सोयाबीन की खेती (Soyabean ki kheti) की पूरी जानकारी
नमस्कार किसान भाइयों-बहनों, सोयाबीन भारत की एक महत्वपूर्ण नगदी खाद्य फसल है. यह दलहल के बजाय तिलहल फसल मानी जाती है. लेकिन यह एक दलहल की फसल है. इसने देश की पीली क्रांति में विशेष भूमिका निभाई है. इसे खाद्य तेल की आवश्यकता की पूर्ति हेतू देश में उगाई जाने वाली प्रमुख 9 तिलहनी फसलों में से अकेले सोयाबीन का योगदान 28.6 प्रतिशत है. आज गाँव किसान सोयाबीन की उन्नत खेती कैसे करे की पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है सोयाबीन की खेती की पूरी जानकारी –
सोयाबीन की खेती से लाभ
सोयाबीन को शाकाहारी मनुष्यों के लिए इसकों मांस भी कहा जाता है. क्योकि इसमें बहुत अधिक प्रोटीन होता है. यह मानाव स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी खाद्य पदार्थ है. इसमें मुख्य रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा पाया जाता है. सोयाबीन में 40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म पायी जाती है. इसके तेल में संतृप्त वसा अम्ल कम होने के कारण इसका तेल ह्रदय रोगियों के लिए विशेष लाभदायक है. तेल निकालने के बाद इसकी बची खली को पशु आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है.
सोयाबीन की खेती भारत में
भारत में सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राज्यस्थान राज्यों में प्रमुख फसल के रूप में उगाया जाता है. लेकिन सोयाबीन की खेती उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ जिलों में की जाती है. भारत मे सबसे अधिक सोयाबीन मध्य प्रदेश में उगाया जाता है.
भारत के अलावा सोयाबीन की खेती विश्व के अधिकतर देशों में की जाती है. विश्व में यह प्रमुख रूप से जापान, चीन, अमेरिका एवं ब्राजील आदि देशों में उगाई जाती है. विश्व का अकेले 60 प्रतिशत सोयाबीन अमेरिका में उगाया जाता है.
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उपयुक्त मिट्टी
सोयाबीन की उन्नत खेती के लिए अत्यधिक लवणीय, रेतीली तथा पानी जमने वाली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. इसके लिए दोमट मिट्टी, मध्यम जलधारण क्षमता वाली मिट्टी उपयुक्त होती है. इसकी अच्छी उपज के लिए भूमि का पी० एच० मान 6.0 से 7.5 के बीच का होना चाहिए.
उन्नत किस्में
सोयाबीन की उन्नत किस्मों में एम० ए० सी० एस० 1520, एन० आर० सी० 130, आर० एस० सी० 10-46, जे० एस० 20-116, जे० एस० 20-94, आर० बी० एस० 18 आदि प्रमुख उन्नत किस्में है.
खेत की तैयारी
सोयाबीन की अच्छी उपज के लिए 2 से 3 में एक बार खेत की गहरी जुताई (20 से 30 सेमी०) कर लेनी चाहिए. इससे भूमि की मिट्टी को गर्मी तेज धूप लगने से खरपतवार, कीट तथा रोगों के बीज पलटकर नष्ट हो जाते है. जिससे फसल अच्छा पोषण मिलता है. इसके अवाला बारिश का पानी भूमि में अच्छी संचयित हो जाता है. सोयाबीन की बुवाई से पहले खेत की दो से तीन बार जुताई कर अच्छी प्रकार तैयार कर लेना चाहिए.
सोयाबीन की खेती का समय
सोयाबीन की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक जब 4 से 5 इंच वर्षा हो जाय तो बुवाई कर देना चाहिए.
बीजोपचार
सोयाबीन की बुवाई से पहले बीजोपचार अति आवश्यक है. इसके लिए थायरम + कार्बेन्डाजिम या थायरम + कार्बोक्सिन की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलों के हिसाब से प्रयोग करनी चाहिए.
बीज की मात्रा
सोयाबीन के बीज की मात्रा की बात की जाय तो छोटे दाने वाली सोयाबीन 60 से 70 किलोग्राम एवं बड़े दाने वाली सोयाबीन 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है. इस बात का ध्यान अवश्य रखे, किसी भी प्रकार के किस्म का चयन करने के पश्चात बुवाई के पूर्व बीजों का अंकुरण प्रतिशत जरुर देख ले जो कि लगभग 70 प्रतिशत के आसपास होना चाहिए. अंकुरण प्रतिशत कम होने की अवस्था में बीज दर बढ़ाया जा सकता है.
बुवाई की विधि
सोयाबीन की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए. जिसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 से 45 सेमी० एवं पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेमी० रखनी चाहिए.
सोयाबीन की खेती में खाद एवं उर्वरक
सोयाबीन की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी के समय 10 से 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए. इसके अलावा 20 किग्रा० नत्रजन, 60 से 80 किलोग्राम फ़ॉस्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करते है.
खरपतवार नियंत्रण
सोयाबीन की उन्नत खेती ज्यादातर खरीफ के मौसम में होती है. इसलिए इस मौसम की खेती में सभी खरपतवार पाए जाते है. फसल की बुवाई के 30 से 45 दिन तक खरपतवार नही होने से इसका उत्पादन अच्छा होता है. इसलिए खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्न विधियाँ अपनानी चाहिए –
- हाथ से निराई – सोयाबीन की फसल में 2 से 3 बार हार से निराई कर खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है.
- हस्तचालित यंत्रों से निंदाई – यंत्रों की उपलब्धता एवं उपयुक्तता होने पर अन्तरशस्यीय यंत्रों के कतारों के मध्य प्रयोग करके खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है.
- रासायनिक शाकनाशी का उपयोग – इसके अलाव किसान भाई सरयानिक शाकनाशी जैसे – पेंडीमिथालिन, एलाक्लोर, मेटोलाकलोर आदि शाकनाशी का प्रयोग कर सकते है. लेकिन इस बात ध्यान जरुर रखे रासायनिक शाकनाशी का प्रयोग करते समय कृषि विशेषज्ञ की सलाह जरुर ले.
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सोयाबीन की खेती के रोग
इसकी खेती के रोग निम्न लिखित है –
क्रम संख्या | रोग का नाम | उपचार |
1 | जीवाणु म्लानि | स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 2 ग्राम / लीटर पानी |
2 | तम्बाकू विषाणु रोग | रस चूसक कीटों का नियंत्रण करे |
3 | पीला विषाणु रोग | रस चूसक कीटों का नियंत्रण करे |
4 | चारकोल रॉट |
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5 | एन्थ्रेक्नोज | उपर्युक्त |
6 | कॉलर रॉट | उपर्युक्त |
7 | गेरुआ रोग |
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सोयाबीन की कटाई
सोयाबीन की फसल जब पकना शुरू होती है तो उसकी पत्तियां झड़ने लगती है. फिर भी कुछ किस्मों के पत्ते नही झड़ते है. उसके पश्चात लगभग 10 दिन में फसल पाक कर तैयार हो जाती है. इस अवस्था में फसल की कटाई कर लेनी चाहिए.
सोयाबीन की उपज
सोयाबीन की उपज मुख्य रूप से फसल प्रबंधन पर निर्भर करती है. यदि अनुसंशित विधि से सोयाबीन की खेती की जाय, तो सामान्यतः पैदावार 25 से 28 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है.
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