Aloe vera farming in india | देश के किसान एलोवीरा की खेती कर कमाए लाखों

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Aloe vera farming in india
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Aloe vera farming in india | देश के किसान घृतकुमारी की खेती कर कमाए लाखों

घृतकुमारी (Aloe vera) एक औषधीय पौधा है. देश में इसकी खेती कई राज्यों में की जाती है. क्योकि बाजार में इसकी कीमत काफी अच्छी प्राप्त होती है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है.

इसलिए गाँव किसान आज अपने इस लेख में घृतकुमारी की खेती (Aloe vera farming in india) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपनी भाषा हिंदी में (Aloe vera farming in hindi). जिससे किसान भाई इसकी खेती कर इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है घृतकुमारी की खेती (Aloe vera farming in india) की पूरी जानकारी-

घृतकुमारी की खेती की विशेषताएं (Features of aloe vera cultivation)

  • किसान भाई इसकी खेती बेकार पड़ी भूमि एवं असिंचित भूमि में बिना किसी विशेष खर्च के इसकी खेती कर मुनाफा कमाया जा सकता है.
  • इसकी खेती में लगत कम ही लगती है. इसमें खाद, कीटनाशक व सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नही होती है.
  • इसमें जानवरों से भी नुकसान का डर नही रहता है. क्योकि जानवर इसको खाते नही है. बस इसको जानवरों से कुचलने से बचाना होता है. क्योकि कुचलने से इसके खर बर्बाद हो सकते है.
  • एक बार लगने से इसकी फसल कई सालों तक पर्याप्त आमदनी देती है.

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घृतकुमारी के फायदे (Benefits of aloe vera)

आयुर्वेद के अनुसार घृतकुमारी के कई फायदे है. यह कडुवा, शीतल, रेचक, धातु परिवर्तक, मज्जावर्धक, कामोदीपक, कृमिनाशक और विषनाशक होता है.

इसके अलावा यह नेत्र रोग, तिल्ली की वृध्दि, यकृत रोग, यमन, ज्वर, खांसी, विसर्ग, चर्म रोग, पित्त, स्वास, कुष्ठ पीलिया, पथरी और व्रण आदि रोगों में फायदेमंद साबित हुआ है.

घृतकुमारी से आयुर्वेद की दवाये घृतकुमारी अचार, कुमारी आसव, कुवारी पाक, चातुवर्गभस्म, मंजी स्याडी तेल आदि बनाई जाती है.

घृतकुमारी के क्षेत्र एवं विस्तार (Aloe vera scope and scope)

घृतकुमारी मुख्य रूप से फ्लोरिडा, वेस्टइंडीज, मध्य अमेरिका तथा एशिया महाद्वीप में पाया जाता है. यह लिलीएसी कुल का बहुवर्षीय मांसल पौधा है. इसे ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है. देश में यह विदेश से लाया गया था. लेकिन अब यह पूरे भारत में खासकर शुष्क इलाकों में जंगली पौधों के रूप में पाया जाता है.

आज देश में इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा हरियाणा के शुष्क इलाकों में की जाती है.

जलवायु एवं भूमि (Climate and land)

घृतकुमारी की खेती के लिए गर्म आर्द्र से शुष्क व उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है.

घृतकुमारी की खेती सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है. परन्तु इस बात का ध्यान रखे कि खेती की जाने वाली भूमि उंचाई होनी चाहिए. फसल लगाने से पहले खेत की अच्छी प्रकार गहरी जुताई करनी चहिये.

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भूमि की तैयारी एवं खाद (Land preparation and composting)

फसल लगाने से पहले खेत की तैयारी आवश्यक है. इसके लिए बरसात से पहले खेत की एक दो जुताई 20 से 30 सेमी० गहराई तक करनी चाहिए.

जुताई के उपरान्त 10 से 15 टन गोबर की खाद अंतिम जुताई से पहले खेत की मिट्टी में बिखेर कर मिला देना चाहिए.

