Papaya Farming – पपीता की खेती कैसे करे ? बिलकुल आसान तरीके से (हिंदी में)

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पपीता की खेती (Papaya Farming) कैसे करे ?

पपीता की खेती (Papaya Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, पपीता की खेती (Papaya Farming) देश के अधिकतर राज्यों में की जाती है.इसकी खेती में लागत कम लगती है और लाभ अधिक मिलता है.आज के इस में गाँव किसान (Gaon Kisan) आप सभी को पपीता की खेती (Papaya Farming) कैसे करे ? इसकी पूरी जानकारी देगा, वह भी अपनी भाषा हिंदी में.जिससे किसान भाई इसकी खेती कर अधिक मुनाफा ले पाए.तो आइये किसान भाईयों जानते है पपीते की खेती (Papaya Farming) की पूरी जानकारी-

पपीता के फायदे 

पपीता एक बहुत ही पौष्टिक फल है.पपीते के पके हुए फल के प्रति 100 ग्राम गूदे से 40 कैलोरी ऊर्जा, 0.5 ग्राम प्रोटीन, 0.1 ग्राम वसा, 9.5 ग्राम कार्बोहाईड्रेट, 2020 आई० यू० विटामिन ए, 0.04 मि० ग्रा० विटामिन बी पाया जाता है.इसके पके फलों से जैम, स्क्वैस, हलवा, खीर, फ्रूटी आदि उत्पाद बनाए जाते है.पपीते के परिपक्व फलों (Mature fruits) से निकलने वाले दुधिया स्राव को सुखाकर पपेन बनाया जाता है.जो एक प्रोटियोलिटिक एंजाइम (Proteolytic enzyme) की तरह कार्य करता है.इसका प्रयोग मॉस को मृदु बनाने में, च्यूंगम तथा सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में किया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

पपीता (Carica papaya) कैरिकेसी (Caricaceae) कुल का एक महत्वपूर्ण पौधा है.इस फल की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका में हुई. इसे सोलहवी (Sixteenth century) सदी में भारत लाया गया था.विश्व के विभिन्न देशों जैसे आस्ट्रेलिया, हवाई, ताइवान, पेरू, फ्लोरिडा, टेक्सास, कैलिफोर्निया, गोल्ड कास्ट, मध्य एवं दक्षिणी अफ्रीका के बहुत सारे भाग, पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत आदि में पपीता की खेती (Papaya Farming) मुख्य रूप से की जाती है.पपीता उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है.

जलवायु एवं मृदा 

पपीता को मुख्य रूप से उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु वाले भागों में उगाया जाता है.इसकी अच्छी वृध्दि एवं विकास के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है.अधिक तेज हवाओं एवं 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान होने पर पौधे की वृध्दि प्रभावित होती है.

पपीते की अच्छी उपज के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है.भूमि का पी० एच० मान 6.5 से 7.5 के बीच का उपयुक्त होता है.भूमि में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए.

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प्रजातियाँ 

पपीता एक बहुलिंगी पौधा है.जिसमें नर, मादा, एवं द्विलिंगी पौधे पाए जाते है.पपीते की पृथकलिंगी (Dioecious) और उभयलिंगी (Gynodioecious) दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है.पृथकलिंगी (Dioecious) प्रजाति में नर व मादा पुष्प अलग-अलग पौधों पर निकलते है, जबकि उभयलिंगी (Gynodioecious) प्रजातियों में मादा तथा द्विलिंगी (Hermaphorodite/Bisexual) दोनों प्रकार के पौधे पाए जाते है.जबकि नर पौधे नही पाए जाते है.पपीते की मुख्य प्रजातियाँ निम्नवत है-

पृथकलिंगी (Dioecious) प्रजातियां उभयलिंगी (Gynodioecious) प्रजातियां
पूसा जायंट, पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा, सी० ओ० 1, सी० ओ० 2, सी० ओ० 5, पिंक फ्लेश स्वीट पूसा डिलिसीयस, पूसा मजेस्टी, कुर्ग हनी ड्यू, सनराइस सोलो, ताइवान, सूर्या एवं सी० ओ०-3

निम्न प्रजातियों में से कुर्ग हनी ड्यू, पूसा डिलिसीयस एवं पिंक फ्लेश स्वीट आदि प्रजातियों को पके फल के रूप में खाने के लिए उपयुक्त माना जाता है.जबकि सी० ओ० 2, सी० ओ० 5 एवं सी० ओ० 6 प्रजातियों को पपेन के उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है.इसके अलावा पूसा जायंट प्रजाति डिब्बाबंदी के लिए अच्छी मानी जाती है.

