नंदी घास – पशुओं के लिए एक बहुवर्षी हरा चारा घास

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नंदी घास
नंदी घास - एक बहुवर्षी चारा घास

नंदी घास – एक बहुवर्षी चारा घास

नमस्कार किसान भाईयों, नंदी घास एक बहुवर्षी चारा घास है. जिसकों प्रकन्द से या प्रकन्द के बिना उगाई जा सकती है. इसे उगाकर किसी भी स्थान पर खरपतवार की संख्या को कम किया जा सकता है. यह अधिक पानी एवं बाढ़ वाले स्थानों एवं पहाड़ी भागों में भी उगाई जा सकती है. इस घास को फलीदार फसलों के साथ भी अच्छी प्रकार उगाया जा सकता है. आज गाँव किसान (Gaon Kisan) अपने इस लेख में नंदी घास की पूरी जानकारी देगा.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

नंदी घास का वानस्पतिक नाम सिटेरिया स्फेसेलेटा (Setaria sphacelata) है. कुछ विद्वानों के अनुसार इसका उत्पत्ति स्थान भारत माना जाता है. परन्तु कुछ दूसरे वैज्ञानिक इसका उत्पत्ति स्थान अफ्रीका मानते है. जहाँ से यह घास सन 1950 में भारत लाकर भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली में उगाई गयी.

यह घास भारत में मैदानी एवं पहाड़ी भागों में उगाई जाती है. इसे उन सभी स्थानों पर उगाया जा सकता है. जहाँ मिट्टी हल्की हो. यह घास उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान के कुछ भागों, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा अन्य स्थानों पर उगाई जाती है.

जलवायु एवं भूमि 

यह घास प्रायः उष्ण जलवायु में उगाई जाती है. इसके लिए उष्ण और आर्द्र जलवायु चाहिए. यह अधिक समय तक सूखे की स्थिति को नही सहन कर सकती है.ऐसे समय में इसमें सिंचाई करना आवश्यक है. पाले की दशा में इसकी वृध्दि रुक जाती है. या इसके पौधे बिलकुल मर जाते है. अच्छी जलवायु में यह फसल समुद्र तट से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई तक उगाई जा सकती है.

नंदी घास सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है. लेकिन हल्की मिट्टी में अच्छी तरह उगाई जा सकती है.

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फसल चक्र  

यह एक बहुवर्षी घास है. एक बार बुवाई करके इससे 4 से 5 वर्षों तक हरा चारा प्राप्त कर सकते है. कभी-कभी सर्दियों में इसकी कतारों के बीच में बरसीम या रिजिका की भी बुवाई की जा सकती है.

उन्नत किस्में 

क्र० सं०  किस्म  जारी करने का वर्ष  विकास संस्थान  खेती योग्य क्षेत्र  औसत हरा चारा उपज 
1 सिटेरिया-92 2005 सी०एस०के०एच०पी० के०वी० पालमपुर सम्पूर्ण भारत के गर्म एवं नमी युक्त क्षेत्र 31
2 नंदी 1983 सी०एस०के०एच०पी० के०वी० पालमपुर हिमाचल प्रदेश का पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्र 57

इसके अलावा इसकी सबसे अच्छी किस्म का नाम सिटेरिया स्फेसेलेटा ‘कंजगुला’ है. इसकी उपज तथा पौष्टिकता देशी जातियों से अच्छी होती है.

खेत की तैयारी 

अन्य घास की भांति यह एक बहुवर्षी लम्बी जड़ वाली घास है. इसके लिए खेत की कम से कम एक हग्री जुताई करनी चाहिए. इसके पश्चात 2 से 3 बार हैरो चलाकर जुताई कर लेनी चाहिए. खेत की मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए.

बुवाई 

इसकी बुवाई छिटकवां विधि से या कतारों में करनी चाहिए. इसके अतरिक्त नर्सरी में पौधों को उगाकर उनकी रोपाई भी की जा सकती है, कभी-कभी जड़दार टुकडे भी प्रयोग में लाये जा सकते है. इसकी बुवाई 60 से 70 सेमी० की दूरी पर बनी कतारों में 40 से 50 सेमी० के अंतर पर करनी चाहिए. यदि बीज का प्रयोग किया जाय, तो प्रति हेक्टेयर एक से दो किग्रा० बीज की आवश्यकता पड़ती है. बीज की अंकुरण क्षमता अच्छी होनी चाहिए.

इस घास की बुवाई का सबसे उचित समय जून-जुलाई माना जाता है. इसकी बुवाई अप्रैल से अगस्त के बीच कभी भी की जा सकती है. रोपाई के लिए वर्षा आरम्भ में 4 से 6 सप्ताह पुराने पौधों को प्रयोग में लेना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक 

बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 25 से 26 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए. इसके बाद हर वर्ष 10 से 12 टन खाद डालना आवश्यक है. इसके अलावा पहली चारा कटाई को छोड़कर अगली कटाई में 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन डालना आवश्यक है. बुवाई के समय यदि आवश्यक हो, तो 20 से 30 किलोग्राम पोटाश और फ़ॉस्फोरस का प्रयोग जरुर करना चाहिए.

सिंचाई एवं जल-निकास 

अक्टूबर एवं नवम्बर में 2 सिंचाईयां करनी चाहिए. इसके अतरिक्त गर्मी के मौसम में 15 दिन के अंतर पर सिंचाइयाँ करना आवश्यक है. चारा कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए. जल निकास की व्यवस्था करने से फसल की उपज बढ़ जाती है.

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फसल-सुरक्षा

वर्षा में कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है. इससे खरपतवार मर जाते है. तथा फसल अच्छी होती है. इसमें कीट तथा रोगों का विशेष प्रकोप नही होता है.

कटाई प्रबंधन एवं उपज  

पहली चारा कटाई बुवाई के 3 महीने बाद करनी चाहिए. इसके पश्चात् प्रत्येक कटाई 6 सप्ताह के अंतर पर करनी चाहिए. वर्षा में इसकी 4 से 5 कटाईयाँ की जा सकती है. कटाई के समय कम से कम 12 सेमी० तने का निचला भाग छोड़ना आवश्यक है. जिससे पुनर्व्रध्दी अच्छी हो. इसकी औसत उपज 300 से 350 कुंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर है. बुवाई के वर्ष में केवल एक कटाई ही की जा सकती है. इससे दिसम्बर तक हरा चारा प्राप्त हो जाता है. इसलिए यह घास हरे चारे के अभाव वाले महीने में (अक्टूबर से दिसम्बर) के लिए अच्छी मानी जाती है.

दोस्तों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से नंदी घास के बारे में जानकारी मिल पायी होगी. इस लेख से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कम्नेट कर पूछ सकते हो. इसके अलावा यह लेख कैसा लगा कम्नेट कर जरुर बताये. साथ ही गाँव किसान (Gaon kisan) के Facebook page और Instagram को जरुर Fallow करे. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द. 

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