बुवाई का उचित समय (Right time of sowing)

घृतकुमारी को लगाने का उचित समय जुलाई और अगस्त है. लेकिन जाड़ों का मौसम छोड़कर पूरे साल इसकी खेती की जा सकती है.

बीज की मात्रा (Seed quantity)

घृतकुमारी की बिजाई के लिए 6″ से 8″ के पौधों द्वारा की जाती है. इसकी बिजाई 3 से 4 महीने पुराने चार-पांच पत्तों वाले कंदों के द्वारा की जाती है.

एक एकड़ की बिजाई के लिए करीब 5000 से 10000 कंदों/सकर्स की आवश्यकता पड़ती है. बिजाई वाले पौधों की आवश्यकता भूमि की उर्वरकता तथा पौधे से पौधे की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी पर निर्भर करता है.

बीज प्राप्ति का स्थान (Seeding site)

एलोइन तथा जेल उत्पादन की द्रष्टि से नेशनल ब्यूरो ऑफ़ प्लांट जेनेटिक सोर्सेस द्वारा घृतकुमारी की कई किस्में विकसित की गयी है.

लखनऊ के सीमैप द्वारा अंकचा एवं ए० एल० उन्नति प्रजातियाँ विकसित की गयी है. वाणिज्यिक खेती के लिए जिन किसानों ने पूर्व में ग्वारपाठा की खेती की हो तथा जूस एवं जेल आदि का उत्पादन में पत्तियों का व्यवहार कर रहे हो, संपर्क करना चाहिए.

रोपण की विधि (Method of planting)

घृतकुमारी की बुवाई के लिए खेत में खूड (रिरेज एंड फरोज) बनाया जाता है. एक मीटर में इसकी दो लाइन लगानी चाहिए तथा फिर एक मीटर जगह छोड़कर पुनः एक मीटर में दो लाइने लगानी चाहिए. यह एक मीटर की दूरी घृतकुमारी को काटने, निकाई-गुड़ाई करने में सुविधाजनक रहता है.

पुराने पौधे के पास से छोटे पौधे निकालने के बाद पौधे के चारों ओर जमीन की अच्छी तरफ दबा देना चाहिए. खेत में पुराने पौधों से वर्षा ऋतु में कुछ छोटे पौधे निकलने लगते है. इनकों जड़ सहित निकालकर खेत में पौधरोपण के लिए काम में लिया जा सकता है. नए फल बाग़ में अंतरवर्ती फसल के लिए घृतकुमारी की खेती उपयुक्त होती है.

सिंचाई (Irrigation)

पौधों की बिजाई के उपरांत तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. इसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए. समय-समय पर सिंचाई से पत्तों में जेल की मात्रा बढ़ जाती है.

निराई एवं गुड़ाई (Weeding and hoeing)

फसल की बिजाई के एक महीने बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. 2 से 3 गुड़ाई प्रति वर्ष बाद में करनी चाहिए. तथा समय-समय पर खरपतवार निकलते रहना चाहिए.

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फसल की कटाई (Harvest harvest)

इसकी फसल में किसी प्रकार की बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप नही होता है. लेकिन कभी-कभी फसल पर दीमक का प्रकोप हो जाता है.

पौधा लगाने के एक वर्ष बाद में परिपक्व होने के बाद निचली तीन पत्तियों को तेज धारदार हांसिये से काट लिया जाता है. पत्ता काटने की यह क्रिया प्रत्येक तीन-चार महीने पर किया जाता है.

उपज (Yield) 

घृतकुमारी का एक एकड़ में हर वर्ष 20,000 किग्रा० उत्पादन हो जाता है.

बाजार भाव एवं बिक्री (Market price and sales) 

बाजार में वर्तमान समय में घृतकुमारी की ताजा पत्ती लगभग 2 से 5 रुपये प्रति किग्रा० रहती है. इसके ताजे पत्तों को आयुर्वेदिक दवाइयाँ बनाने वाले कम्पनियाँ तथा प्रसाधन सामग्री निर्माताओं को बेच सकते हो. इसके पत्तों से मुसब्बर अथवा एलोवासर बनाकर भी बेच सकते है.

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