बेल की उन्नत खेती कैसे करे ? – Indian bael farming

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बेल की उन्नत खेती
बेल की उन्नत खेती ( Indian bael farming) कैसे करे ?

बेल की उन्नत खेती ( Indian bael farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाइयों, बेल की उन्नत खेती देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है. यह एक औषधीय फल है. जिससे कई फायदे मिलते है. इसको श्रीफल, बेलपत्र, बंगाल क्विंस के नाम से भी जाना जाता है. इसका पौधा हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है. भारत में इसकी खेती लगभग सभी भागों में की जा सकती है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में बेल की उन्नत खेती की पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके और अधिक मुनाफा कमा सके. तो आइये जानते है बेल की उन्नत खेती की पूरी जानकारी-

बेल के फायदे

बेल बहुत ही पुराना वृक्ष है. भारतीय ग्रंथों के अनुसार इसे दिव्य वृक्ष भी कहा जाता है. बेल के अनगिनत फायदे है. इस कारण इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है. यह कई तरह के रोगों की रोकथाम करता है. यह कफ-वात विकार, बदहजमी, दस्त, मूत्र रोग, पेचिश, डायबटीज, ल्यूकोरिया आदि रोगों में काफी फायदेमंद होता है. इसके अलावा पेट दर्द, ह्रदय विकार, पीलिया, बुखरा, आँखों के रोग आदि में भी बेल के सेवन से लाभ मिलता है.

बेल के फल में राइबोफ्लेविन, विटामिन ए एवं कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. बेल के औषधीय गुण मुख्य रूप से इसमें पाए जाने वाले माइमेलोसिन तत्व के कारण होता है. माइमेलोसिन पेट की बीमारियों के उपचार में उपयोग लिया जाता है. बेल के गूदे से शर्बत, स्क्वेश एवं मारमेलेड बनाया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र

बेल का वानस्पतिक नाम  एगलि मारमेलोस (Aegle marmelos (Linn.) Corr.) Syn-Crateva marmelos Linn है। यह रूटेसी ( Rutaceae) कुल का है। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में 4000 फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश,वियतनाम,  लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है.

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जलवायु एवं भूमि 

बेल एक उपोष्ण जलवायु का पौधा है, फिर भी इसे उष्ण, शुष्क और अर्द्धशुष्क जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. इसकी बागवानी 1200 मीटर ऊँचाई तक और 7-46 डिग्री सेल्सियस तापक्रम तक सफलतापूर्वक की जा सकती है. इसके पेड़ की टहनियों पर कांटे पाये जाते हैं और मई-जून की गर्मी के समय इसकी पत्तियाँ झड़ जाती है, जिससे पौधों में शुष्क और अर्द्धशुष्क जलवायु को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है.

बेल एक बहुत ही सहनशील वृक्ष है. इसे इसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, परन्तु जल निकासयुक्त बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अधिक उपयुक्त है. समस्याग्रस्त क्षेत्रों-ऊसर, बंजर, कंकरीली, खादर, बीहड़ भूमि में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. वैसे तो बेल की खेती के लिए 6-8 पी.एच मान वाली भूमि अधिक उपयुक्त होती है। भूमि में पी.एच मान 8.5 बेल की व्यावसायिक खेती की जा सकती है.

बेल की उन्नत किस्में 

बेल की उन्नत किस्म जो विभिन्न सस्थानों द्वारा विकसित की गयी है, निम्न लिखित है-

  • नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्यगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद : नरेन्द्र बेल-5 (एन० बी०-5), एन० बी०-9.
  • केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ : सी० आई० एस० बी०-1, सी० आई० एस० एच० बी०-2.
  • जी० बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर : पन्त उर्वर्शी, पन्त सुजाता, पन्त अपणी एवं पन्त शिवानी.
  • केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर : गोमा यशी, थार, दिव्या व भार नीलकंड अन्य किस्मों में कागजी (फल का छिलका कागज जैसा पतला), मिर्जापुरी आदि है.

प्रवर्धन

बेल का प्रवर्धन साधारणतया बीज द्वारा किया जाता है. बेल का वानस्पतिक प्रवर्धन पैच कलिकायन द्वारा भी सरलता तथा सफलता पूर्वक किया जा सकता है.

