सूडान घास (sudan grass) – एक पौष्टिक चारे की फसल

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सूडान घास
सूडान घास (sudan grass) - एक पौष्टिक चारे की फसल

सूडान घास (sudan grass) – एक पौष्टिक चारे की फसल

नमस्कार किसान भाईयों, सूडान घास (Sudan Grass) एक वर्षीय चारे की फसल है. इसके तने पतले और बहुत सी पत्तियों से भरे होते है. इसका चारा काफी पौष्टिक होता है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में सूडान घास की पूरी जानकारी देगा. जिससे आप इसे उगाकर पशुओं को उपलब्ध करा पाए और अधिक लाभ पा सके. तो आइये जाते है. सूडान घास की पूरी जानकारी-

सूडान घास के फायदे 

यह एक पौष्टिक चारा फसल है. इसमें 5.68 प्रतिशत प्रोटीन, 27.03 प्रतिशत रेशा, 0.46 प्रतिशत कैल्शियम, 0.49 प्रतिशत फ़ॉस्फोरस, 1.95 प्रतिशत नाइट्रोजन रहित निष्कर्षनीय भाग और राख का 10.85 प्रतिशत भाग पाया जाता है. जो पशुओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होती है. इस घास का साइलेज भी बनाया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

सूडान घास का वानस्पतिक नाम सोर्घम सूडानेन्स (Sorgham sudanance) है. यह घास सूडान में खरपतवार के रूप में उगती है. सन 1909 में इसको संयुक्त राज्य अमेरिका में लाया गया है. कुछ वर्षों में वहां यह गर्मी के मौसम की एक महत्वपूर्ण चारा फसल के रूप में विकसित हो गयी. विश्व में अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, नाईजेरिया, सूडान, पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा भारत के कई भागों में उगाई जाती है.

भारत में यह महारष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान के कुछ भागों में इसको उगाया जाता है. इस फसल को उन सभी स्थानों पर उगाया जा सकता है. जहाँ ज्वार को उगाया जा सकता है.

जलवायु एवं मृदा 

सूडान घास के लिए सामान्यतया 33 से 34 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना चाहिए. इसकी फसल सूखा सहिष्णु भी होती है. इसकी उपज के लिए 38 से 75 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले स्थान उपयुक्त होते है.

इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. इसके लिए दोमट, रेतीली दोमट और हल्की काली मिट्टी उपयुक्त होती है. मृदा का पी० एच० मान 6.5 से 7.0 तक होना चाहिए. इसकी खेती अनुर्वर और हल्की क्षारीय भूमि में भी की जा सकती है. लेकिन ऐसी मिट्टियों में इसकी उपज कम होती है.

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फसल चक्र 

इया घास के चारे की फसल ज्यादातर वसंत ऋतु में या गर्मी में उगाई जाती है. इसलिए इसको गेहूं, जई , मटर, चना या मसूर के बाद उगाया जा सकता है. बसंत ऋतु में बोई गयी फसल जई या आलू की फसल के बाद उगाते है. वर्षा ऋतु में फसल को बसंत ऋतु की मक्का के बाद उगाया जा सकता है.

  • मक्का दाना (दाना)-सूडान घास (एक वर्षीय फसल चक्र)
  • ज्वार (दाना), बरसीम-सूडान घास-लोबिया (एक वर्षीय फसल चक्र)
  • सूडान घास-गेहूं-लोबिया-मक्का (एक वर्षीय फसल चक्र)
  • लोबिया-सूडान घास-लोबिया-मक्का (एक वर्षीय फसल चक्र)

उन्नत किस्में 

सूडान की उन्नत किस्मों में ह्वीलर, मीठी सूडान, टिफ्ट सूडान, सूडान घास लीओटी तथा सोरगो आदि प्रमुख किस्में है.

