गुग्गल की खेती कैसे करे ? – Commiphora wightii farming

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गुग्गल की खेती
गुग्गल की खेती कैसे करे ?

गुग्गल की खेती कैसे करे ? – Commiphora wightii farming

नमस्कार किसान भाइयों, गुग्गल का पौधा एक बहु उपयोगी पौधा है. यह शुष्क क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है. देश के कई राज्यों में गुग्गल की खेती की जाती है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में गुग्गल की खेती की पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है गुग्गल की खेती की पूरी जानकारी-

गुग्गल के फायदे 

यह एक बहुउपयोगी पौधा है, जिससे निकलने वाले गोंद का इस्तेमाल एलोपैथी, यूनानी तथा आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है. इसके गोंद के रासायनिक तथा क्रियाकारक तत्व, संधिवात, मोटापा दूर करने, तांत्रिकीय असंतुलन, रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा एवं कुछ अन्य व्याधियों के उपचार में अत्यधिक प्रभावकारी पाये गये हैं। गुग्गल के लोबान का धुआं क्षय रोग में भी हितकारी पाया गया है. विश्लेषणों से पता चला है कि इनमें स्टेरॉयड वर्ग के दो महत्वपूर्ण यौगिक, जेड–गुग्गलस्टेरोन तथा ई-गुग्गलस्टेरोन पाये जाते हैं.

इसके अतुलनीय औषधीय गुणों को ध्यान में रखते हुए अनेक दवा निर्यातक कंपनियों ने गुग्गल गोंद का उपयोग कई व्याधियों के उपचार हेतु किया हैं. विश्व बाजार में इसकी तेजी से बढ़ती हुई मांग के कारण भारतीय जंगलों से भी इस पौधे का सफाया होता जा रहा है. इस बहुमूल्य पौधे के अत्यधिक दोहन के कारण विगत वर्षों में इसका प्राकृतिक हास तेजी से हुआ है. इसी विनाश की वजह से इसे भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण ने विलुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है। इसके प्राकृतिक वास के विनाश की वजह से अब केवल कुछ ही बड़े पौधे मिल पाते है, वह भी अधिकांशतः उन क्षेत्रों में जहां पहुंचना दुर्गम है. अतः इसका अस्तित्व खतरे में हैं. देश में इसके उत्पादन तथा मांग-पूर्ति के बीच का अंतराल निरंतर बढ़ता जा रहा है.

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क्षेत्र एवं वितरण 

गुग्गल का वैज्ञानिक नाम कमिफोरा वाइटी (Commiphora wightii) है. यह बरसरेसी (Burseraceae) कुल का पौधा है. इसकी उत्पत्ति अफ्रीका तथा एशिया माना जाता है. विश्व में यह अफ्रीका के सोमालिया, केन्या, उत्तर-पूर्व इथोपिया, जिम्बोम्बे, बोत्सवाना एवं दक्षिण अफ्रीका तथा एशिया में पाकिस्तान के सिंध एवं बलूचिस्तान में पाया जाता है. भारत में कर्णाटक, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आसाम, सिलहट, बंगाल, मैसूर आदि क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप में पाया जाता है.

भूमि एवं जलवायु 

गुग्गल एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है. गर्म तथा शुष्क जलवायु इसके लिए उत्तम पायी गयी है. सर्दियों के मौसम में जब तापमान कम हो जाता है तो पौधा सुषुप्तावस्था में पहुंच जाता है और वानस्पतिक वृद्धि कम हो जाती है. इसकी फसल गुजरात, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में की जा सकती है। प्राकृतिक रूप में यह पहाड़ी एवं ढालू भूमि में उगता है। उन क्षेत्रों में जहां वार्षिक वर्षा 10 से 90 सें. मी. तक होती है तथा पानी का जमाव नहीं होता है, इसकी बढ़वार अच्छी पायी गयी है। इसमें 40 से 45 डिग्री सेल्सियस की गर्मी से 3 डिग्री सेल्सियस तक की ठंड सहन करने की क्षमता होती है.

यह समस्याग्रस्त भूमि जैसे लवणीय एवं सूखी रहने वाली भूमि में सुगमता से उगाया जा सकता है. दुमट व बलूई दुमट भूमि जिसका पी.एच मान 7.5-9.0 के बीच हो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त पायी गयी है। इसे समुचित जल निकास वाली काली मिट्टियों में भी सुगमतापूर्वक उगाया जा सकता है. भूमि में पानी का निकास काफी अच्छा होना चाहिए. वैसे पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए अधिक धूप वाली ढलान भूमि का चुना करना चाहिए. क्षारीय जल, जिसका पी.एच. मान 8.5 तक होता है, के प्रयोग से भी पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता.

