Sugarcane Farming – गन्ना की खेती कैसे करे ? जानिए हिंदी में

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) कैसे करे ?

गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) देश की प्रमुख नगदी फसल है. जिस पर कृषि आधारित चीनी उद्योग निर्भर करता है. जिससे किसनों को अच्छा लाभ मिलता है. आज गाँव किसान (Gaon Kisan) अपने इस लेख के जरिये आप सभी को गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) के बारे में पूरी जानकारी देगा. वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई खेती कर अच्छी उपज प्राप्त कर सके.तो आइये जानते है गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) की पूरी जानकारी –

गन्ने का उपयोग 

गन्ने का उपयोग चीनी, खांडसारी तथा गुड़ तैयार किया जाता है. गन्ना उद्योग से खोई और छोटा उप-उत्पादन के रूप में मिलता है. खोई का उपयोग ईंधन, कागज, प्लास्टिक, बोर्ड, आदि चीजे बनाने में आता है. इसके अलावा शीरे का उपयोग विभिन्न प्रकार के अल्कोहल उद्योग, सिट्रिक अम्ल, इथनाल-बिजली उत्पादन आदि में किया जाता है. शीरे का उपयोग पशुआहार बनाने में भी किया जाता है. गन्ने के पौधे का उपरी हरी पत्ती पशु चारा का उत्तम स्रोत है. गन्ना उद्योग से निकला प्रेसमड लवणीय-क्षारीय मिट्टी को सुधारने के काम में आता है. शहरों में पूरे साल गन्ने के रस का व्यवसाय चलता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र (Sugarcane farming)

अधिकतर वैज्ञानिकों का मत है कि गन्ने की उत्पत्ति भारत में हुई है. कुछ ऐसे प्रमाण उपलब्ध है कि भारत में गन्ने की खेती ऋग्वेद काल (2500-1400 ई० पू०) में की जाती थी. सन 600 ई० में चीनी लोग गन्ने से चीनी बनाने की विधि सीखने भारत में पाटलीपुत्र आये थे, जिससे पता चलता है कि उन दिनों भारत में गन्ने से शर्करा बनाने की विधि ज्ञात थी. धीरे-धीरे गन्ना दुनिया के उन सभी भागों में पहुँच गया, जहाँ की जलवायु इसके लिए उपयुक्त थी. सोलहवी शताब्दी तक गन्ना यूरोप के विभिन्न देशों और ब्राजील, क्यूबा तथा मैक्सिको जैसे दूरस्थ देशों के बीच एक व्यापारिक कड़ी बन गया. भारत में गन्ना उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात आदि प्रमुख राज्यों में उगाया जाता है.

जलवायु (Sugarcane farming)

गन्ना के अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 33 डिग्री से 38 डिग्री सेल्सियस तक होता है. जब तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो अंकुरण कम हो जाता है. बढ़वार के समय लम्बी अवधि तक गर्म और नम मौसम तथा अधिक वर्षा अनुकूल है. गन्ना 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अच्छा विकास करता है. तैयार होते समय आमतौर पर शुष्क, ठंडा तथा पाले रहित मौसम और चमकीली धूप तथा किसी प्रकार की आंधी तथा ठंडी हवा का न चलना, गन्ना की फसल के लिए अच्छा रहता है.

भूमि (Sugarcane farming)

 गन्ना की खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी होती है. इसे चिकनी तथा बलुई मृदा में भी लगाया जा सकता है. गन्ना की खेती के लिए मृदा का पी० एच० मान 6.0 से 7.5 उपयुक्त माना गया है.

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उन्नत किस्में (Sugarcane farming)

परिस्थित  किस्म  औसत उपज (टन/हेक्टेयर) रस में चीनी की मात्रा 
आगात (मध्य नवम्बर से करने योग्य ) बी० ओ० 120

बी० ओ० 130

बी० ओ 138

बी० ओ० 139

बी० ओ० 145

सी० पी० ओ० 9301

82

72

75

84

82

83

17.2

17.5

17.1

17.4

17.4

17.3

मध्य कालीन किस्म (जनवरी से करने योग्य) सी० ओ० पी० 9206

सी० ओ० पी० 9702

सी० ओ० पी० 9302

बी० ओ० 91

बी० ओ० 136

बी० ओ० 137

बी० ओ० 141

बी० ओ० 147

 

82

78.5

90

70

80

80

88

88.5

17.6

17.4

17.2

16.7

16.9

16.9

16.8

17.6

खेत की तैयारी (Sugarcane farming)

गन्ने की खेती के लिए खेत की दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर से करने के बाद एक-दो बार देशी हल से जोत कर मिट्टी को बारीक व हल्का बना लेना चाहिए. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना आवश्यक है ताकि जमीन समतल एवं मिट्टी में नमी बरकरार रहे.

बीज दर (Sugarcane farming)

सिराउर एवं नाली विधि में 50 से 60 कुंटल प्रति हेक्टेयर या 45 से 50 हजार तीन आँखों वाली गेडिया (गिल्लियां). दोहरी जुडवा पंक्ति विधि में 75 से 80 कुंटल प्रति हेक्टेयर या 60 से 65 हजार तीन आँखों वाली गेड़ियाँ (गिल्लियां) की आवश्यकता पड़ती है.

बीज का चुनाव (Sugarcane farming)

बुवाई हेतु गन्ने के उपरी दो तिहाई भाग को जो स्वस्थ, रोग एवं कीट ब्याधि से मुक्त हो एवं जल जमाव रहित क्षेत्रों में उगाया गया हो का चुनाव करना चाहिए.

बीजोपचार (Sugarcane farming)

रोपाई से पूर्व गन्ने की गेड़ियाँ (गिल्लियां) को बेविस्टीन दवा के 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घंटा डुबाकर उपचारित कर लेना चाहिए.