खेत की तैयारी 

खेत की तैयारी इसके पिछले मौसम में ली गयी फसल के ऊपर निर्भर करती है. प्रायः इसके लिए खेत में 3 से 4 बार हैरो से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेते है. बुवाई के समय भूमि में नमी की आवश्यकता होती है. इसके खेती की तैयारी ज्वार की खेती के समान होती है.

बुवाई एवम बीज मात्रा 

इस फसल की बुवाई के लिए केवल 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है. यह गर्मी या बसंत ऋतु की सबसे अच्छी चारे की फसल है. इसलिए इसकी बुवाई फरवरी से लेकर मई-जून तक की जा सकती है. जून में बुवाई करने से यह फसल अक्टूबर तक हरा चारा प्रदान करती है.

इसकी बुवाई ज्वार की भांति कतारों में की जानी चाहिए. छिटकवाँ बुवाई भी की जा सकती है. कतारों में बुवाई करने से अंकुरण बराबर और अच्छा होता है. छिटकवां बुवाई में बीज की मात्रा डेढ़ गुनी करनी पड़ती है, क्योकि अधिकतर बीज मिट्टी की साथ के ऊपर रह जाते है.

 खाद एवं उर्वरक 

अधिक उपज के लिए फसल को 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है. मिट्टी की जांच से यदि मिट्टी में फ़ॉस्फोरस की कमी पाई जाती है. तो कम से कम 40 किलोग्राम फ़ॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर देना आवश्यक है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फ़ॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के पहले आखिरी जुताई के समय खेत में डाल देना चाहिए. शेष एक तिहाई भाग हर चारा कटाई के तुरंत बाद डाल कर, यदि आवश्यक हो तो पानी लगा देना चाहिए.

सिंचाई एवं जल निकास 

बसंत या गर्मी में बोई गई फसल के लिए प्रत्येक 10 से 15 दिन के अंतर पर पानी की आवश्यकता पड़ती है. बरसात में बोई गयी फसल को सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है, लेकिन अधिक पानी हानि न पहुंचाए, इसलिए जल-निकास की व्यवस्था की जानी चाहिए. पर्याप्त वर्षा न होने पर सिंचाई की जरुरत बरसात में बोई गई फसल को भी पड़ जाती है.

फसल सुरक्षा 

ज्वार की तरह सूडान घास में भी खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए अट्राजीन डेढ़ किलोग्राम सक्रिय अवयव प्रति हेकेत्यर की दर से प्रयोग में लायी जा सकती है. बाद में लगातार कई कटान करने से चारे की फसल पर खरपतवारों का विशेष प्रभाव नही पड़ता है.

सूडान घास में ज्वार की तरह तना मक्खी तथा पर्ण चिट्टी बीमारी का प्रकोप अधिक होता है. तना मक्खी की रोकथाम के लिए बीज के साथ थिमेट (फोरेट 10) को 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलकर बोते है. पत्ती की बीमारी प्रायः खरीफ के मौसम में अधिक होती है. इसलिए पौधे के अंकुरण के 30 दिन बाद डाइथेन जेड-78 को 2.2 किलोग्राम की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर कम से कम दो या तीन बार साप्ताहिक अंतर पर छिड़काव करना चाहिए.

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कटाई-प्रबंध एवं उपज 

बुवाई के 50 से 60 दिन बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है. बाद में प्रत्येक कटाई 25 से 30 दिन के अंतर पर की जा सकती है. इस प्रकार कटाई करने से चारे में पौष्टिक तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है. सूडान घास की उपज की बात की जाया तो यह 300 से 400 कुंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयार प्राप्त हो जाता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से सूडान घास के हरे चारे की पूरी जानकारी मिल पायी होगी.फिर भी इस घास से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.

सूडान घास का बीज खरीदने के लिए यहाँ पर क्लिक कर सकते है. 

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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3 COMMENTS

  1. जानवरो को खिलाने के लिए बोई गई हे तो इसमें बरसात में बारिश का गैप होने पर जहर आता है क्या और फिर जानवरो को खिलाने पर मर जाए ऐसा तो नही हे

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