Alove vera farming – ग्वारपाठा की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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Alove vera farming
ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) की पूरी जानकारी

ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) की पूरी जानकारी

नमस्कार किसान भाईयों, ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) एक औषधीय पौधे के रूप में की जाती है. इसकी खेती पूरे भारत में की जा सकती है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ ले सकते है. इसलिए गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख में ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) की पूरी जानकारी –

ग्वारपाठा के फायदे

ग्वारपाठा में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते है. इसके पत्तों में 94 प्रतिशत पानी एवं 6 प्रतिशत एमीनों अम्ल (20 प्रकार के) एवं कार्बोहाइड्रेट पाए जाते है. इसके पत्तों में एलोइन नामक ग्लूकोसाइड समूह होता है. इसके अतरिक्त बारबेलाइन, बी-बारबेलाइन, आइसो बारबेलाइन तत्व उपस्थित होते है. साथ ही इसमें एलो-इमोलीन, रॉल, गैलिक अम्ल एवं सुगन्धित तेल होते है.

इसमें में कई औषधीय गुण पाए जाते है. जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार में आयुर्वेदिक एवं यूनानी पद्यतियों में प्रयोग किया जाता है. ग्वारपाठा मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है. साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है. माना जाता है. कि सकारात्मक प्रभव इसमें उपस्थित मन्नास, एन्थ्राक्युइनोंनेज और लिक्टिन जैसे यौगिको के कारण होता है. इसके अलावा ग्वारपाठा और मशरूम के कैप्सूल बनाए जा रहे है. जो एड्स रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होते है. यह खून को साफ़ करता है. इसके सेवन से मानव स्वास्थ्य को निम्न फायदे है-

  • यह एंटी इनफलोंमेंट्री और एंटीएलर्जिक है तथा बिना इसके किसी साइड इफेक्ट्स के सूजन और दर्द को मिटाता है, एवं एलर्जी से उत्पन्न रोगों को दूर करता है.
  • ये पेट के हाजमें के लिए लाभदायक है. ग्वारपाठा को नियमित रूप से प्रयोग करने पर पेट में उत्पन्न विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर किया जा सकता है. जैसे कि गैस का बनना, पेट का दर्द आदि.
  • इससे शरीर में सूक्ष्म कीटाणु, बैक्टीरिया, वायरस एवं कवक जनित रोगों से लड़ने में एंटीबायोटिक के रूप में काम करता है.
  • यह शरीर में उत्पन्न जख्मों को भरने में अत्यंत लाभकारी है. मधुमेह के रोगियों के जख्म भरने में भी कारगर सिध्द हुआ है.
  • इससे ह्रदय के कार्य करने की क्षमता को बढ़ता है. एवं उसे मजबूती प्रदान करता है. एवं शरीर में ताकत एवं स्फूर्ति लाता है.
  • यह शरीर में यकृत एवं गुर्दा के कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने में मदद करता है. एवं शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकलता है.
  • ग्वारपाठा मानव शरीर में पाए जाने वाले 22 एमीनों अम्लों में से 20 एमीनों अम्ल पाए जाते है. इसकी उपस्थिति में शरीर में सेल्स एवं टिशूज बनते है. इसमें एन्जायामस होते है. जो कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन को पेट एवं आँतों में शोषण करने की क्षमता को बढाते है.
  • इसकी जैल प्राकृतिक रूप से त्वचा को नमी पहुंचती है. एवं उसे साफ़ करने में उपयोग में लाई जाती है.
  • यह एग्जीमा, कीटाणु के काटने के स्थान पर किसी भी प्रकार के कट लगने, जलने के स्थान पर, चुभने वाली तापमान की गर्मी, मुहांसे, हामोरिया, छालरोग, चोट लगने गुमटा बन जाना आदि में लाभ मिलता है.
  • जैल बालों में डेन्ड्रफ को दूर करने तथा बालों को झड़ने से रोकती है.
  • इसकों पेट की बामारियों एवं अपच में कम लिया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

ग्वारपाठा का वानस्पतिक नाम एलोवेरा बारबन्ड सिस है. जो कि लिलिऐसी परिवार का सदस्य है. इसका उत्पत्ति का स्थान उत्तरी अफ्रीका माना जाता है. विश्व में यह यूरोप, उत्तरी अमेरिका, स्पेन, थाईलैंड, चीन, वेस्टइंडीज, भारत आदि देशों में पाया जाता है. भारत के यह सभी राज्यों में उगाया जाता है.

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जलवायु एवं भूमि 

ग्वारपाठा की खेती उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक की जा सकती है. कम वर्षा तथा अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है.

