अमरुद के प्रमुख रोग : कैसे करे पहचान एवं रोकथाम
नमस्कार किसान भाईयों, अमरुद की बागवानी देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है. जिससे किसान भाई काफी अच्छा लाभ कमाते है. लेकिन कभी-कभी अमरुद की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग से ग्रसित हो जाती है. जिससे बागवानी करने वाले किसानों को काफी हानि पहुंचती है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में अमरुद के प्रमुख रोग के बारे में पूरी जानकारी देगा. जिससे बागवान किसान भाई इन रोगों के प्रकोप से अपनी अमरुद की फसल को बचा सके. तो आइये जानते है, अमरूद के प्रमुख रोग (Major guava diseases) कौन-कौन से है, साथ ही इनकी पहचान और रोकथाम कैसे करे-
म्लानि या उकठा रोग (Wilt)
यह रोग विशेषकर उत्तर प्रदेश में अमरुद के रोगों में सबसे अधिक विनाशकारी रोग है. सर्वप्रथम सन 1935 में यह रोग इलाहाबाद में पाया गया. उत्तर प्रदेश के अमरुद उत्पादन करने वाले लगभग हर जिले में इस रोग का असर है. जिसके कारण प्रतिवर्ष 5 से 10 प्रतिशत पौधे मर जाते है.
रोग के कारक
अमरूद का यह रोग कई प्रकार के फफूंदियों से उत्पन्न बताया गया है. परन्तु फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम उपजाति साईंडाई प्रमुख रूप से उत्तरदायी है.
रोग की पहचान
इस रोग के लक्षण प्रायः वर्षा काल समाप्त होते ही विशेष रूप दिखाई देने लगते है. प्रारंभ में ऊपरी पत्तियों में पीलापन आ जाता है. तथा छाल की सतह बदरंग हो जाती है. और सूखने लगती है. यही प्रक्रिया धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ती जाती है. और पूरा पौधा मुरझाकर अंत में सूख जाता है. कभी-कभी पौधे का कुछ भाग ही प्रभावित होकर सूखता है. शेष हरा बना रहता है. रोग ग्रसित पौधों की जड़ों तथा टहनियों को बीच से फाड़कर देखने पर बीचोबीच में गहरी कत्थई या भूरी रंग की लाइन दिखाई देती है.
रोग की रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए निम्न उपाय करना चाहिए-
- बगीचे में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए.
- नए पौधों को लगाने से पूर्व गड्ढों को फार्मलीन से उपचारित किया जाय.
- प्रत्येक गड्ढे में 20 से 25 किग्रा० ट्राइकोडर्मा विरडी या एस्परजिलस नाइजर मिली हुई गोबर की खाद डालने के उपरांत ही पौधे लगाने चाहिए.
- रोगी पौधों को निकालकर जला दिया जाय.
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तना कैंकर रोग (Stem Canber)
यह रोग सर्वप्रथम सन 1936 में मुंबई में पाया गया. इस समय अमरुद पैदा करने वाले लगभग सभी क्षेत्रों में यह रोग पाया जाता है.
रोग के कारक
यह दिप्लोडिया नेटालेंसिस नामक कवक से उत्पन्न होने वाला रोग है.
रोग की पहचान
इस रोग के प्रारंभिक लक्षण शाखाओं की छाल पर दिखाई देता है. तने और शाखाओं की छाल फट जाने से उनमें दरारे पड़ जाती है. रोग ग्रसित भाग मुरझा जाते है. यदि रोग जनक विस्तुत रूप में पूरे पेड़ पर फैल जाता है. तो पूरा पौधा सूख जाता है. रोग ग्रसित भाग पर रोग जनक कवक के गहरे भूरे या काले फलनकाय दिखाई देते है.
रोग की रोकथाम
- रोग ग्रसित शाखाओं को काटकर निकाल दिया जाय तथा कटे भाग पर वोर्ड़ो पेस्ट (1:1:3) या कॉपर सल्फेट का पेस्ट लगा दिया जाय.
- प्रत्येक छंटाई के बाद मैन्कोजेब के 0.3 प्रतिशत (3.0 ग्रा० प्रति लीटर पानी) जलीय घोल का 2 से 3 प्रतिशत छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर किया जाय.
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श्याम व्रण रोग (Anthracnose)
अमरुद का यह रोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा तराई के क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है. उत्तर प्रदेश में यह रोग सर्प्रथम सन 1951 में पाया गया था.
रोग के कारक
यह कोलेटोट्राइकम साइडाई नामक कवक से उत्पन्न होने वाला रोग है.
रोग की पहचान
इस रोग के लक्षण मुख्यतः फलों पर दिखाई देते है. रोगी फलों पर खुरदरे फफोले बन जाते है. जो आपस में मिलाकर 5 से 6 मिली० व्यास के हो जाते है. कालांतर में आकार तथा संख्या में बढ़ने के कारण इनके द्वारा फलों का अधिकाँश भाग प्रभावित हो जाता है. रोग ग्रसित फल खाने लायक नही रह जाते है. पेड़ पर लटके हुए या नीचे गिरे सड़े सूखे फल रोग की विशिष्ट पहचान है. इस रोग का संक्रमण कलियों और पुष्पों में भी होता है. जिससे कच्चे फल सूखकर सिकुड़ जाते है.
रोग की रोकथाम
इस रोग की रोकथाम निम्न प्रकार से करनी चाहिए-
- बाग़ में साफ़-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
- बाहर भेजने तथा भंडारण गृह में रखने हेतु स्वस्थ फलों का ही चुनाव किया जाय.
- लाल गूदे वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए.
- पेड़ पर रोग के लक्षण प्रकट होते ही जिनेब की 2.5 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 3.0 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव किया जाय.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से अमरुद के प्रमुख रोग के बारे में जानकारी मिल पायी होगी. फिर भी अमरुद के रोगों से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये, महान कृपा होगी.
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.