Olive farming – जैतून की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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Olive farming
जैतून की खेती (Olive farming) कैसे करे ?

जैतून की खेती (Olive farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, जैतून की खेती (Olive farming) इसका तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है. इसका तेल काफी उच्च श्रेणी का और काफी कीमती होता है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने लेख में जैतून की खेती (Olive farming) कैसे की जाय इस बारे में पूरी जानकारी देगा, वह भी अपनी भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज ले पाए. तो आइये जानते है जैतून की खेती (Olive farming) के बारे में जानकारी-

जैतून के फायदे 

जैतून के तेल का उपयोग खाने में किया जाता है. यह एक औषधीय तेल है. इससे विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ और सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है. इसके फल को अचार और सलाद के लिए भी उपयोग किया जाता है. जैतून में प्रोटीन, खनिज लवण व विटामिन्स पाए जाते है. इसके ताजा फल में 75 प्रतिशत पानी, 2 प्रतिशत प्रोटीन, 14 प्रतिशत तेल, 4 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 6 प्रतिशत भस्म व 1 प्रतिशत रेशा पाया जाता है. जैतून के तेल का सेवन स्वास्थ्य के लिया लाभकारी होता है. यह शरीर से खराब कोलेस्ट्रोल को कम करके ह्रदय की बीमारियों को घटाता है. कैंसर होने की सम्भावना को कम करता है. इसके अलावा पाचन क्रिया बढाने व शरीर पर उम्र के प्रभाव को कम करने में उपयोगी है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

जैतून विश्व के सबसे पुराने खेती किये जाने वाले पौधों में एक है. इसकी उत्पत्ति भूमध्य सागरीय क्षेत्र के फिलीस्तीन, लेबनान, उत्तरी पश्चिमी सीरिया व साइप्रस है. विश्व में जैतून की खेती मिस्र, अमेरिका, मोरक्को, ट्यूनीशिया, सीरिया, तुर्की, इटली, पुर्तगाल, स्पेन आदि में की जाती है. भारत में इसकी खेती के लिए उत्तर भारत के क्षेत्रो में जलवायु सुलभ है. सम्रध्दी एवं शांति का प्रतीक जैतून उपोष्ण जलवायु का सदाबहार पौधा है.

जलवायु एवं भूमि 

जैतून की खेती के लिए जाड़ों के मौसम में पर्याप्त ठण्ड तथा गर्मियों में शुष्क मौसम सर्वोत्तम होता है. जाड़ों के मौसम में अच्छी ठंडक के लिए 1.5 से 10 डिग्री सेल्सियस तथा अगले दिन का तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तक उचित रहता है. जैतून के फल को पकने के लिए गर्मियों में लम्बी अवधि तक उच्च तापमान की आवश्यकता होती है.

जैतून की खेती कई प्रकार की भूमि में की जाती है. मिट्टी की ऊपरी सतह मुलायम और उपजाऊ होने से इसका पौधा अच्छा विकास करता है. भूमि का पी० एच० मान 6.5 से 8.0 के बीच का होना चाहिए. भूमि से जल निकास का उचित प्रबन्धन होना चाहिए.

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उन्नत किस्में (Olive farming)

जैतून की खेती के लिए विभिन्न प्रकार की किस्में पायी जाती है. लकिन व्यवासियक खेती के लिए निम्नवत किस्में प्रमुख है.

तेल प्राप्त करने के लिए – जैतून का तेल प्राप्त करने के लिए फ्रंटियर, लैक्सिनों, एस्कोटिराना, पेंडोलीनो आदि प्रमुख किस्में है.

अचार बनाने के लिए – जैतून से आचार बनाने के लिए एस्कालानो, कोराटीना प्रमुख किस्में है.

अन्य किस्में – जैतून की अन्य किस्मों में बरेनिया, अरबिकुना, फिशोंलिना, पिकवाल, कोरनियकी आदि प्रमुख किस्में है.

परागन वाली किस्में 

जैतून के पौधे लगाते समय इस बात ध्यान जरुर रखे, कि परागन वाली किस्मों के पौधे भी जरुर लगाए क्योकि जैतून की अच्छी उपज के लिए अधिक परागन की आवश्यकता होती है. इसलिए पौधे लगते समय 11 प्रतिशत पौधे परागन वाली किस्मों के जरुर लगाए. इसके लिए फ्रंटियों, कोराटिना, एस्कोटिराना, एस्कोलानो आदि परागन वाली किस्में है.

पौधों की रोपाई (Olive farming)

जैतून के बाग़ लगाते समय पौधे के बीच की दूरी 7 x 3/4 मीटर अथवा 6 x 3/4 मीटर रखना चाहिए. जैतून के पौधों की रोपाई के लिए 60 x 60 x 60 सेमी० आकार के गड्ढे खोद लेना चाहिए. जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती हो वहां पर गड्ढों की गहराई अधिक रखनी चाहिए.

पौधे लगाने से पहले खोदे गए गड्ढों में 10 से 15 किलों गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट खाद डालें उसके बाद पौधों की रोपाई करनी चाहिए.

दीमक के प्रभाव वाले क्षेत्रों में 50 से 100 ग्राम क्यूनालफ़ॉस 1.5 प्रतिशत का चूर्ण अथवा 3 एम० एल० क्लोरोपाईरीफ़ॉस 20 प्रतिशत ई० सी० या इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 प्रतिशत ई० सी० दवा का प्रयोग करना चाहिए.

