आम का पर्ण फुदका कीट | Mango foliage insect

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आम का पर्ण फुदका
आम का पर्ण फुदका कीट | Mango foliage insect

आम का पर्ण फुदका कीट | Mango foliage insect

नमस्कार किसान भाईयों, आम का पर्ण फुदका कीट बहुत ही विनाशकारी कीट है. यह कीट आम की फसल को बहुत ज्यादा हानि पहुंचता है. जिससे बागवानी करने वाले किसान भाईयों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में आम का पर्ण फुदका कीट की पूरी जानकरी व बचाव के के बारे में बताएगा. जिससे किसान भाई इस कीट से अपनी आम की फसल का बचाव कर लाभ उठा पाए. तो आइये जानते है आम का पर्ण फुदका कीट की पूरी जानकारी-

पर्ण फुदका कीट की पहचान 

यह कीट आअकर में पच्चड़ की शक्ल का आगे की तरफ चौड़ा और पीछे की तरफ पतला तथा मटमैला भूरे रंग का होता है. इसके अर्भ्रक हरापन लिए पीले रंग के होते है. ये अधिकांशतः पत्तियों, पेड़ों की छालों व फूलों पर बड़ी संख्या में पाए जाते है. इसकी तीन जातियां पायी जाती है.

  • आइडियोसेरस ऐटकिन्सोनाई के फुदके अन्य दो जातियों से आकार में बड़े होते है. ये लगभग 5 मिमी० लम्बे होते है. दिन में ये दरारों या छाल के नीचे छिपे होते है. लेथरी ने 1970 में इसको नये वंश एमेरिटोडस (Amaritodus) के अंतर्गत रखकर इसका नाम ए० ऐटकिन्सोनाई कर दिया है.
  • आई० क्लाइपिएलिस तीनों जातियों में सबसे छोटा होता है. इसके फुदके लगभग लगभग 3.5 मिमी० लम्बे होते है. और इसका रंग हल्का होता है. इसे पौधों की छालों पर बहुत कम देखने को मिलते है. ये अक्सर काफी संख्या में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते है.
  • आई० नीबियोस्पार्सस के फुदके आकार में आइडियोसेरस ऐटकिन्सोनाई से छोटे और आई० क्लाइपिएलिस से बड़े होते है.

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कीट पाया जाने वाला क्षेत्र 

यह कीट फिलीपाइन, ताइवान, वियातमान, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, बांग्लादेश, चीन व लेबनान में पाया जाता है. भारत में यह कीट लगभग सभी राज्यों में पाया जाता है. आइडियोसेरस ऐटकिन्सोनाई उत्तरी भारत में अधिक पाया जाता है. आई० क्लाइपिएलिस दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है. वैसे यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है. आई० नीबियोस्पार्सस दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है. इसके अलावा यह कीट उत्तर प्रदेश, पंजाब व बिहार में भी काफी क्षति पहुंचता है.

आम के फसल को क्षति 

यह कीट आम की फसल को काफी नुकसान पहुंचता है. इसके द्वारा होने वाली क्षति का अनुमान विभिन्न राज्यों में 20 से 100 प्रतिशत तक लगाया जाता है. यह कीट आम की फसल को निम्न प्रकार से क्षति पहुंचता है.

  • इस कीट की मादा बौर वाली शाखाओं व फूलों में बड़ी संख्या में अंडे देती है. जिससे इनके तंतुओं को भारी क्षति पहुंचती है. और वे सूख कर गिर जाते है.
  • इस कीट के अर्भक व वयस्क बड़ी संख्या में पौधों की पत्तियां, मुलायम टहनियों और फूलों से रस चूसते है. जिसके परिणाम स्वरूप पौधों की बढवार रुक जाती है. फल सूखकर झड जाते है. फलतः फलों की संख्या बहुत कम हो जाती है. छोटे फलों के डंठलों का रस चूसने की वजह से वे भी गिर जाते है.
  • ये कीट पत्तियों की सतह पर एक प्रकार का द्रव निकलते है. जिसे मधुस्राव कहते है. इससे पत्तियों के प्रष्ठ भाग पर काली फफूंदी उग जाती है. यह फफूंदी पौधों की भोजन बनाने में बाधा पहुंचाती है. परिणाम स्वरूप पौधों पर फूल कम लगते है. और छोटे-छोटे फल झड़ जाते है.

अन्य परपोषी पौधे 

यह कीट आम के अलावा सपोटा, नींबू की जातियां व कैलोफाइलस इनोफाइकम पर भी पाया जाता है.

कीट का जीवन चक्र 

मादा अपने अंडनिक्षेपक (Ovipositor) से पत्तियों की मध्य शिराओं, फूलों के डंठलों एवं फूलों में छेद करके 100 से 200 अंडे एक-एक करके अलग-अलग देती है. ये अंडे 5 से 7 दिन में फूट जाते है. और छोटे-छोटे अर्भक निकल आते है. ये अर्भक 4 से 5 बार निर्मोचन करके दक्षिण भारत में 10 से 13 दिनों में और उत्तर भारत में 18 से 20 दिनों पूर्ण विकसित हो जाते है. उत्तर भारत में इस कीट के एक वर्ष में दो जीवन चक्र पाए जाते है. बसंतकालीन जीवन चक्र फरवरी से अप्रैल तक और ग्रीष्मकालीन जीवन चक्र जून से अगस्त पाया जाता है. इसमें से पहले जीवनचक्र के फुदके अधिक क्षति पहुंचाते है. क्योकि ये आम के बौर का रस चूसते है.

ये कीट शीतकाल वयस्क अवस्था में पौधों की छाल के नीचे छिपकर व्यतीत करते है. यह नमी वाले और छायाकार स्थान पसंद करते है. ऐसे बागों में जो ज्यादा घने होते है. और जिसमें पानी भरा रहता है, इन कीटों का प्रकोप अधिक होता है. यदि इनके प्रकोप के समय बादल रहते है. और पुरवाई हवा चलती है. तो इस कीट का अधिक प्रकोप होता है.

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कीट का नियंत्रण 

  • बाग़ ज्यादा घना नही लगाना चाहिए.
  • बाग़ को साफ़ रखना चाहिए और उसमें पानी नही रुकने देगा.
  • सुब्रामणियम (1922) ने इस फुदके के चार प्राकृतिक परिजीवी बताये है- (1) पाईपंकुलस एनुलीफीमर (Pipunculus anulifemur) (2) पाइरोलोक्सेनोस कम्पेक्टस (Pyrilloxenos compactus pierco) (3) एपीपाइसेप्स फुलीजिनोसा (Epipyrops fuligennosa Tams) 
  • एक बिना पहिचाने हुए ड्राइनिड कीट के भ्रंगक फुदको के वृक्ष से एक विशेष प्रकार के खोल के एंड बंद रह कर छिपाते रहते है.
  • कीटनाशी रसायनों का प्रयोग भी इस कीट के नियंत्रण में काफी उपयोगी सिध्द हुआ है. डी० डी० टी०, टाक्साफिन, बी० एच० सी०, कार्बारिल, मेलाथियान, डी० डी० वी० पी०, क्लोरडैन व फोलिडाल इस कीट के नियंत्रण के लिए उपयोगी सिध्द हुआ है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से आम का पर्ण फुदका कीट से सम्बंधित जानकारी मिल पायी होगी. फिर भी आम के कीटों से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये, महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.   

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