इसकी खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है. इसे चट्टानी, पथरीली, रेतीली आदि भूमि में भी उगाया जा सकता है.लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है. भूमि का पी० एच० मान 6.5 से 8 के मध्य होना चाहिए. जलभराव वाली भूमि में इसे नही उगाया जा सकता है.

बीज उत्पादन (Alove vera farming)

ग्वारपाठे की पौध रोपण सामग्री तैयार करने के लिए अलग से कोई व्यवस्था करने की आवश्यकता नही होती है. परन्तु जिस खेत से फसल ली गयी है. वही इसकी जड़े स्वतः ही नए पौधे निकलते रहते है. जिनकों प्रत्येक छः महीने के अंतराल पर निकालते रहना चाहिए एवं इनको दूसरी फसल बुवाई में काम ले सकते है.इस प्रकार एक हेक्टेयर फसल से प्रतिवर्ष लगभग 25000 नए पौधे तैयार हो जाते है.

खेत की तैयारी व रोपण 

गर्मी के मौसम में खेत की अच्छी प्रकार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेते है. इसके अलावा जल निकास के लिए नालियाँ भी बना लेना चाहिए. तथा वर्षा ऋतु में उपयुक्त नमी की अवस्था में इसके पौधों को 50-50 सेमी० की दूरी पर मेढ़ अथवा समतल खेत में लगाया जाता है. कम उर्वरक भूमि में पौधों के बीच की दूरी को 40 सेमी० रख सकते है. जिससे प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या लगभग 40,000 से 50,000 की आवश्यकता होती है. इसकी रोपाई जून-जुलाई माह में की जाती है. परन्तु सिंचित दशाओं में इसकी रोपाई फरवरी में में भी की जा सकती है.

निराई-गुड़ाई (Alove vera farming) 

ग्वारपाठे की शुरुवाती अवस्थाओं में इसकी बढवार की गति धीमी होती है. अतः शुरुवाती तीन महीने में 2 से 3 बार गुड़ाई-निराई की आवश्यकता होती है. क्योकि इस काल में विभिन्न खरपतवार तेजी से वृध्दि कर ग्वारपाठे की वृध्दि एवं विकास पर विपरीत असर डालते है. आठ माह बाद पौधे पर मिट्टी चढ़ाएं जिससे वे गिरे नही.

खाद एवं उर्वरक 

सामान्यतः ग्वारपाठे की फसल को विशेष खाद अथवा उर्वरक की आवश्यकता नही होती है. परन्तु इसकी अच्छी बढ़वार एवं उपज के लिए 10 से 15 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को अंतिम जुताई के समय खेत में डालकर मिला देना चाहिए. इसके अलावा 50 किग्रा० नत्रजन, 25 किग्रा० फास्फोरस एवं 25 किग्रा० पोटाश तत्व देना चाहिए. जिसमें से नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय तथा शेष नत्रजन की मात्रा का दो माह पश्चात दो भागों में देनी चाहिए अथवा नत्रजन की शेष मात्रा का दो बार छिड़काव भी कर सकते है.

सिंचाई (Alove vera farming) 

ग्वारपाठा असिंचित दशा में उगाया जा सकता है. परन्तु सिंचित अवस्था में उपज में काफी वृध्दि होती है. ग्रीष्मकाल में 20 से 25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना उचित रहता है. सिंचाई जल की बचत करके एवं अधिक उपयोग करके के लिए स्प्रिन्कलर या ड्रिप विधि का उपयोग कर सकते है.

अंतरवर्ती फसले (Alove vera farming)

ग्वारपाठे की खेती अन्य फल वृक्ष, औषधीय वृक्ष या वन में रोपित पेड़ों के बीच में सफलता पूर्वक की जा सकती है.

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कटाई एवं उपज  

इस फसल की उत्पादन क्षमता बहुत अधिक होती है. इसमें कोई रोग एवं कीट का प्रकोप नही होता है. फसल की रोपाई के एक वर्ष बाद पत्तियां कटाने लायक हो जाती है. इसके बाद दो माह के अंतराल से परिपक्व पत्तियो को काटते रहना चाहिए.

सिंचित क्षेत्र में प्रथम वर्ष में 35 से 40 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है. तथा दूसरे वर्ष इसका उत्पादन 10 से 15 फीसदी तक बढ़ जाता है. उचित देखरेख एवं समुचित प्रबन्धन करने से इसकी लगातार तीन वर्षों तक उपज ली जा सकती है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon kisan) के ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारी मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon kisan) के द्वारा ग्वारपाठा के फायदे से लेकर ग्वारपाठा की उपज तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी ग्वारपाठा की खेती (Alove vera farming) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान (Gaon kisan) का यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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