Jute Farming – जूट की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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जूट की खेती (Jute Farming) कैसे करे ?

जूट की खेती (Jute Farming)

नमस्कार किसान भाईयों, रेशे वाली फसलों में जूट का देश में महत्वपूर्ण स्थान है.इसको नगदी फसल के रूप में उगाया जाता है.जूट को कहीं-कहीं पटुआ भी कहा जाता है.आज गाँव किसान (Gaon Kisan) अपने इस लेख में आप सभी को जूट की खेती (Jute Farming) कैसे करे ?, इसकी पूरी जानकारी अपने देश की भाषा हिंदी में देगा.जिससे किसान भाईयों को इसकी खेती का लाभ मिल सके.तो आइये जानते है जूट की खेती (Jute Farming) कैसे करे ?-

जूट का उपयोग 

जूट का उपयोग टाट का कपड़ा, बोरा, पैकिंग सामग्री, आदि बनाने में किया जाता है.जूट से रेशा निकालने के बाद बचे डंठल का उपयोग जलावन, बारूद का कोयला, कागज़ उद्योग आदि कार्यों में आता है.जूट की कोमल हरी पत्तियों की सब्जी भी बनायी जाती है.

जूट का उद्भव एवं विकास

प्रारम्भिक दिनों से ही जूट की खेती (Jute Farming) भारत में की जाती है.जूट का पहला निर्यात यूरोप में 1828 में हुआ था.व्यवसायिक रेशा के लिए दो प्रकार के जूट की खेती (Jute Farming) की जाती है- कैप्सूलेरिस और ओलिटोरिस. ओलिटोरिस का उत्पत्ति स्थान अफ्रीका तथा कैप्सूलेरिस का भारत-वर्मा के क्षेत्र में माना जाता है.

जूट का क्षेत्र

विश्व के लगभग 70 प्रतिशत जूट का उत्पादन भारत और बांग्लादेश में होता है.चीन, थाईलैंड, ब्राजील, पेरू, वर्मा, नेपाल और वियतमान में भी जूट की खेती (Jute Farming) होती है.भारत के प्रमुख राज्यों में पश्चिम बंगाल, आसाम, उत्तर बिहार, दक्षिणी-पूर्वी उड़ीसा, मेघालय, त्रिपुरा, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में जूट की खेती होती है.

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उपयुक्त जलवायु  

नमी वाले गर्म क्षेत्र जहाँ का ताप मान 27 से 37 डिग्री सेल्सियस (अनुकूलतम 34 डिग्री सेल्सियस के आस-पास) रहता हो, जूट की खेती (Jute Farming) के लिए उपयुक्त है.जूट के विकास के लिए 55 से 90 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता, 1500 एम० एम० वार्षिक वर्षापात (250 एम० एम० वर्षापात मार्च-मई) सर्वाधिक उपयुक्त मौसम है.जूट का नवजात पौधा जल-जमाव के प्रति अतिसंवेदी है.कैप्सूलेरिस का पौधा पिछात अवस्था में जल-जमाव सहन कर लेता है, परन्तु ओलिटोरियस का पौधा जल जमाव को बिलकुल सहन नही करता है.

मिट्टी 

जूट को प्रायः सभी प्रकार की मिट्टी-चिकनी से बलुई दोमट तक में उगाया जा सकता है.बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नदियों के पानी के साथ आया पांक युक्त मिट्टी, जूट के लिए उत्तम है.जूट के लिए मिट्टी का उपयुक्त पी० एच० मान 5.0 से 7.5 होना चाहिए.बलुई और मटियार मिट्टी जूट के लिए उपयुक्त नही है.अम्लीय किन्तु चूना रहित उदासीन भूमि तथा दोमट एवं बलुई दोमट मृदा जूट की खेती (Jute Farming) के लिए उपयुक्त है.

खेत की तैयारी 

एक से दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर से करने के बाद एक या दो बार देशी हल से जोतकर मिट्टी को बारीक एवं हल्का बना ले. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगा देना आवश्यक है ताकि जमीन समतल तथा मिट्टी में नमी बरकरार रहे.

