करेला की खेती कैसे करे ? | How to cultivate bitter gourd
नमस्कार किसान भाईयों, करेला की खेती देश में खरीफ और जायद दोनों ऋतुओं में समान रूप से की जाती है. यह अपने औषधियों गुणों के कारण सब्जियों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है. इसकी खेती देश के सभी भागों की जा सकती है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में करेला की खेती की पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज ले पाए. तो आइये जानते है करेला की खेती की पूरी जानकारी-
करेला के फायदे
करेला की सब्जी में बहुत ही औषधीय गुण होते है. यह स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है. करेले के कच्चे फलों का रस मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है. और उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए काफी उपयोगी होता है. इसमें उपस्थित कडुवाहट (मोमोर्डसीन) मनुष्य के खून को साफ़ करने में काफी उपयोगी साबित होती है. वर्तमान में करेला का चिप्स पाउडर, जूस इत्यादि उत्पाद बनाए जा रहे है.
उत्पत्ति एवं क्षेत्र
करेला का वानस्पतिक नाम मोमोर्डिका चरान्शिया (Momordica charantia) है. यह कुकुरबिटेसी (Cucurbitaceae) कुल का पौधा है. करेला की उत्पत्ति भारत में हुई और इसे 14वी शताब्दी में चीन में पेश किया गया. विश्व में इसकी खेती चीन, अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिणी एशिया और दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों में की जाती है. भारत में इसकी खेती सभी राज्यों में की जाती है.
जलवायु एवं भूमि
इसकी अच्छी पैदावार के लिए गर्म एवं आर्द्रता वाले भौगोलिक क्षेत्र सर्वोत्तम होते है. इसलिए इसकी फसल जायद तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में सफलतापूर्वक उगाई जाती है. किन्तु संरक्षित दशा में पूरे वर्ष की जा सकती है. बीज अंकुरण के लिए 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड और पौधों की बढवार के लिए 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उत्तम होता है.
इसकी अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट तथा जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी जिसमें जल धारण क्षमता अधिक हो उपयुक्त होती है. करेला की खेती के लिए 6.0 से 7.0 तक का पी०एच० मान उपयुक्त होता है. पथरीली या ऐसी भूमि जहाँ पानी भरता हो तथा जल निकास का अच्छा प्रबंध न हो इसकी खेती के लिए अच्छी नही होती है.
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उन्नत किस्में
करेला की उन्नत किस्में निम्न लिखित है-
पूसा दो मौसमी – यह किस्म दोनों मौसम (खरीफ व जायद) में बोई जाती है. यह किस्म लगभग 55 दिन में तैयार हो जाती है. फल हरे, मध्यम छोटे तथा 18 सेमी० लम्बे होते है.
पूसा विशेष – इसके फल हरे, पतले मध्यम आकार के तथा खाने में स्वादिष्ट होते है. औसतन एक फल का वजन 115 ग्राम होता है. इसकी उपज 11.4 से 13.0 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
अर्का रहित – इस प्रजाति के फल चमकीले हरे, आकर्षक, चिकने, अधिक गूदेदार तथा मोटे छिलके वाले होते है. फल में बीज कम तथा कड़वापन भी कम होता है. इसकी उपज 13.0 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
कलयाणपुरी बारह मासी – इस किस्म के फल काफी लम्बे तथा हल्के रंग के होते है. यह किस्म खरीफ ऋतु के लिए उपयुक्त होती है. मचान बनाकर खेती करने पर लम्बे समय तक पौधे पर फल विकसित होते रहते है.
खेत की तैयारी
करेले की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी बहुत ही आवश्यक है. खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चहिये. इस्क्ले बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी एवं समतल बना देना चाहिए.
बीज की मात्रा एवं बुवाई
करेले की एक हेक्टेयर बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है. एक स्थान पर 2 से 3 बीज 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए.
बुवाई का समय
करेले की बुवाई गर्मी के सीजन में 15 फरवरी से 15 मार्च तक व वर्षा के सीजन में 15 जून से 15 जुलाई तक की जाती है.
बुवाई की उचित दूरी
करेले की बुवाई खेत में मेड़ बनाकर करनी चाहिए. जिसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 मीटर से 2.5 मीटर तक और पौधे से पौधे की दूरी 45 से 50 सेमी० रखनी चाहिए. अच्छी प्रकार से तैयार किये गए खेत में 2 से 5 मीटर की दूरी पर 50 से 60 सेमी० चौड़ी नाली बनाकर नालियों के दोनों किनारों पर बुवाई करते है.
सिंचाई
मिट्टी की किस्म एवं जलवायु पर निर्भर करती है. खरीफ ऋतु में खेत की सिंचाई करने की आवश्यकता नही होती परन्तु वर्षा न होने पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. अधिक वर्षा के समय पानी के निकास के लिए नालियों का होना अत्यंत आवश्यक है. गर्मियों में अधिक तापमान होने के कारण 4 से 5 दिन पर सिंचाई करना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
वर्षा ऋतु या गर्मी में सिंचाई के बाद खेत में काफी खरपतवार उग आयें हो तो उनको निकाल देना चाहिए. अन्यथा तत्व व नमी जो मुख्य फसलों को उपलब्ध होना चाहिए बेकार चला जाता है. करेले में पौधे की वृध्दि एवं विकास के लिए 2 से 3 बार गुड़ाई करना चाहिए.
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सहारा देना
करेले की बेल को किसी लकड़ी से सहारा देने से फल जमीन के संपर्क से दूर रहते है. इससे फलों का आकार एवं रंग अच्छा रहता है. तथा पैदावार भी बढ़ जाती है. इसके लिए प्रत्येक पौधे को सहारा देना चाहिए.
फलों की तुड़ाई एवं उपज
जब फलों का रंग गहरे हरे से हल्का हरा पड़ना शुरू हो जाए तो फलों की तुड़ाई करने के लिए उत्तम माना जाता है. फलों की तुड़ाई एक निश्चित अंतराल पर करते रहना चाहिए, ताकि फल कड़े न हो अन्यथा बाजार में उनकी मांग कम होती है. बोने के 60 से 75 दिन बाद फल तोड़ने योग्य हो जाते है. यह कार्य हर तीसरे दिन करना चाहिए.
करेले की अच्छी तरह से की गयी देखभाल और ऊपर बताई गयी कृषि क्रियाएं अपनाने से इसकी औसत उपज 100 से 150 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon kisan) का यह लेख करेला की खेती से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. फिर भी करेला की खेती से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.
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आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.