राइसबीन चारा की खेती की पूरी जानकारी – Rice bean farming

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राइसबीन चारा
राइसबीन चारा की खेती की पूरी जानकारी - Rice bean farming

राइसबीन चारा की खेती की पूरी जानकारी – Rice bean farming

नमस्कार किसान भाईयों, राइसबीन चारा एक महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारे की फसल है. इसको अधिक पानी की दशा में में उगाया जा सकता है, क्योकि ऐसे स्थानों पर लोबिया या ग्वार जैसी फसल उगाना कठिन है. आज गाँव किसान (Gaon kisan) अपने इस लेख में राइसबीन चारा की खेती के बारे में पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी चारे की अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है राइसबीन चारा की खेती की पूरी जानकारी-

राइसबीन चारा के फायदे

राइसबीन पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा है. इसकी पुष्पावस्था में कटाई करने पर इसके चारे में शुष्क पदार्थ के आधार पर 14.54 प्रतिशत प्रोटीन तथा 32.15 प्रतिशत रेशा पाया जाता है. इसके अलावा में नाइट्रोजन रहित निष्कर्ष, ईथर निष्कर्ष, कुल राख, कैल्सियम, फ़ॉस्फोरस आदि रासायनिक तत्व पाए जाते है. जो चारे की पौष्टिकता को बढ़ाते है. एक एक वर्षीय चारा फसल है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र

राइसबीन का वानस्पतिक नाम फेजिओलस कैलकेरेटस (Phaseolus calcaratus) है. इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान भारत माना जाता है. विश्व में इसकी खेती इंडोनेशिया, बर्मा, युगांडा, पेराग्वे तथा दक्षिणी अमेरिका के भागों में की जाती है. भारत में इसकी फसल चारे के अलावा हरी खाद के लिए भी उगाई जाती है. भारत में इसे पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के कुछ भागों में चारे के लिए उगाई जाती है.

जलवायु एवं भूमि

इसकी फसल सभ प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है. इसे अधिकतर कम उपजाऊ भूमि में भी उगाया जा सकता है. इसके लिये सबसे उपयुक्त दोमट मिट्टी होती है. वर्षा काल में लगातार अच्छी बारिश से इसकी वृध्दि अच्छी होती है. परन्तु यदि खेत में पानी भर जाता है, तो फसल पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है. यह फसल प्रायः उन सभी स्थानों पर उगाई जाता है. जहाँ तापमान 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है. इसके अतरिक्त 22 से 25 सेंटीग्रेड तापमान वाले स्थानों पर इसकी कम से कम दो फासले ली जा सकती है.

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फसल चक्र

यह मिलवा खेती में सूडान घास या ज्वार के साथ मिलाकर उगाई जा सकती है. बहु कटाई वाली फसलों, जैसे नेपियर या गिनी घास के साथ भी इसे उगा सकते है. घास की उपज अधिक वर्षा वाले या ठन्डे मौसम में कम हो जाती है. इसके लिए निम्न फसल चक्र उपयुक्त होता है.

  • धान-राइसबीन-राइसबीन (एकवर्षीय)
  • जूट-राइसबीन-राइसबीन (एकवर्षीय)
  • धान-गेहूं-राइसबीन-धान-गेहूं-राइसबीन (द्विवर्षीय)
  • जूट-राइसबीन-धान-राइसबीन-धान (द्विवर्षीय)

खेत की तैयारी 

भूमि की तैयारी खेत में पूर्ववर्ती उगाई गई फसल पर निर्भर करता है. सामान्य रूप से दो से तीन बार अच्छी प्रकार जुताई कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए. जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी बन जाय. इससे चारे की उपज अच्छी होगी.

बुवाई 

बुवाई इसकी फसल की बुवाई प्रायः साल में कई बार की जा सकती है. जिससे पशुओं के लिए हरा चारा साल में कई बार प्राप्त किया जा सकता है. इसकी बुवाई जूट की फसल काटने के बाद अगस्त के महीने में की जा सकती है. इसके अतरिक्त निचली भूमियों में, जहाँ धन की पछेती फसलें उगाई जाती है. इसकी बुवाई धान की खड़ी फसल में भी की जा सकती है. अगस्त में बोने पर यह फसल अक्टूबर और नवम्बर तक हरा चारा देती है. धान की खड़ी फसल में अक्टूबर-नवम्बर में बुवाई करने पर चारा जनवरी से अप्रैल तक प्राप्त हो जाता है. यदि केवल चारे की फसलों का चक्र बनाया जाय, तो यह फसल जून-जुलाई और मार्च -अप्रैल में भी ली जा सकती है.

चारे के लिए बीज बोने की दर 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा दाने के लिए 25 से 20 किलोग्राम आवश्यकता पड़ती है. चारे की फसल छिटकवाँ विधि से या 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोते है. दाने की फसल 60 से 70 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोते है.

खाद एवं उर्वरक

इसकी खेती ऐसे स्थानों पर करते है. जहाँ वर्षा अधिक होती है. इसलिए इसकी भूमि का पी० एच० मान थोडा कम होता है. इस दशा में नाइट्रोजन युक्त खादों का प्रयोग ठीक नही होता है. प्रायः इसके लिए 80 से 150 कुंटल सड़ी गोबर की खाद तथा 30 से 40 किलोग्राम फ़ॉस्फोरिक अम्ल प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए. यह खाद खेत की तैयारी के समय ही डाल देते है. यदि भूमि का पी० एच० मान 7 या इससे अधिक हो, तो 25 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 से 45 किलोग्राम फ़ॉस्फोरस अम्ल प्रति हेक्टेयर खेत में बुवाई के पहले डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए. यह खाद पौधों की प्रारम्भिक वृध्दि में सहायक होती है.

सिंचाई एवं जल-निकास 

खरीफ की फसल को पानी की कोई आवश्यकता नही होती है. अगस्त में ली जाने वाली फसल में 1 या 2 सिंचाइयों की आवश्यकता नही पड़ती है. यह फसल की सूखे की अवस्था को भी सहन कर सकती है. गर्मी में ली जाने वाली फसल को 2 से 3 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. पूर्वी भारत में जहाँ यह फसल अधिक प्रचलित है, सामन्यतया सिंचाइयों की आवश्यकता नही पड़ती है. क्योकि भूमि में पानी का स्तर ऊंचा होता है. खेत में अधिक पानी भर जाने नुकसान हो सकता है. इसलिए जल निकासी की व्यवस्था से ऐसे क्षेत्रों में लाभ होता है.

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फसल सुरक्षा 

प्रारंभ में एक या दो बार निराई-गुड़ाई करने से पौधों की बढ़ोत्तरी अच्छी होती है. और खरपतवार निकल जाते है. इसकी चारे की फसल में रोगों एवं कीड़ों का प्रकोप नही के बराबर होता है.

कटाई-प्रबन्धन एवं उपज

बुवाई के 80 से 90 दिन बाद यह फसल चारे के लिए तैयार हो जाती है. इस समय कटाई करने से हरे चारे की कुल उपज 300 से 350 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक पाई जाती है. इस समय चारे में पौष्टिक तत्वों की मात्रा भी अधिक पायी जाती है. यदि कटाई 15 से 20 दिन देर से की जाय, तो कुल उपज 350 से 400 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच जाती है. परन्तु चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है. उपज प्रायः बुवाई के समय पर निर्भर करती है. देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान के इस लेख से राइसबीन चारा फसल की खेती की पूरी जानकारी मिल पायी होगी. फिर भी राइसबीन चारा से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा आपको यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द 

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