उन्नत किस्में 

इसमे प्रजातियों के विकास पर ज्यादा कार्य नहीं हुआ है, लेकिन हाल ही में मरूसुधा नामक किस्म को केन्द्रीय औषधीय एवं सगंधीय संस्थान, लखनऊ ने विकसित किया है, जो गुग्गल गोंद की अधिक पैदावार देती है.

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नर्सरी तैयारी

गुग्गल के पौधों का प्रवर्धन बीजों द्वारा अथवा कलम लगाकर किया जा सकता है.

बीजों द्वारा- प्रकति में गुग्गल का मुख्य प्रवर्धन बीजों के द्वारा होता है| शुष्क क्षेत्रों में सर्दियो को छोडकर बीज लगातार बनते रहते है. अप्रैल से मई में प्राप्त होने वाले बीजों की तुलना में जुलाई से सितंबर में प्राप्त होने वाले बीजो की अंकुरण क्षमता ज्यादा होती है. मानसून में इसके बीजों के अंकुरण के लिए उपयुक्त वातावरण रहता है. परिपक्व बीजों को पहले मिट्टी के साथ रगडकर धोते है.

कलम द्वारा- गुग्गुल के पौधे कलम द्वारा सफलतापूर्वक तैयार किये जा सकते है| इसकी 25 से 30 सेंटीमीटर लम्बी एवं 3 से 4 सेंटीमीटर व्यास वाली कलमों को 15 जनवरी से 15 फरवरी तक रेत वाली क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपना चाहिए| पॉलीथीन की थैलियों का उपयोग भी किया जा सकता है.

कलम की मोटाई तर्जनी अंगुली से पतली तथा हाथ के अंगुठे से मोटी नहीं होनी चाहिए| सुदृढ जड विकसित होने के लिए पादप हार्मोन इन्डौल ब्यूटायरिक अम्ल (आई बी ए) के 250 पी पी एम के घोल से उपचारित करना चाहिए| इस प्रकार पौधों को लगभग 6 माह तक नर्सरी में रखने के बाद बरसात के मौसम में खेत में रोपित कर देना चाहिए.

खेत में पौधों की रोपाई

सामान्यतः पौधों को 3×3 मीटर की दूरी पर 30x30x30 से.मी. के गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए और 3 से 5 कि.ग्रा. पूर्ण रूप से सड़ी हुई गोबर की खाद को मिट्टी के साथ मिलाकर 5 सें.मी. की उंचाई तक गड्ढ़ो में भर देना चाहिए. यदि प्रक्रिया 15 जून से पहले पूर्ण कर लेनी चाहिए। वर्षा होने के पश्चात जुलाई के महीने में पौधे की रोपाई करनी चाहिए.

सिंचाई 

गुग्गल के पौधे को एक बार खेत में अच्छी प्रकार से स्थापित होने के बाद बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है. वर्षा नही होने पर पांच वर्ष की उम्र तक इसके पौधों को शरद ऋतु में एक सिंचाई की आवश्यकता होती है. आठ वर्ष की उम्र के बाद जब पौधे पूर्ण विकसित हो जाये तब गर्मियों में 2 से 3 सिंचाई करनी चाहिए.

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खरपतवार नियंत्रण 

वर्षा के मौसम में, खेत में खरपतवार काफी मात्रा में हो जाते है. खरपतवारों की अधिक मात्रा होने पर पौधों को पोषक तत्वों एवं पानी की उपलब्धता कम हो जाती है, इसलिए सितबंर एवं दिसबंर में निराई-गुडाई करना उपयोगी होता है.

गुग्गल से गोंद निकालने की विधि 

सामान्यतः 6 से 8 वर्ष पुरानी झाड़ियां, गोंद निकालने हेतु तैयार हो जाती है. झाड़ियों के तने पर चीरा दिसम्बर से फपरवरी में लगाना चाहिए. चीरा लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चीरा बाहरी छाल की मोटाई से ज्यादा न हो. गोंद पीले रंग के गाढ़े द्रव्य के रूप में बाहर निकलता है. चीरा लगाने के दस से पन्द्रह दिनों के बाद गोंद इकट्ठा कर लेना चहिए. गोंद इकट्ठा करते समय सफाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, जिससे बालू या मिट्टी गोंद के साथ मिश्रित न हो सके.

उपज 

6 से 8 साल पुरानी झाड़ियों से औसतन 300 से 400 ग्राम गोंद प्राप्त होता है. जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है.

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