प्रवर्ध्दन 

पपीते का प्रवर्ध्दन मुख्य रूप से बीज (seed) द्वारा किया जाता है.पपीते की नर्सरी मार्च से जून के मध्य लगायी जाती है.जिससे तैयार पौध की रोपाई जुलाई-अगस्त में की जाती है.परन्तु जिस स्थान पर बारिश बहुत अधिक होती है.वहां इसकी रोपाई अक्टूबर में करना उचित रहता है.क्योकि अधिक पानी के कारण पौधे की जड़ में सड़न आरम्भ हो जाती है.इसकी डायोसियस प्रजातियों के लिए 250 से 300 ग्राम एवं गायनोडायोसियस प्रजातियों के लिए 500 ग्राम बीज की आवश्यकता है.

पौध की रोपाई 

पपीते की रोपाई के लिए सामान्य रूप से 1.8 x 1.8 मीटर की दूरी पर 60 x 60 x 60 सेमी० आकार के गड्ढे खोदते है.पपीते की सघन बागवानी के लिए 1.2 x 1.2 – 1.8 x 1.8 मीटर की दूरी पर गड्ढे तैयार किये जाते है.पपीते की विभिन्न प्रजातियों के लिए उचित रोपण दूरी निम्न प्रकार करनी चाहिए.गड्ढे से निकली मिट्टी में 20 किलो कम्पोस्ट, 1 किलो कम्पोस्ट की खली एवं 1 किलों बोन मील मिलाकर गड्ढों को भरकर सिंचाई कर देते है.जब मिट्टी बैठ जाए तो पौधों को लगाकर सिंचाई कर देते है.रोपाई के लिए पृथकलिंगी प्रजातियों जैसे सी० ओ० 1 या सी० ओ० 2 में प्रति गड्ढा 2 से 3 पौधे क्योकि पृथकलिंगी प्रजाति में सामान्यतः 50 से 60 प्रतिशत पौधे मादा एवं शेष नर होते है, जिनमें फल नही लगते है.और पौधों के लिंग की पहचान तब तक नही की जा सकती है, जब तक उनमें पुष्पन नही हो जाता है.इसलिए प्रत्येक गड्ढे में केवल एक पौधा लगाया जाय तो लगभग 50 प्रतिशत पौधों के नर निकलने की संभावना रहती है.जो आर्थिक द्रष्टि से नुकसानदायक है.गायनोडायोसियस प्रजातियों जैसे सोलो, कूर्ग हनी ड्यू आदि में केवल एक पौधा पर्याप्त होता है.क्योकि उसमें सभी पौधों में फल लगते है.अच्छे परागण हेतू खेत में 10 प्रतिशत नर पौधों का रहना आवश्यक है. डायोसियस प्रजातियों में लगभग 40 से 50 प्रतिशत मादा पौधे निकलते है तथा शेष नर पौधे प्राप्त होते है.इसलिए डायोसियस प्रजाति के पौधों में फूल आने के बाद केवल 10 प्रतिशत नर पौधों को छोड़कर शेष को उखाड़ देते है.जिससे पानी एवं पोषक तत्व आदि की बचत होती है.तथा पौधों द्वारा सूर्य विकिरण का भी अच्छी प्रकार इस्तेमाल होता है.इस के समय कमजोर या रोग ग्रस्त पौधों को भी निकाल देना चाहिए . गायनोडायोसियस प्रजातियों में इस क्रिया की आवश्यकता नही पड़ती है. क्योकि इन प्रजातियों में इस क्रिया की आवश्यकता नही होती है.क्योकि इन प्रजातियों के सभी पौधों में फलन होता है.

