आलू की खेती की फसल के प्रमुख रोग और उनका प्रबन्धन
आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है. क्योकि यह सब्जियों की मुख्य फसल है. देश के ज्यादातर राज्यों के किसान आलू की खेती प्रमुख फसल के रूप करते है. जिससे उन्हें लाखों रूपये का फायदा हर वर्ष होता है. लेकिन कभी-कभी उन्हें इसकी खेती में लगने वाले रोगों और बीमारियों के कारण घाटा भी उठाना पड़ता है. क्योकि आलू की फसल में लगाने वाले रोग इसकी फसल को नुकसान पहुंचाते है. जिससे इसकी पैदावार कम हो जाती है.
देश के ज्यादातर किसानों को इसकी फसल में लगने वाले रोगों के कारण 60 से 70 प्रतिशत तक का नुकसान उठाना पड़ता है. इसी लिए गाँव किसान के इस लेख में किसान भाई को इस तरह के नुकसान से बचाने के लिए आलू के प्रमुख रोगों और उनके उचित प्रबंधन की जानकारी दी जायेगी. जिससे किसान भाई अपनी आलू की फसल को इन रोगों से बचाकर अच्छा मुनाफा कमा सके. तो आइये जानते है आलू के प्रमुख रोगों के प्रबंधन के बारे में –
आलू का अगेती अंगमारी या अर्ली ब्लाइट रोग
आलू की फसल का यह रोग एक फफूंद के कारन होता है. इसका प्रमुख लक्षण पौधे की पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे जो पूरी तरह से बिखरे हुए होते है. जो कि अनुकूल मौसम के कारण पौधे की पत्तियों पर फैल जाता है. जिसके कारण इस पत्तियां नष्ट हो जाती है. इस बीमारी का असर आलू में भी दिखाई पड़ती है. इस पर पड़े यह भूरे रंग के धब्बे पूरे आलू पर फैल जाते है. जिससे वह खाने के योग्य नही रहा जाता है.
रोग का प्रबन्धन
किसान भाई आलू के कंदो को बुवाई से पहले एगेलाल के 0.1 प्रतिशत घोल में 2 मिनट तक डुबाकर उपचारित कर बोना चाहिए. इसके अलावा किसान भाई आलू की रोग प्रति रोधक किस्में जैसे कुफरी जीवन, कुफरी सिन्दूरी आदि की बुवाई करनी चाहिए. साथ ही फाइटोलान, ब्लिटाक्स-50 का 0.3 प्रतिशत 12 से 15 दिन के अंतराल में 3 बार पौधों पर छिडकाव करे.
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आलू की फसल का पछेती अंगमारी रोग
आलू की फसल का यह रोग भी फफूंद लगने के कारण होता है. इसके लक्षणों की बात करे तो इसमें भी रोग का असर नीचे की पत्तियों पर हल्के हरे रंग के धब्बे बन जाते है. जो बाद में भूरे रंग के हो जाते है. इन बने धब्बों का आकार अनियमित होता है. यह रोग भी मौसम की अनुकूलता पाने पर तेजी से फैलता है. और पौधे की सभी पत्तियों को नष्ट कर देता है. इस रोग की पहचान पत्तियों के किनारे और छोटी भाग का भूरा होकर झुलसा दिखाई पड़ता है. रोग की अधिकता होने से इसका असर कंदो पर दिखाई पड़ता है. और इसके कंदो में विगलन दिखाई पड़ता है.
रोग का प्रबंध
इस रोग के प्रबन्धन के लिए किसान भाई बुवाई के पहले ही खोद के निकाले गए रोगी कंदों को जलाकर नष्ट करना उचित रहता है. इसके अलावा किसान भाई आलू की बुवाई के लिए प्रमाणित बीजों का उपयोग करना चाहिए. साथ ही किसान भाई रोग प्रति रोधी किस्मों का चयन करे इन किस्मों में कुफरी अलंकार, कुफरी खसी गोरी, कुफरी ज्योती आदि किस्में आती है. रोग का अधिक प्रकोप होने पर बोडों मिश्रण 4:4:50,कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का 0.3 प्रतिशत का छिडकाव 12 से 15 दिन के अंतराल में तीन बार करना फायदेमंद साबित होता है.
आलू का काला मस्सा रोग
आलू की फसल में यह रोग फफूंद के कारन फैलाता है. जो बाद में इसके कंदों को प्रभावित करता है. यह आलू के कंदों पर भूरे या काले रंग के मस्सों की उभार की तरह दिखाई पड़ता है. जिसके कारण यह आलू खाने के लायक नही बचाता है.
रोग का प्रबंध
किसान भाई इस रोग से बचाव के लिए लिए प्रमाणित किस्मों के बीजों का उपयोग बुवाई में करे.इसके अलावा रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करके ही बुवाई करे. साथ ही पूर्व में खोदे गए रोग प्रभावित कंदों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए.
आलू की फसल में स्कैब रोग
आलू का स्कैब रोग एक फफूंद जनक रोग है. इस का सर उपज के कंदों पर भी दिखाई पड़ता है. जो कि हल्के भूरे रंग के फोड़े के समान स्केब की तरह दिखाई पड़ते है. जो कि कंदों पर उभरे और गहरे स्केब दिखाई पड़ते है. इन फोड़े के कारण कन्द ख़राब हो जाता है और खाने लायक नही रहता है.
रोग का प्रबंधन
किसान भाई इसके बचाव के लिए प्रमाणित बीजों का उपयोग किया जाना चाहिए. इसके रोगी कंदों को भी जलाकर नष्ट करना रोग से बचाव के लिए लाभकारी होता है. वही रोग के प्रकोप से बचने के लिए बीज को आरगेनोमरक्यूरीयल जैसे एगालाल के 0.25 प्रतिशत घोल में 5 मिनट तक उपचरित करना लाभकारी होता है.
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आलू की फसल का ब्लैक स्कर्फ रोग
आलू के पौधों में ब्लैक स्कर्फ रोग का प्रभाव राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंद के करण फैलता है. यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में हो सकता है. लेकिन यह रोग मौसम में अधिक तापमान और आर्द्रता होने पर अधिक होता है. इस रोग से प्रभावित पौधों पर काले उठे हुए धब्बे दिखाई पड़ते है. रोग अधिक बढ़ने पर कंदों को भी प्रभावित करता है जिसके कारण कन्द खाने योग्य नही रह जाता है.
रोग का प्रबन्धन
किसान भाई रोग से बचाव के लिए प्रमाणित बीज की बुवाई करे. रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करके बुवाई करना चाहिए. रोगी पौधों को उखड कर नष्ट कर देना चाहिए.
किसान भाई अपने आलू के फसल को रोगों से बचाव के लिए कृषि विशेषज्ञों या नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में भी सम्पर्क कर जानकारी ले सकते है.