Ginger farming – अदरक की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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अदरक की खेती (Ginger farming) की पूरी जानकारी

अदरक की खेती (Ginger farming) की पूरी जानकारी

नमस्कार किसान भाईयों, अदरक की खेती (Ginger farming) देश के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है. इसकी गिनती देश के प्राचीनतम मसालों में की जाती है. अदरक का पौधा भूमिगत रूपांतरित तना अर्थात प्रकन्द है. इन प्रकंदों को फसल की कटाई के बाद हरा तथा सुखाकर दोनों ही रूपों में काम में लेते है. इसकी खेती कर किसान भाई अच्छा मुनाफा कमा सकता है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में अदरक की खेती (Ginger farming की पूरी जानकारी देगा अवह भी अपनी भाषा हिंदी में. जिससे किसान भी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है अदरक की खेती (Ginger farming की पूरी जानकारी-

अदरक के फायदे 

अदरक व्यजनों को खुशबूदार तथा चरपरा बनाने व मुरब्बा बनाने के काम में आती है. चाय का स्वाद बढाने के लिए खासकर जाड़ों के मौसम में अदरक का उपयोग किया जाता है.

अदरक और इसके रस को कई देशी दवाइयाँ बनायीं जाती है जो सर्दी-जुकाम, खांसी और पेट सम्बन्धी रोगों में फायदेमंद होती है. अदरक का छिलका उतारकर 10 से 12 दिन सुखाकर, इसे सूखी अदरक बना दिया जाता है. जो अदरक चूर्ण तथा ओलियोरजिन बनाने के काम में आती है. छिले हुए अदरक को चूने के पानी में डुबोकर सुखाने से सौंठ बनती है. इसका भी कई दवाइयों में प्रोग किया जाता है.

अदरक या इसका तेल से अदरक कैंडी, नीम्बू-अदरक, अचार तथा पेय पदार्थ (अदरक शरबत, जिन्जरेला, जिंजर बियर, जिंजर वाइन) आदि बनाये जाते है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

अदरक का वानस्पतिक नाम जीन्जीबर ओफीसीनल रोस (Zingiber officinale) है. यह जिन्जीबरेसी कुल का पौधा है. यह एक बीजपत्री, बहुवर्षीय शाक है. यह हल्दी की तरह भूमि के ऊपर का प्ररोह तो एक वर्ष के अन्दर ही विकसित होकर सूख जाते है. लेकिन भूमिगत तने, प्रकन्द द्वारा उपयुक्त मौसम आने पाने पर पौधे पुनः उग आते है. इसकी खेती एक वर्षीय फसल के रूप में की जाती है.

अदरक की उत्पत्ति दक्षिण-पूर्वी एशिया में भारत या चीन में हुई है. विश्व में इसकी खेती भारत, जमैका, सीयरा लियोन, नाइजीरिया, ब्राजील, चीन, जापान व इंडोनेशिया आदि देशों में की जाती है. भारत में इसकी खेती केरल, मेघालय, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश व बंगाल आदि राज्यों में मुख्य रूप से की जाती है.

जलवायु एवं भूमि  

अदरक की खेती के लिए गर्म एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी खेती समुद्र तल से लेकर 1500 मीटर की ऊंचाई तक वाले भागों में उगाई जाती है. अदरक की अच्छी पैदावार के लिए बिजाई से लेकर गट्ठी विकास तक हल्की वर्षा या सिंचाई की आवश्यकता होती है. फसल तैयार होने के बाद या फसल उखाड़ने से पहले मौसम शुष्क होना चाहिए. इसकी फसल पेड़ की छाया में भी अच्छी पैदावार देती है.

अदरक की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. लेकिन इसकी अच्छी उपज के लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है. भूमि से जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए.

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उन्नत किस्में (Ginger farming)

अदरक की उन्नत किस्में निम्वत है-

  1. सुप्रभा – इस किस्म को ओ०यू०ए०टी० पोतांग्गी द्वारा 1988 में विकसित किया गया है. यह लगभग 229 दिन में तैयार हो जाती है. यह किस्म पहाड़ी क्षेत्रो के लिए उपयोगी है. इसकी पैदावार लगभग 3.4 टन प्रति हेक्टेयर है. यह केरल और उड़ीसा राज्य के लिए उपयुक्त किस्म है.
  2. सुरुचि – इस किस्म को भी ओ०यू०ए०टी० पोतांग्गी द्वारा ही 1989 में विकसित किया गया है. यह लगभग 218 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म की पैदावर आधिक है. साथ ही रोग के प्रति कम संवेदनशील होती है. इसकी पैदावार लगभग 2.72 टन प्रति हेक्टेयर है. यह भी उड़ीसा राज्य के उपयुक्त किस्म है.
  3. सुरभि – इस किस्म को भी ओ०यू०ए०टी० पोतांग्गी द्वारा ही विकसित किया गया है. यह लगभग 225 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी उपज लगभग 4.00 टन प्रति हेक्टेयर है.

खेत की तैयारी (Ginger farming)

अदरक की अच्छी उपज के लिए खेत तैयारी अच्छी प्रकार करनी चाहिए. सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए. इसके बाद दो से तीन जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए. सभी जुताई के बाद पाटा जरुर लगाए जिससे मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाए.

बुवाई का समय (Ginger farming)

अदरक की बुवाई 15 से 15 जून तक करना उपयुक्त होता है. हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों में इसकी बुवाई मई महीने में की जाती है. जबकि केरल में मानसून पूर्व वर्षा के साथ अप्रैल में करना बेहतर रहता है.

