फसलों में दीमक प्रबन्धन | Termite Management in Crops
नमस्कार किसान भाईयों, दीमक विश्व में सभी उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण क्षेत्रों में पायी जाती है. फसलों में दीमक प्रबन्धन बहुत ही आवश्यक है. क्योकि यह एक सर्वभक्षी कीट है. जो फसलों को करीबन 45 प्रतिशत सी भी अधिक नुकसान पहुंचता है. इसलिए गाँव किसान आज अपने इस लेख में फसलों में दीमक प्रबंधन कैसे करे, इसकी पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इस सर्वभक्षी कीट से अपनी फसलों की सुरक्षा कर सके. तो आइये जानते है अपनी फसलों में दीमक प्रबंधन कैसे करे ?
दीमक कीट की पहचान
यह कीट सफ़ेद-पीले रंग से लेकर गहरे नारंगी रंग के होते है. इनके अर्भक लगभग 1 मि० मी० लम्बे होते है. वयस्क कीट विभिन्न प्रकार के होते है. यह पंखधारी नर तथा मादा, राजा, रानी, श्रमिक व सैनिक होते है.
पंखधारी नर तथा मादा अक्सर बरसात में सैकड़ों की संख्या में निकलते है. इनकी लम्बाई पंखों सहित लगभग 2 से 2.5 सेमी० होती है. इनके पखों में बहुत कम शिराएँ होते है. और ये शीघ्र ही टूट जाती है. पंख अल्पपारदर्शी होते है. इसके नर व मादा की कालोनी बनाने वाला प्रकार कहते है. नर व मादा की पंखहीन अवस्था भी होती है. एक कालोनी में इसकी संख्या भी कई सौ होती है. ये कीट 4 से 5 मिमी० लम्बे होते है. इनका रंग पीला-सफ़ेद या हल्का पीला-नारंगी होता है.
दीमक का जीवन चक्र
यह कीट संगठित कॉलोनी में रहते है. जिसमें राजा, रानी, क्रियाशील मजदूर व सिपाही भिन्न-भिन्न कार्य करते है. रानी दीमक का काम अंडे देने का है. ये अंडे एक विशेष कक्ष में बच्चे तैयार करने के लिए रखे जाते है. इन अण्डों से निकले बच्चे पौढ़ दीमक की तरह के छोटे कीड़े होते है. जो निकलने के तुरंत बाद से अपना भोजन स्वयं एकत्रित करना प्रारंभ कर देते है. भूमि में दूर तक जाने के लिए दीमक सुरंग बना लेती है.
कभी-कभी अच्छे टीले की आकर के आयास (मंड) निर्माण कर लेती है. इसके आवासों में राजा-रानी के रहने के लिए विशेष कक्ष होते है. जिनके निकट अंडे रखने के कक्ष होते है. और वही भोजन उत्पन्न करने के लिए एक बाग़ होता है. इसके अतरिक्त भिन्न-भिन्न कार्य के लिए अनेकों छोटे कक्ष होते है. बड़े होकर बच्चे किसी एक विशेष कार्य के लिए उत्तरदायी होते है. पहली बरसात होते ही कुछ नर व मादा दीमक के पंख निकल जाते है. और इसमें से ही राजा और रानी बनकर संयोग करके नई कॉलोनी का सृजन करते है. रानी सबसे पहले 10-130 अंडे देती है. जो सिपाही व मजदूर बनते है. बाद में दूसरी तरह दीमक को जन्म देती है.
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फसलों को क्षति
दीमक असिंचित या सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक सक्रिय रहता है. दीमक प्रायः रात में सक्रिय रहता है. दीमक प्रकाश सहन नही कर सकते है. इसलिए वे जमीन के अन्दर या ऊपर मिट्टी की सुरंग बनाकर उसी में चलते है. इस कीट का वयस्क मोटा होता है. जो घूसर भूर रंग का होता है. इस कीट की सूड़ियाँ मिट्टी की बनी दरारों अथवा गिरी हुई पत्तियों की नीचे छिपी रहती है.
फसलों की बुवाई के तुरंत बाद दीमक का आक्रमण शुरू हो जाता है. ये मिट्टी में पड़े बीज, अंकुरित बीज, नवजात पौधे तथा पौधों की अन्य सभी अवस्थाओ में क्षति पहुंचाते है. दीमक पौधों की जड़ व तना के आधार भाग को खाकर खोखला कर देते है. व खोखले भाग में मिट्टी भर जाती है. जिसके कारण नवजात पौधे शीघ्र ही सूख जाते है. एवं बड़े पौधे धीरे-धीरे सूखने लगते है. खेत में सूखे हुए पौधों को उखाड़के देखने से उसके खाए हुए खोखले भाग में मिट्टी भरी हुई होती है. इससे दीमक की उपस्थिति का पता चलता है. आलू, टमाटर, मिर्च, सरसों, बैंगन, मूली, राय, गेहूं, मूंगफली, गन्ना आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान करता है.