मृदा उपचार 

क्लोरपाईरीफ़ॉस 20 प्रतिशत तरल 5 लीटर दवा को 1500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करे अथवा 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फोरेट 10 जी दवा को नाली में गेड़ियों (गिल्लियों) के ऊपर बुरकाव करना चाहिए.

रोपाई का समय 

शरद कालीन बुवाई 

शरद कालीन गन्ने की बुवाई 15 अक्टूबर से 30 नवम्बर के मध्य में की जाती है.

बसंत कालीन बुवाई 

बसंत कालीन गन्ने की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य में की जाती है.

रोपण विधि एवं दूरी 

सिराऊ विधि 

इस विधि में 90 सेमी० की दूरी पर 20 से 25 सेमी० गहरी सिराउर खोलकर अनुशंसित मात्रा में उर्वरक डालकर गन्ने की गेड़ियाँ (गिल्लियां) को सिराउर में आँख से आँख मिलाकर बिछा देना चाहिए. इसके बाद मिट्टी उपचार कर गेड़ियों (गिल्लियां) को ढक देना चाहिये.

ट्रेंच विधि 

यह विधि उपजाऊ मृदा में जहाँ सिंचाई की सुविधा पर्याप्त होती है, अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अपनाई जाती है. इस विधि में एक महीने पहले 90 सेमी० की दूरी पर 30 सेमी० गहरी और 30 सेमी० चौड़ी नाली बनाई जाती है तथा नालियों में गन्ने की रोपाई कर दी जाती है.

उचित दूरी 

गन्ने की बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेमी० रखनी चहिये. इससे अधिक उपज होती है.

खाद एवं उर्वरक (Sugarcane farming)

गन्ने की रोपाई से 20 से 30 दिन पूर्व जुताई करते समय खेत में 10 से 15 टन गोबर की सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए.

  • सिंचित अवस्था – 150:85:60 एन० पी० के० किग्रा० प्रति हेक्टेयर
  • असिंचित अवस्था – 110:85:80 एन० पी० के० किग्रा० प्रति हेक्टेयर

सिंचित अवस्था में नत्रजन की 70 किलो मात्रा एवं स्फूर तथा पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय प्रयोग करे. नत्रजन की शेष 80 किलो मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर रोपाई के 8 सप्ताह बाद घुटने की उंचाई की फसल होने पर (पहली सिंचाई के बाद) तथा आद्रा नक्षत्र में मिट्टी चढाते समय डालनी चाहिए.

असिंचित क्षेत्रों में 40 किलो नत्रजन (88 किलोग्राम यूरिया) से केवल एक उपरिवेशन मिट्टी चढाते समय कर ले.

ट्रेंच एवं जुडवा पंक्ति विधि में उर्वरकों की इन अनुशंसित मात्रा के अलाव 8 कुंटल खल्ली (40 किलोग्राम नत्रजन) रोपाई करते समय प्रयोग करे.

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन 

प्रत्येक सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए. फसल को लगभग 60 दिनों तक खरपतवार रहित रखना चाहिए. खरपतवारनाशी एट्राजीन 2.5-3.0 किग्रा० प्रति हेक्टेयर 700 से 800 लीटर पानी में घोल कर रोपण के 3 दिनों के अन्दर छिड़काव कर देना चाहिए.

मिट्टी चढ़ाना 

फसल को गिरने से बचाने के लिए आद्रा नक्षत्र में मानसून की वर्षा प्रारम्भ होने पर नत्रजन का अंतिम उपरिवेशन कर पौधे पर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए.

फसल की बंधाई 

जब फसल की वृध्दि काफी हो जाय तब उसे गिरने से बचाने हेतु अगस्त-सितम्बर माह में हथिया नक्षत्र से पहले पत्ती रस्सी विधि द्वारा फसल की बंधाई कर लेना चाहिए.

कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन 

क्र० सं०  फसल का नाम कीट ब्याधियाँ/रोग के  कीट ब्याधियाँ/रोग के कारकों के नाम  लक्षण प्रबंधन 
1. गन्ना या ईख (Sugarcane) शीर्ष छेदक (Top borer) ट्राइपोराइजा नियेला (Tryporiyea nivella) कीट के आक्रमण से पौधों की बाढ़ रुक जाती है और पौधों की बगल से शाखाएं निकल आती है और बीच की पत्ती ईट के रंग की तरह हो जाती है.इन पत्तियों में छोटे-छोटे पिल्लू दिखाई पड़ते है. प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करना चाहिए. गन्ने के पौधों में आधार भाग थीमेट 10 जी दवा का 10 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
लाल सडन रोग (Red root) कोलेटोट्राइकम फाल्केटम (Colletotrichum falcatum) रोगग्रस्त पौधे की पत्तियां पीली होकर मुरझा जाती है. पत्तियों का मध्य शिरा लाल रंग का हो जाता है. तथा तना को चीरने पर भीतर का भाग लाल दिखाई पड़ता है. रोग ग्रस्त तना से दुर्गन्ध भी आती है. 1.स्वस्थ पौधों के पोरियाँ लगाना चाहिए.

2. एग्रोसान जी० एन० से पोरियों का उपचार करना चाहिए.

3. रोग प्रतिरोधी प्रजाति लगाना चाहिए.

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फसल की कटाई 

गन्ने की कटाई किस्म के अनुसार करनी चाहिए.ताकि अधिक उपज एवं चीनी प्राप्त की जा सके.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) का गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) से सम्बन्धित इस लेख से आप को सभी जानकारियां मिल गयी है. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा गन्ने के उपयोग से लेकर फसल कटाई तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) से सम्बन्धित आप का कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

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