पौध रोपण 

बेल के पौधों का रोपण वर्षा प्रारंभ होने पर करना चाहिए. रोपण के लिए गड्ढों का आकार 75 X 75 X 75 सेंटीमीटर तथा एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की दूरी 6 मीटर रखनी चाहिए. वर्षा शुरू होते ही इन गड्ढों को दो भाग मिट्टी और एक भाग खाद भर देनी चाहिए. एक से दो वर्ष हो जाने पर गड्ढे की मिट्टी तथा एक भाग खाद से भर देना चाहिए. एक दो वर्ष हो जाने पर गड्ढे की मिट्टी जब खूब बैठ जाय तो इसमें पौधे लगा देना चाहिए.

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खाद एवं उर्वरक

पौधों की अच्छी बढ़वार, अधिक फल और पेड़ों को स्वस्थ रखने के लिए प्रत्येक पौधे में 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फ़ॉस्फोरस और 50 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रति वर्ष प्रति वृक्ष डालनी चाहिए. खाद और उर्वरक की यह मात्रा दस वर्ष तक इसी अनुपात में बढ़ाते रहना चाहिए. इस प्रकार 10 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले वृक्ष को 500 ग्राम नाइट्रोजन 250 ग्राम फ़ॉस्फोरस और 500 ग्राम पोटाश के अतिरिक्त 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद डालना उत्तम होता है. ऊसर भूमि में उगाये गये पौधे में प्राय: जस्ते की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं. अत: ऐसे पेड़ों में 250 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति पौधे के हिसाब से उर्वरकों के साथ डालना चाहिए या 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का पर्णीय छिड़काव जुलाई, अक्टूबर व दिसम्बर में करना चाहिए. खाद और उर्वरकों की पूरी मात्रा जून-जुलाई में डालनी चाहिए. जिन बागों में फलों के फटने की समस्या हो उनमें खाद और उर्वरकों के साथ 100 ग्राम/वृक्ष बोरेक्स (सुहागा) का प्रयोग करना चाहिए.

सिंचाई 

नये पौधों को स्थापित करे कि एक-दो वर्ष सिंचाई की अत्याधिक आवश्यकता पड़ती है. स्थापित पौधे बिना सिंचाई के भी अच्छी तरह से रह सकते हैं. गर्मियों में बेल का पौधा अपनी पत्तियाँ गिरा कर सुषुतावस्था में चला जाता है इसके अलावा इसमें पुष्पण तथा फल वृद्धि बरसात के मौसम से शुरू होकर जाड़े के समय तक होती है. इस तरह यह सूखे को सहन कर लेता है. सिंचाई की सुविधा होने पर मई-जून में नई पत्तियाँ आने के बाद दो सिंचाई 20-30 दिनों के अंतराल पर कर देनी चाहिए.

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पौधों की संधाई व अन्तः फसलें 

पौधों की सधाई, सुधरी प्ररोह विधि से करना उत्तम पाया जाता है. सधाई का कार्य शुरू के 4-5 वर्षों में करना चाहिए. मुख्य तने को 75 सेंमी. तक अकेला रखना चाहिए. इसके बाद 4-6 मुख्य शाखाएं चारों दिशाओं में बढ़ने देनी चाहिए. बेल के पेड़ों में विशेष सधाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है परन्तु सूखी, कीड़ों और बीमारियों से ग्रसित टहनियों को समय-समय पर निकालते रहना चाहिए. शुरू के वर्षों में नये पौधों के बीच खाली जगह का प्रयोग अंत: फसल लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी फसलें नहीं लेनी चाहिए जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता हो और वह मुख्य फसल को प्रभावित करें. इसके अलावा ऊसर भूमि में लगाये गये बागों में सनई, ढैंचा की फसलें लगा कर उन्हें वर्षा ऋतु में पलट देने से भूमि की दशा में भी सुधार किया जा सकता है.

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फलों की तुड़ाई 

फल अप्रैल-मई में तोड़ने योग्य हो जाते हैं. जब फलों का रंग गहरे हरे रंग से बदल कर पीला हरा होने लगे तो फलों की तुड़ाई 2 सेंमी. डंठल के साथ करनी चाहिए. तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फल जमीन पर न गिरने पायें। इससे फलों की त्वचा चटक जाती है, जिससे भंडारण के समय चटके हुए भाग से सडन चटके हुए भाग से सडन आरंभ हो जाती है.

उपज 

कलमी पौधों में 3-4 वर्षों में फल प्रारंभ हो जाती है, जबकि बीजू पेड़ 7-8 वर्ष में फल देते हैं. प्रति वृक्ष फलों की संख्या वृक्ष के आकार के साथ बढ़ती रहती है. 10-15 वर्ष के पूर्ण विकसित वृक्ष से 100-150 फल प्राप्त किये जा सकते हैं.

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