खाद, उर्वरक एवं सिंचाई 

पपीते के प्रत्येक पौधे को कुल 20 किलो कम्पोस्ट, 1 किलो नीम की खली, 1 किलो बोन मील, 250 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस एवं 350 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है.नाइट्रोजन, फास्फोरस, एवं पोटाश की पूरी मात्रा को चार भागों में बांटकर रोपाई के बाद क्रमशः 1, 3, 5, 7 महीने बाद देना चाहिए.

पपीते की अच्छी उपज के लिए मृदा में पर्याप्त नमी बनी रहनी आवश्यक है.किसी भी अवस्था में जल जमाव पौधे के लिए हानिकारक होता है.24 घंटे से अधिक समय तक पानी लगे रहने पर पौधे की जड़े सड़ने लगती है.तथा पौधा अंततः मर जाता है.किसी भी प्रकार की खाद एवं उर्वरक के प्रयोग के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए.ग्रीष्म काल में एक सप्ताह व जाड़े के दिनों में प्रत्येक 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए.

पपीते की तुड़ाई एवं उपज 

पपीते में रोपाई के बाद 12 से 14 महीने के अन्दर पहली तुड़ाई की जाती है.पपीते में औसतन 30 से 50 फल/70 से 80 किलोग्राम प्रति पौधा या 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है.जब फलों पर पीली धारियां दिखाई देने लगे एवं फल का तरल लैटेक्स भी पानी जैसा हो जाता है.उसी समय फलों की तुड़ाई करनी चाहिए.

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प्रमुख कीट एवं रोग 

लाल मकड़ी 

यह बहुत ही बारीक़ लाल रंग की मकड़ी होती है.यह पौधे के पत्तों के नीचे रहती है और पत्तों का रस चुसती रहती है.जिससे पत्ते सफ़ेद पड़ जाते है.पौधे की हालत खरब होने पर पौधा मकड़ी के जले से पूरी तरह ढक जाता है.

रोकथाम 

नीम के घोल का छिड़काव करने के साथ आसपास गेंदें के फूल भी लगा सकते है.इसके अलावा खेत में नमी रखे.

फल मक्खी 

फल मक्खी पपीते की उपज को नुकसान पहुंचती है.यह फलों पर अंडे देती है जिसके लार्वा बाद में फलों को नुकसान पहुंचाते है. जिससे फलों में संक्रमण हो जाता है.

रोकथाम 

इसके प्रकोप से बचाव के लिए फ्लाई ट्रेप का उपयोग कर सकते है अधिक प्रकोप होने पर मेलाथियान का प्रयोग कर सकते है.

तना विगलन 

इस रोग का प्रभाव तने और पत्तियों पर होता है.जिससे पौधों प्रभावित होता है और सूख जाता है.

रोकथाम 

इससे बचाव के लिए ग्रसित पौधों उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.अधिक प्रकोप दिखाई पड़ने पर मेन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर का प्रयोग कर सकते है.

इन रोगों के अलावा आर्द्र गलन, रिंग स्पॉट, फल विगलन, चूर्णी फफूंद, पर्ण कुंचन, मौजेक विषाणु, एन्थ्रोकनोज आदि रोग पपीते की उपज को प्रभावित करते है. इसके लिए आप नजदीकी कृषि रखा इकाई या कृषि विशेषज्ञ से राय लेकर उचित रोग उपचार कर सकते है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद करता है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख के द्वारा आपको पपीता की खेती (Papaya Farming) की पूरी जानकारी मिल पायी होगी.गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा पपीते के फायदे से लेकर रोग, कीट एवं रोकथाम तक सभी जानकारियाँ दी गयी है. किसान भाईयों फिर भी पपीता की खेती (Papaya Farming) सम्बन्धी अगर कोई प्रश्न हो तो आप कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है.इसके अलावा आप को यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये.महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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