चारे की फसलों के वांछित गुण एवं वर्गीकरण || Fodder Crops

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चारे की फसलों
चारे की फसलों (Fodder Crops) के वांछित गुण एवं वर्गीकरण

चारे की फसलों (Fodder Crops) के वांछित गुण एवं वर्गीकरण

नमस्कार किसान भाईयों चारे की फसलों (Fodder Crops) को देश के हर भाग में बोया जाता है. जिससे पशुओं की सेहत अच्छी रहे. वह अच्छा दूध उत्पादन कर सके. जिससे किसान भाईयों को अच्छा लाभ मिल सके. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख से इन चारा फसलों के वांछित गुण और इनके वर्गीकरण की पूरी जानकारी देगा. तो आइये जानते है इसके वांछित गुण एवं वर्गीकरण –

चारे की फसलों के वांछित गुण (Desired qualities of fodder crops)

पशु आहार के लिए चारे विशेषताएं इसकी भूमि, क्षेत्र, जलवायु तथा अन्य कारकों पर निर्भर करती है. पशुओं के एक उपयोगी पशु आहार के लिए चारे में निम्नवत विशेषताएं होना आवश्यक है.

  • पशु आहार वाले चारे की किस्में जल्दी बढ़ने वाली और जल्दी पकने वाली होनी चाहिए.
  • चारा की फसलों के पौधे मुलायम और तने रसीले होने चाहिए.
  • चारा फसलों से हरे तथा सूखे चारे की अधिक उपज होनी चाहिए.
  • इन फसलों के पौधों में अधिक पत्तियों होनी चाहिए.
  • चारा फसलों में मौजूद शुष्क पदार्थ में अधिक पाचनशीलता (50 से 65 प्रतिशत) होनी चाहिए.
  • इन फसलों में कम से कम 8 से 9 प्रतिशत कठोर प्रोटीन की मात्रा होनी चाहिए.
  • चारा फसलों में अधिक विषैले पदार्थों का अभाव होना चाहिए.

चारा की फसलों का वर्गीकरण (Classification of fodder crops)

देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न मौसम में विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में विभिन्न प्रकार के चारा की फसले उगाई जाती है. इन फसलों का वर्गीकरण इसकी आधार पर किया जाता है –

1. मौसमी बुवाई के आधार पर 

मौसमी बुवाई के आधार पर चारा की फसलों को तीन भागों में बांटा जा सकता है

(A) खरीफ की चारा फसलें – इन चारा फसलों की बुवाई जून महीने से अगस्त महींने तक की जा सकती है. इन फसलों में ज्वार, बाजरा, मक्का, मकचरी, नेपियर घास, गिनी घास, पैरा घास, लोबिया, ग्वार, सूडान घास, दीनानाथ घास आदि घासें एवं फलीदार चारा फासले आती है.

(B) रबी की चारा फसलें – इन चारा फसलों की बुवाई का समय सितम्बर महीने के अंतिम सप्ताह से दसम्बर महीने तक की जाती है. इन फसलों में बरसीम, जई, रिजका, चारे की सरसों, सफ़ेद क्लोवर, लैडिनो क्लोवर, अल्साइक क्लोवर, राईघास, खेसारी, मटर आदि चारा फसलें आती है.

(C) बसंत और गर्मी की चारा फसलें – इन चारा फसलों की बुवाई का समय फरवरी-मार्च से अप्रैल तक होता है. इन चारा फसलों में मक्का, सूडान घास, मकचरी, बाजरा, नेपियर घास, गिनी घास, लोबिया आदि चारा फसले आती है.

इसमें रबी फसलें केवल उत्तर भारत तथा दक्षिण की पहाड़ियों में उगाई जा सकती है. खरीफ तथा बंसत की फसलें दक्षिण भारत में पूरे वर्ष उगाई जाती है.

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2. वानस्पतिक गुणों के आधार पर 

चारा की फसलों का वानस्पतिक गुणों के आधार पर वर्गीकरण निम्नवत है-

(A) फलीदार चारे की फसले – इन चारा फसलों में बरसीम, रिजका, खेसारी, मटर, सफ़ेद क्लोवर, लाल क्लोवर, अलसाइक क्लोवर एवं अन्य क्लोवर तथा ग्वार, लोबिया, ल्यूपिन, कुद्जूवाइन आदि फलीदार चारों को शामिल किया गया है.