बीज दर (Ginger farming)

अदरक की बुवाई के लिए 20 से 30 ग्राम वाली स्वस्थ गांठे जिन पर तीन से चार आँखे अवश्य हो, बिजाई के लिए उपयुक्त होती है. एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 18 से 20 कुंटल बीज की आवश्यकता होती है.

खाद एवं उर्वरक (Ginger farming)

अदरक एक लम्बी अवधि वाली व अधिक खाद व उर्वरक चाहने वाली फसल है. इसके लोइए 200 से 250 कुंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर पहली जुताई के साथ खेत की मिट्टी में मिला देना चाहिए. भूमि की उर्वरा शक्ति को बढाने के लिए किस्म के अनुसार 80 से 120 किग्रा० नाइट्रोजन 30 से 50 किग्रा० फास्फोरस तथा 40 किग्रा० पोटाश की आवश्यकता होती है.

फास्फोरस और पोटाश की आधी मात्रा जुताई के समय देनी चाहिए. बची हुई आधी मात्रा कड़ी फसल में सामान रूप से देनी चाहिए. पहली मात्रा बुवाई के 2 महीने बाद तथा दूसरी मात्रा इसके एक महीने बाद का खड़ी फसल में डाल देनी चाहिए. उर्वरक डालने के बाद बारिश न होने पर फसल की सिंचाई करे.

बुवाई एवं बिछौना

अदरक की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए. जिसमें पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सेमी० तथा पौधे से पौधे का फासला 20 सेमी० रखना सर्वोत्तम होता है. जल निकास के लिए नालियां (40 सेमी०) बनाये.

अदरक की खेती के लिए बिछौना महत्वपूर्ण होता है. पर्वतीय क्षेत्रों में अदरक की बुवाई गर्मी के मौसम में की जाती है. इसलिए जमीन में नमी बनाये रखने के लिए बिछौना आवश्यक होता है. इसके अलावा यह बिछौना भूमि सुधार लाने में, तापमान बनाये रखने के लिए, भूमि कटाव रोकने के लिए तथा खरपतवार को रोकने में सहायक होता है. बिछौने के रूप में पौधे के अवशेष, हरी तथा सूखी पत्तियां तथा गोबर की खाद इत्यादि का प्रयोग किया जाता है.

निराई-गुड़ाई 

खरपतवार नियंत्रण और खेत की मिट्टी भुरभुरी बनाने के लिए अदरक की फसल की दो से तीन बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. प्रत्येक निराई-गुड़ाई के बाद मिट्टी को भुरभुरी करके पौधे के चारो तरफ चढा देनी चाहिए. इस प्रकार दो बार मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है. निराई-गुड़ाई करते समय यह ध्यान रखे भूमि के नीचे अदरक की गांठों को नुकसान न पहुँचाने पाए.

सिंचाई (Ginger farming)

बरसात के मौसम में बारिश न हो तो ही सिंचाई करे. गर्मी के मौसम में 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. बरसात के मौसम के बाद गांठों में वृध्दि के समय 10 से 15 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करे.

खुदाई एवं उपज 

नवम्बर-दिसम्बर महीने में जब अदरक के पत्ते सुखने लगे, तब खेत से अदरक की खुदाई कर लेनी चाहिए. पाला से फसल की गांठों को नुकसान पहुंचता है. इसलिए पाला पड़ने से पहले फसल की खुदाई कर लेनी चाहिए.

हरी अदरक की उपज लगभग 100 से 150 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है. जो सूखने के बाद 20 से 25 कुंटल तक होती है.

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कीट एवं रोग प्रबन्धन 

प्रमुख कीट एवं प्रबन्धन 

ऊतक-छेदक कीट जैसे प्ररोह व प्रकन्द अदरक के प्रमुख हानिकारक कीट है. इनकी रोकथाम के लिए कृषि विशेषग्य के सलाह से कीटनाशक का प्रयोग करे.

प्रमुख रोग एवं प्रबंधन 

प्रकन्द गलन – इस बीमारी से ग्रसित पौधों की पत्तियां शुरू में छोटी तथा किनारों पर पीली पड़ जाती है. बाद में साड़ी पत्तियां पीली पड़कर झुक जाती है अंत वे सूख जाती है. बीमारी से प्ररोह कॉलर स्थान सड़ जाता है. जहाँ से रोग प्रकन्द में पहुँच जाता है. रोग ग्रसित प्रकन्द का रंग गन्दला हो जाता है. और वह भी धीरे-धीरे सड़ने लगता है.

रोकथाम – इस बीमारी की रोकथाम के लिए शुरुवात में डेक्सोन, केप्ताफोल या चेस्टनट मिश्रण के (0.2 प्रतिशत) घोल से सिंचित करने इस बीमारी के प्रज्कोप को कम किया जा सकता है.

पीलिया(यलो डीजीज) – इस बीमारी से ग्रसित पौधों के नीचे से पत्तियां किनारों से पीली पदनी शुरू हो जाती है. बाद में यह पीलापन सारी पत्तियों में फैल जाता है तथा पौधा सूख जाता है. पौधे का प्ररोह कॉलर स्थान पर सड़ जाता है. जहाँ से यह रोग प्रकन्द में पहुँच जाता है.

रोकथाम – इस रोग से बचाव के लिए बुवाई वाली गाठों को बोने से पूर्व डाइथीन एम-45 या बेनलेट या बेविस्टीन के 0.3 प्रतिशत घोल में उपचारित करना चाहिए.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) के अदरक की खेती (Ginger farming) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होंगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा अदरक के फायदे से लेकर अदरक के कीट एवं रोग प्रबन्धन तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी अदरक की खेती (Ginger farming) से समबंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा आपको यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द. 

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