथन, स्पार्टन, रेड डेलीशियस, कोर्टलैंड, रेड फ्यूजी, स्टाकिंग, रेड स्पर आदि प्रमुख किस्में है.
  • पछेती किस्मों में गोल्डन डेलीशस, रायमर, इसोपस स्पीटजनहंग, बकिंघम आदि प्रमुख उन्नत किस्में है.

खेत की तैयारी 

सेब के बाग़ लगाने वाली भूमि की अच्छी तरह साफ़ कर दो तीन बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेते है. जुताई के बाद पाटा जरुर लगाए जिससे भूमि समतल हो जाय.

प्रवर्धन की विधियाँ 

सेब की अच्छी पैदावार के लिए और पौधे की जल्दी वृध्दि के लिए प्रवर्धन विधियाँ अपनानी चाहिए. इसके लिए स्टूल कलम, ढाल चश्मा, जीभी कलम आदि प्रवर्धन विधियाँ अपनानी चाहिए. इसके लिए निम्न मूलवृन्तो का उपयोग करना चाहिए. अति बौने के लिए एम – 27, बौने के लिए एम-8 एम-9, अर्ध बौने के लिए एम-7 एम-26 एम-106, प्रबल एम-11 एम-104 एम-111, अधिकतम प्रबल एम-16 एम-25 एम-109 है. इसके अलावा सेब में बीजू मूलवृंत व ट्रेल के पौधे भी मूलवृंत के रूप में प्रयोग किये जाते है. चश्मा सितम्बर में तथा फरवरी-मार्च में बांधना चाहिए.

पौधा लगाने का समय व दूरी 

सेब के खेती के लिए पौधे लगाने का सबसे उपयुक्त समय जनवरी का महीना होता है. पौधे की रोपाई की दूरी मूलवृन्तों पर निर्भर करती है. बहुत बौने मूलवृन्तों को 1 से 1.5 मीटर, बौने मूलवृन्तों को 2 से 2.5 मीटर, अर्ध बौनों को 3 से 4 मीटर, प्रबल को 4 से 6 मीटर और अधिकतम प्रबल को 6 से 8 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए.

पौधा लगाने से पहले किस्म के अनुसार खेत का रेखांकन कर लेना चाहिए. पौधे से पौधे की बीच की दूरी सेब की किस्म के ऊपर निर्भर होती है. सामान्य रूप से यह दूरी 5 x 5 मीटर की दूरी रखी जाती है. पौधे लगाने की जगह निर्धारित करने के पश्चात गड्ढों की खुदाई कर ली जाती है. गड्ढे का आकार भूमि के अनुसार रखा जाता है. उपजाऊ भूमि में 2.5 x 2.5 x 2.5 फीट और कम पौषक भूमि में 1.0 x 1.0 x 1.0 मीटर रखनी चाहिए. गड्ढों की खुदाई पौधे लगाने के एक महीने पहले कर लेना चाहिए. इसमें गोबर की सड़ी हुई खाद और मिट्टी बराबर मात्रा में मिलाकर भर देते है और पानी से सिंचाई कर देते है. जिससे मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए.

इसके बाद पौधों को लगाकर मिट्टी को अच्छी तरह दबाकर थाला बना देना चाहिए. और पौधे की हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए.

सिंचाई 

सिंचाई की संख्या स्थान विशेष की नमी पर निर्भर करती है. पलवार के प्रयोग से सिंचाई की संख्या घटाई जा सकती है. पलवार को सूखे मौसम के बाद हटा देना चाहिए. गर्मी के दिनों में 7 से 8 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. इसके अलावा आवश्यकता अनुसार भी सिंचाई करे.

खाद एवं उर्वरक 

सेब के पौधों के अच्छी वृध्दि एवं उपज के लिए 10 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 1 किलोग्राम नीम की खली, नाइट्रोजन 25 ग्राम, फ़ॉस्फोरस 20 ग्राम तथा पोटाश 25 ग्राम प्रति पेड़ प्रति वर्ष आयु के हिसाब से प्रबल मूलवृन्तों वाले पेड़ों को 15 वर्ष तक तथा बौने मूलवृन्तों वाले पेड़ों को 8 वर्ष की आयु तक बढ़ाकर देना चाहिए. इसके बाद यह मात्रा स्थिर कर देनी चाहिए. इसके अतरिक्त बोरिक अम्ल 0.4 प्रतिशत के दो छिड़काव, पहला पंखुड़ी गिरने पर और दूसरा एक माह बाद करना चाहिए. जिंक सल्फेट का 0.5 प्रतिशत का छिड़काव भी लाभकारी होता है. फ़ॉस्फोरस की पूरी मात्रा और पोटाश की आधी मात्रा फरवरी के दुसरे सप्ताह में तथा पोटाश की शेष मात्रा अप्रैल में देनी चाहिए. नाइट्रोजन की मात्रा का 3/5 भाग फरवरी के मध्यम में, 1/5 भाग अक्टूबर में देना चाहिए. खादों को पेड़ के फैलाव में छिटक कर मिट्टी में मिला देना चाहिए.

सधाई एवं काट-छांट 

सेब के पौधों की सधाई रूपांतरित अग्र प्ररोह विधि से करना चाहिए. रोगी, कीटयुक्त अवांछनीय शाखों व पुराने दलपुटों को निकलना चाहिए. बौने मूलवृन्तों से तैयार पौधों को सधाई कार्डन या छोटी झाड़ी विधि से करते है.

फूल एवं फल आने का समय 

सेब के पौधे में फूल आने का समय अप्रैल माह में होता है. साथ ही पंखुड़ी गिरने के 70 से 80 दिन के भीतर फल पकने लगते है. किस्मों व स्थान विशेष की जलवायु के अनुसार जून से नवम्बर तक फल तैयार होते है.

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फलों की तुड़ाई 

सेब के फलों की तुड़ाई फलों की परिपक्वता की जाँच, छिलके का रंग, कठोरता का परीक्षण, फल का आकार आदि के परिक्षण करने के बाद ही करना चाहिए.

उपज 

सेब की उपज किस्म, भूमि, स्थान विशेष व उपर्युक्त की गयी कृषि क्रियाओं पर निर्भर होती है. फिर भी एक पूर्ण विकसित सेब के पेड़ से 100 से 180 किलोग्राम फल प्राप्त हो जाते है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon kisan) के सेब की खेती (Apple farming in Hindi) से सम्बन्धित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा सेब के फायदे से लेकर सेब की उपज तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी सेब की खेती (Apple farming in Hindi) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते हो. इसके अलावा गाँव किसान (Gaon kisan) का यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये, महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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