(B) घासदार चारा फसले – इन चारा फसलों में ज्वार, मक्का, दीनानाथ घास, बाजरा, मकचरी, नेपियर घास, गिनी घास, पैरा घास, कंगनी घास, मारवेल घास, रोड्स घास, आर्चर्ड घास, ब्लू पेनिक घास आदि को शामिल किया गया है.

3. पोषक तत्वों के आधार पर 

चारा फसलों को पोषक तत्वों के आधार पर वर्गीकरण उसकी प्रोटीन और ऊर्जा की मात्रा के आधार पर किया जाता है-

(A) प्रोटीन युक्त चारे – प्रोटीन युक्त चारे में  उन सभी फसलों को शमिल किया गया है जिनमें प्रोटीन की मात्रा 9 प्रतिशत से अधिक पाई जाती है. इस समूह में प्रायः सभी फलीदार फसलें सम्मिलित की जाती है.  इसमें बरसीम, रिजका, सरसों, क्लोवर समूह के चारे, लोबिया, ग्वार आदि फसलों में प्रोटीन की अधिक मात्रा में अधिक होती है.

(B) ऊर्जा प्रदान करने वाले चारे – ऊर्जा प्रदान करने वाले चारे की फसलों में उन फसलों को शामिल किया गया है. जिनमें प्रोटीन की मात्रा कम तथा ऊर्जा अधिक मात्रा में प्राप्त होती है. क्योकि चारे की इन फसलों में कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. चारे में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ने से प्रोटीन की मात्रा उसी अनुपात में कम होती है. इन चारा फसलों में सभी घास प्रधान चारे जैसे – मक्का, ज्वार, बाजरा, जई, दीनानाथ घास, नेपियर घास, गिनी घास तथा पैरा घास अदि चारे जिसमें कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में पाई जाती है.

4. चारे की सुलभता के आधार पर

चारे की सुलभता के आधार पर चारे को निम्न भागों में बांटा जा सकता है –

(A) कृष्ण चारे – कृष्ण चारे में उन सभी चारे की फसलों को सम्मिलित किया जाता है, जिनमें सामान्य फसलों के सामान उगाया जाता है. इसमें बरसीम, रिजका, जई, ज्वार, बाजरा तथा कई प्रकार की कृष्ण घासें सम्मिलित की जाती है.

(B) प्राकृतिक घासें – प्राकृतिक घास में वे सभी घासें एवं फलीदार फसलें आती है. जो अपने आप में वनों तथा चारागाहों में उगती है. और पशुओ को चारा प्रदान करती है. डूब, मोथा, जई घास व खैल घास को इसी वर्ग में सम्मिलित किया जाता है.

(C) चारा प्रधान झाड़ियाँ एवं वृक्ष – इस वर्ग में उन सभी झाड़ियों और वृक्षों को सम्मिलित किया जाता है. जिनकी पत्तियां और पतली मुलायम शाखाओं को काटकर पशुओं को खिलाने के काम में लाया जाता है. उदाहरण के लिए सुबबूल, बेर, बबूल, बरगद, पाकड़, शीशम इत्यादि को इस वर्ग में रखा जा सकता है.

(D) चारा प्रधान धान्य फसलों के अवशेष – इसमें वे सभी फसल अवशेष सम्मिलित है जो पशुओं के खिलाने के काम में आते है. जैसे गेहूं, जौ आदि का भूसा, धान का पुवाल, ज्वार, बाजरा और मक्का की कड़बी तथा अन्य फसलों के पुवाल, भूसा एवं कड़बी आदि.

(E) सब्जियों के पत्ते तथा जड़े – कई प्रकार की सब्जी प्रधान फसलों की पत्तियों और जड़ों को चारे के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इस प्रकार के चारे में फूलगोभी, बंदगोभी पत्ते, मूली की पत्ती और जड़ें, गाजर की पत्ती एवं जड़े, आलू की पत्तियां सम्मिलित की जाती है.

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5. गुणों के आधार पर 

गुणों के आधार पर चारे की फसलों को निम्न प्रकार बांटा जा सकता है.

  1. अधिक उपज के चारे
  2. पाचन प्रधान चारे
  3. प्रोटीन प्रधान चारे
  4. पत्ती प्रधान चारे
  5. कोमल एवं रसीले तने वाले चारे

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान का चारे की फसलों (Fodder Crops) के गुण और वर्गीकरण सम्बन्धी लेख से आप सभी को जानकारियां मिल पायी होगी. फिर भी चारे की फसलों से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान का यह लेख आपकों कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये, महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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