उन्नत प्रजातियाँ 

विवरण  ओलिटोरियस  कैप्सूलेरिस 
प्रचलित नाम सोना पाट, तोता पाट, मीठा पाट या मुनियासी पाट सादा पाट, तीती पाट या जलीशीशी पाटा
प्रजाति जे० आर० ओ० 878, जे० आर० ओ० 524, जे० आर० ओ० 7835, जे० आर० ओ० 632, जे० आर० ओ० 66 एवं एस० 19 जे० आर० सी० 212, जे० आर० सी० 321, जे० आर० सी० 7447 एवं के० टी० सी० 01
बुवाई का समय जे० आर० ओ० 524 की बुवाई मार्च से मई तक एवं अन्य किस्मों की बुवाई 15 अप्रैल के बाद ही करे फरवरी अंत से मध्य अप्रैल तक
बीज दर 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 7.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
बुवाई की दूरी 25 X 7 सेमी० 30 X 7 सेमी०
उर्वरक 40:20:20 नत्रजन, स्फूर, पोटाश किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60:30:30 नत्रजन, स्फूर, पोटाश किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
कटाई जुलाई से सितम्बर (110 से 120 दिनों के अन्दर) जुलाई से अगस्त (110 से 120 दिनों के अन्दर)
उपज (रेशा) 30 से 35 कुंटल प्रति हेक्टेयर 25 से 30 कुंटल प्रति हेक्टेयर

 

निराई-गुड़ाई एवं छटनी 

जूट की दोनों प्रजातियों में बुवाई के 15 से 20 दिनों के बाद पहली निराई गुड़ाई एवं 35 से 40 दिनों बाद दूसरी निराई गुड़ाई जरुर करे.दूसरी निराई गुड़ाई के तुरंत बाद अतरिक्त पौधों की छटनी कर कतार में पौधे की अनुशंसित दूरी बना ले.

सड़न प्रौद्योगिकी  

कटाई के बाद पौधों को 2 से 3 दिनों तक खेत में पत्तियों को अलग होने के लिए छोड़ दे.उसके बाद समान मोटाई एवं लम्बाई वाले पौधों के 15 से 25 सेमी० व्यास वाले पौधों को अलग अलग बण्डल बना ले. प्रत्येक बण्डल में 3 से 4 सनई के पौधे को डाल दे.इस प्रकार किये गए बंडलों के मूल भाग को 3 से 4 दिनों तक करोब 50 से 60 सेमी० गहरे पानी में रखने के बाद एक मीटर गहरे पानी वाले जलाशयों में जैक बनाकर डूबा दे. केवल इस बात का ध्यान रहे कि जैक न तो पानी के सतह से ऊपर रहे न जलाशय की पेंदी में सटे. सड़न की क्रिया संपन्न हो जाने के बाद एकल पौधा विधि से रेशा छुडाकर अच्छी तरह से धुलाई कर एवं सुखाकर भण्डारण कर ले.

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जूट आधारित फसल चक्र 

किसान भाई जूट – धान – गेहूँ, जूट – धान – मसूर या सरसों, जूट – धान – आलू, जूट – तोरी या मसूर को अपना सकते है.

कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन  

क्र० सं०  फसल के नाम  कीट व्याधियाँ / रोग के नाम  कीट व्याधियाँ  लक्षण  प्रबन्धन
1. जूट (Jute) तने का सड़न रोग (Stem root of jute) मेक्रोफोमीना फेसीयोलाई (Macrophomina phaseoli) पौधे के तने पर भूरा काला रेखा दिखाई पड़ता है तथा पुराने पौधों में पत्तियां झड़ने लगती है. आखिर में पौधे मर जाते है. 1. जूट की खेती में फसल चक्र की विधि अपनाना चाहिए.

2. एन० पी० के० की संतुलित मात्रा का उपयोग करना चाहिए.

3. रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करना लाभदायक होता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) इस लेख से आप सभी को जूट की खेती (Jute Farming) कैसे करे इसकी जानकारी आप सभी को हो गयी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा जूट का उपयोग से लेकर जूट के कीट एवं व्याधि प्रबन्धन तक सभी जानकारियां इस लेख में बताई गयी है. किसान भाईयों अगर फिर भी जूट की खेती (Jute Farming) से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बाक्स में जाकर कमेन्ट कर पूछ सकते है.इसके अलावा गाँव किसान (Gaon Kisan) का यह लेख आप सभी को कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद. जय हिन्द.

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