अगर भूमि क्षारीय है तो भूमि में 1.5 से 2.0 किलोग्राम जिप्सन प्रत्येक गड्ढे में मिलाना चाहिए. जिप्सन की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर देनी चाहिए.

उर्वरक प्रबन्धन (Olive farming)

जैतून के पौधों को पोषक तत्वों की आवश्यकता उसकी उम्र, अवस्था, जलवायु एवं भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता आदि पर निर्भर करती है. पोषक तत्वों का उपयोग करते समय विशेषज्ञों सलाह जरुर ले. सामान्यतः जैतून की खेती के लिए निम्न प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है-

उर्वरक का नाम  प्रथम वर्ष (किग्रा०/हे०) द्वितीय वर्ष (किग्रा०/हे०) तृतीय वर्ष (किग्रा०/हे०)
नाइट्रोजन  25 50 80
फास्फोरस  20 40 80
पोटेशियम  20 50 120
कैल्शियम  25 50 80

कटाई -छंटाई (Olive farming)

जैतून के पौधे से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पौधों की समय-समय पर कटाई-छंटाई बहुत ही आवश्यक है. ज्यादातर पौधे को कप का आकार दिया जाता है. इसलिए पौधों को जमीन की सतह से 70 सेमी० ऊंचाई तक काटते है.

पहले साल मुख्य तने के चारो और शाखाएं तैयार करने पर जोर दिया जाता है. आगे के वर्षों में बहुत हल्की छंटाई केवल टूटी हुई या आपस में गुथी हुई शाखाओं को हटाने के लिए की जाती है. कटाई-छंटाई में मुह्य शाखाओं से छेड़छाड़ नही करनियो चाहिए.

कटाई-छंटाई का मुख्य उद्देश्य पौधे के विभिन्न भागों तक प्रकाश व फसल वाली शाखाओं का पर्याप्त विकास करना होता है.

सिंचाई व्यवस्था (Olive farming)

जैतून के एक वर्ष तक के पौधे को सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है. क्योकि इन पौधों में सूखे को सहन करने की अधिक क्षमता नही होती है. प्रतिदिन सिंचाई करना लाभदायक होता है. अगर यह संभव न हो तो सप्ताह में दो बार सिंचाई जरुर करे. एक अनुमान के मुताबिक सामान्य तौर पर जैतून के एक पौधे को 3 से 5 लीटर पानी की प्रतिदिन आवश्यकता होती है.

फलों की तुड़ाई 

जैतून के पौधों की रोपाई के 3 से 4 वर्ष बाद फल देना शुरू कर देता है. इसके फल एक साथ नही पकते है इसलिए इनकी तुड़ाई 4 से 5 बार में करनी चाहिए. इनकी तुड़ाई परम्परिक या यांत्रिक पद्धति से की जा सकती है. यांत्रिक पध्दति में ट्रेक्टर चालित मशीनों का उपयोग किया जाता है. पारम्परिक पध्दति में जैतून के पेड़ के नीचे जाल बिछा दिया जाता है. फल पकने पर जाल पर गिरते है. जिन्हें एकत्र कर लिया जाता है. इसके अलावा शखाओं को हिलाकर भी जैतून के पके फलों को गिराया जाता है.

उपज 

जैतून के फलों से 10 से 15 प्रतिशत तेल निकला जा सकता है. प्रारम्भ में तेल की मात्रा कम होती है. लेकिन 7 से 8 वर्ष की उम्र में 13 से 15 प्रतिशत तक तेल प्राप्त किया जा सकता है. विश्व औसत के अनुसार एक हेक्टेयर में लगभग 1500 से 1800 किलोग्राम तेल प्राप्त किया जा सकता है.

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कीट एवं रोग प्रबन्धन 

अन्य फलों की भांति जैतून में भी कीट और रोगों का प्रकोप होता है. प्रमुख कीट एवं रोग निम्नवत है-

प्रमुख कीट एवं रोकथाम 

दीमक – यह कीट जैतून के नए पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाता है. जिससे पौधे सूख जाता है.

रोकथाम – इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपायीरीफ़ॉस अथवा इमिडाक्लोरप्रिड कीटनाशी दवा का 3 से 5 मिली० प्रति पौधा की दर सिंचाई के पानी के साथ रखनी चाहिए.

माईट – इस कीट का प्रकोप पौधे के उपरी हिस्से में होता है. यह पौधे की कोमल पत्तियों का रस चूस लेता है. जिसके कारण पौधा भोजन के अभाव में सूख जाता है.

रोकथाम – इस कीट के नियंत्रण के लिए घुलनशील सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का उपयोग किया जाना चाहिए.

प्रमुख रोग एवं रोकथाम 

एन्थ्रोक्नोज – इस रोग के कारण जैतून के पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते है. यह धब्बे फल पर पड़कर गड्ढे बना देते है. जो बाद में काले हो जाते है. इनसे नमी होने पर गुलाबी स्पोर निकलते है.

रोकथाम – इसकी रोकथाम के लिए बोर्डो मिक्सचर (कॉपर सल्फेट 1600 ग्राम + चूना 1600 ग्राम + 200 लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए. इसका पहला छिड़काव जून के आखरी सप्ताह और दोबारा तीन सप्ताह के बाद करना होता है. इस प्रकार कुल 5 छिड़काव करने पड़ते है.

निष्कर्ष  

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के जैतून की खेती (Olive farming) से सम्बन्धित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा जैतून के फायदे से लेकर जैतून के कीट एवं रोग प्रबन्धन तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी जैतून की खेती (Olive farming) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान (Gaon Kisan) का यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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