दीमक की खेत में उपस्थिति कैसे पता करे
इसको पता करने के लिए बुवाई से पहले खेत के बीच में 15 सेमी० गहरा गड्ढा करके उसमें 2 किग्रा० कच्चा गोबर दबा देते है. इसके 10 से 15 दिन बाद उस गोबर की जगह को खोदकर देखने से पता चलता है. कि पूरा गोबर मिट्टी में बदल गया है. जो कि सिर्फ खेत में दीमक की उपस्थिति के कारण होता है.
फसलों में दीमक प्रबन्धन के देशी उपाय
- दीमक के द्वारा बनाये गए मिट्टी के आवास को तोड़ देना और रानी दीमक को ढूंढकर नष्ट कर देना इसकी रोकथाम सबसे प्रभावी है.
- खेत में पूर्णतः सड़ी हुई खाद ही प्रयोग करनी चाहिए. कच्ची खाद डालने पर इसका प्रकोप अधिक होता है.
- खेत में पौधों के अवशेष नही छोड़ना चाहिए. जुताई के बाद उन्हें एकत्र जला देना चाहिए.
- गर्मी के मौसम में जुताई भी दीमक नियंत्रण के लिए एक प्रभावी तरीका है. गरमी में जुताई से भूमि में उपस्थिति रानी दीमक और अन्य कीड़े तेज धूप से नष्ट हो जाते है.
- मिट्टी के घड़े में 2 किग्रा० कच्ची गोबर में 100 ग्राम गुड़ को 3 लीटर जल में घोलकर दीमक प्रभावित क्षेत्र घड़े को इस प्रकार गाड़ना चाहिए कि घड़े का मुंह जमीन से कुछ बाहर निकला हो. घड़े के ऊपर कपड़ा बांधकर उमें पानी भर दे. कुछ दिन पश्चात दीमक घड़े में भर जायेगी इसके पश्चात घड़े को बाहर निकाल कर गर्म कर लेते है. जिससे दीमक समाप्त हो जाती है.
- जला हुआ मोबिल तेल खेत में बहने वाले सिंचाई के पाने में दल देते है. जिससे दीमक नियंत्रित होता है.
- नीम की 10 किग्रा० पत्तियां 200 लीटर पानी में 4 दिनों तक भिगोकर रख दें. इसके बाद पानी हरा पीला होने पर इससे छानकर, एक एकड़ की फसल पर छिड़काव करने से दीमक का नियंत्रण हो जाता है.
- जिस खेत में दीमक का प्रकोप अधिक होता है. उस खेत में फसल चक्र में लहसुन की फसल को सम्मिलित करके इसकी बुवाई करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है.
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फसलों में दीमक प्रबन्धन के जैविक उपचार
- दीमक के नियंत्रण के लिए बीजों को बिवेरिया बेसियाना फंफूद नाशक से उपचारित किया जाना चाहिए. एक किलो बीज को 20 ग्राम बिवेरिया बेसियाना फंफूदनाशक से उचारित करके बुवाई करनी चाहिए. मृदा उपचार के लिए 1 किग्रा बिवेरिया बेसियाना फंफूद नाशक को 25 किग्रा० गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर बुवाई करने से पहले खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए.
- खड़ी फसल में दीमक की रोकथाम के लिए 1 किग्रा० प्रति एकड़ बिवेरिया बेसियाना फंफूद नाशक को आवश्यकतानुसार पानी में घोलकर मटके में भरकर, निचले हिस्से में छिद्र करके सिंचाई के पानी के साथ खेत में देना चाहिए.
फसलों में दीमक प्रबन्धन का रासायनिक उपचार
- 1 किग्रा० बीज को 4 मिली लीटर क्लोरिपायरीफ़ॉस दवा में मिश्रित करके उपचारित किया जा सकता है.
- दीमक को नियंत्रित करने के लिए 2 लीटर क्लोरियारिफ़ॉस दवा को 4 किग्रा० मिट्टी में डालकर प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय खेत में डालना चाहिए.
- एक किग्रा० लिंडेन पाउडर को 10 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ खेत में बुवाई में डालना चाहिए.
- खड़ी फसल में दीमक के आक्रमण होने पर क्लोरोपायरीफ़ॉस 20 ई० सी० के 2.5 मिली० प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सिंचाई के पानी के साथ खेत में देना चाहिए.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से फसलों में दीमक प्रबंधन सम्बंधित जानकारी आप सभी को मिल पायी होगी. फिर भी इस लेख से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.
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