अफीम की फसल खराब होने के कारण, साथ ही साथ बचाए बचाव के उपाय
देश के कई राज्यों में अफीम की खेती की जाती है.जिससे किसानों को अच्छी आमदनी होती है. लेकिन राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के कुछ स्थानों से इनके खराब होने की सूचना आ रही है. जिसके कारण चित्तौड़गढ़ जिले के कृषि (विस्तार) अधिकारियों वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम ने पंचायत समिति भदेसर के सोनियाणा, रेवलिया कला, दौलतपुरा, सुरपुर, पीपलवास, मुरलिया आदि गांवों जाकर अफीम की खराब हो रही फसल की जांच करके यह पाया है. कि इन फसलों में अधिक रसायन के इस्तेमाल से इसकी फसल खराब हुई है.
इसलिए उपनिदेशक कृषि आय पीएम ओम प्रकाश शर्मा द्वारा बताया गया की अफीम एक नकदी फसल होने के कारण किसानों में यह भ्रांति है कि वह ज्यादा रसायनों का प्रयोग करके अफीम की फसल में दूध की मात्रा को बढ़ा देंगे. इसके लिए वह बिना किसी जानकारी के अफीम की फसलों पर अत्यधिक रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनों एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते रहते हैं जो कि इसकी फसल के लिए काफी हानिकारक साबित होता है. इसीलिए विभाग द्वारा किसानों को रासायनिक कीटनाशक रसायनों का छिड़काव करने से पहले अपने क्षेत्र में कार्यरत कृषि कर्मियों से संपर्क करने की सलाह दी गयी है.
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किसानों को कृषि अधिकारी एवं वैज्ञानिकों ने दी ये जानकारी
कृषि खण्ड भीलवाडा एवं कृषि महाविद्यालय भीलवाड़ा के पूर्व डीन डॉ. किशन जीनगर द्वारा बताया गया कि कृषकों ने पौधो की बढ़वार के लिए जिब्रेलिक एसिटिक एसिड एवं नेफथेलिन एसिटिक एसिड का बिना सलाह के उपयोग किया गया जो कि अफीम की फसल के लिए काफी घातक सिद्ध हुआ हैं. किसानों से वार्ता करने के पश्चात् भ्रमण दल के संज्ञान में आया कि निम्बाहेडा में स्थित ई-किसान आदान विक्रेता द्वारा क्षेत्र के कई किसानों को गुमराह करते हुए अफीम की फसल में दूध की मात्रा बढ़ने एवं अफीम फसल अच्छी होने की बात कहते हुए अत्यधिक मात्रा में पौध बढ़वार रसायनों का उपयोग करने हेतु विक्रय किया गया.
इसलिए अतिरिक्त निदेशक कृषि (विस्तार) भीलवाड़ा कार्यालय के दिलीप सिंह, सहायक निदेशक (पौध संरक्षण) द्वारा बताया गया कि कृषि आदान लेते समय विक्रेता से पक्का बिल अवश्य ले. जिससे फसल खराब होने की स्थिति में कृषि आदान विक्रेता पर नियमानुसार कार्यवाही की जा सके.
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अफ़ीम में होने वाले रोग एवं उसके उपचार
बारनी कृषि अनुसंधान केन्द्र आरजिया भीलवाडा के पौध व्याधि वैज्ञानिक डॉ. ललित छाता ने बताया कि अफीम फसल मुख्य रूप में डाउनी मिल्ड्यू (काली मस्सी) पाउडरी मिल्ड्यू, जड गलन, डोडा सडन एवं तना सडन आदि रोग आते है तथा समय पर पता लगने पर इनका उपचार संभव है. डॉ. छाता ने जड गलन, तना सडन एवं डाउनी मिल्ड्यू (काली मस्सी) के प्रकोप होने पर रिडोमिल एम जेड तथा डोडा लट एवं अन्य कीट आने का स्थिति में प्रोफेनोफॉस या मोनोक्रोटोफॉस आदि का छिड़काव कृषि कर्मियों से सलाह लेकर किया जा सकता हैं.