Emblica Farming – आंवला की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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Emblica Farming
आंवला की खेती (Emblica Farming) की पूरी जानकारी

आंवला की खेती (Emblica Farming) की पूरी जानकारी

   नमस्कार किसान भाईयों, आंवला की खेती (Emblica Farming) देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है. इस औषधीय फल की खेती कर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते है. इसलिए गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख के जरिये आप को आंवला की खेती (Emblica Farming) की पूरी जानकारी देगा, वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. तो आइये जानते है आंवला की खेती (Emblica Farming) की पूरी जानकारी-

आंवला के फायदे 

आंवला में विटामिन सी की प्रचुर मात्रा (700 mg प्रति 100 g फल) पाए जाने के कारण यह एक औषधीय फल के रूप में जाना जाता है. आंवला जिगर के लिए एक बहुत ही उपयोगी फल है. इससे विभिन्न प्रकार के आयुर्वेदिक शक्तिवर्धक दवाओं जैसे- च्यवनप्राश, ब्रम्हारसायन और मधुमेगा चूर्ण बनाने में उपयोग किया जाता है. यह मूत्रवर्धक, रेचक, विषाणुरोधी और आंव में काफी लाभदायक होता है. विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद जैसे- बालों का तेल, शेम्पू, फेस क्रीम और दन्त पाउडर बनाया जाता है. इसके अलावा आंवले का उपयोग मुरब्बा, कैंडी, अचार, जूस, पाउडर बनाने में भी क्या जाता है.

आंवला की उत्पति एवं क्षेत्र

आंवला का उत्पत्ति क्षेत्र ट्रापिकल एशिया (Tropical Asia) में भारत का मध्य और दक्षिणी भाग को माना जाता है. आंवला का वैज्ञानिक नाम अम्बलिका ओफिसिनलिस (Embilica officinalis) है. यह यूफोरबिएसी (Euphorbiaceae) परिवार का सदस्य है. आंवला प्राकृतिक रूप से भारत, श्रीलंका, चीन, पकिस्तान, ईराक, ईरान आदि देशों में पाया जाता है.

जलवायु एवं मिट्टी (Emblica Farming) 

आंवला एक उपोषण क्षेत्र का वृक्ष है. लेकिन शुष्क एवं उष्ण क्षेत्र में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है. इसकी खेती के लिए वार्षिक वर्षा 630 मिमी० से 800 मिमी० उपयुक्त होती है. आंवला के नए पौधों को तीन से चार साल तक मई-जून में गर्म हवा तथा सर्दियों में पाले से बचने का प्रबंध करना चाहिए.

आंवला की खेती के लिए बलुई मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की हल्की से मध्यम भारी मिट्टी उपयुक्त होती है. इसके लिए मध्यम क्षारीय दोमट लाल मिट्टी, काली मिट्टी, जिसका पी० एच० मान 5 से 8.7 के बीच का उपयुक्त होता है. आंवला की खेती 9.5 पी० एच० मान वाले मिट्टी में भी इसकी खेती हो जाती है.

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आंवले की उन्नत किस्में  

आंवला की उन्नत किस्मों में कंचन (नरेन्द्र आंवला-4), कृष्णा (नरेंद्र आंवला-5), नरेन्द्र आंवला-6, अमृत (नरेन्द्र आंवला-7), नरेन्द्र आंवला-10, नीलम (नरेन्द्र आवंला-9) एवं चकैया आदि प्रमुख है.

प्रवर्धन एवं प्रसार (Emblica Farming)

आंवला प्रवर्धन या प्रसार कलम बंधन, कलिकायन, एवं बीज के द्वारा किया जाता है. लेकिन बीज द्वारा तैयार वृक्ष छोटा एवं खराब गुणवत्ता वाला फल देता है.फोरकर्ट, पेवन, विरुपति छल्ला और टी विधि द्वारा कलिकायन आंवला के प्रवर्धन के लिए बहुत प्रभावी है. वर्तमान में ढाल कलिकायन के द्वारा आंवला का प्रसार किया जाता है. वांछित किस्म का पौधा कलम बंधन एवं कोमल शाखा बंधन के द्वारा भी तैयार किया जाता है.

रोपण विधि (Emblica Farming)

कलम एवं कलिकायन द्वारा तैयार पौधे को बरसात के मौसम में लगाया जाता है. पौधे लगाने से पहले खेत की गहराई से जोतकर समतल कर ले. मई-जून के महीने में वृक्ष से वृक्ष 8 मीटर एवं पंक्ति से पंक्ति 10 मीटर की दूरी पर 1 X 1 X 1 मीटर गड्ढे को 15 से 20 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए.

15 से 20 दिनों बाद 10 से 15 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद के साथ मिट्टी मिलाकर गड्ढे को भर देना चाहिए. इसके बाद बारिश शुरू होने से पहले कलम एवं कलिकायन द्वारा तैयार पौधों को लगाकर सिंचाई कर देना चाहिए.

बीज से पौधे तैयार करने के लिए 2 से 3 बीज प्रत्येक गड्ढे में जुलाई महीने में लगा देना चाहिए. अंकुरण होने के बाद सिर्फ स्वस्थ पौधों को रखकर बाकि पौधों को हटा देना चाहिए. बीज लगाने के पूर्व उसे दो दिनों के लिए स्वच्छ पानी में डूबकर रखा जाता है. एक किस्मों को बाग़ में लगाने से पौधे में फल नही आते है. इसलिए 10 पौधे एक किस्म लगाने के बाद 1 पौधा दूसरे किस्म का बाग़ में लगाना चाहिए ताकि फल पूरी तरह आये.

खाद एवं उर्वरक (Emblica Farming)

आंवला की खेती के लिए विशेष खाद एवं उर्वरक की जरुरत नहीं होती है.लेकिन अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए सड़ी गोबर की खाद 10 किग्रा०, 100 ग्राम नत्रजन, 50 ग्राम फास्फोरस, एवं 75 ग्राम पोटाश को पहले साल पौधे में डाला जाता है एवं इसकी मात्रा को दूसरे वर्ष दोगुना, तीसरे वर्ष तीन गुना पर क्रमशः १० वर्षों तक इसकी मात्रा को बाते रहना चाहिए. 10 वर्ष एवं उसके बाद बाद प्रत्येक वर्ष 1 किग्रा० नत्रजन, 500 ग्राम फ़ॉसफोरस एवं 750 ग्राम पोटाश डालना चाहिए. सड़ी हुई गोबर की खाद, फ़ॉसफोरस की पूरी मात्रा एवं नत्रजन और पोटाश की आधी मात्रा जून-जुलाई तथा नत्रजन और पोटाश की शेष आधी मात्रा कुछ महीनों बाद में डाला जाता है. क्षारीय भूमि में उपरोक्त खाद के साथ सुहागा, जिंक सल्फेट एवं कॉपर सल्फेट (100 ग्राम) प्रति पौधा डालना चाहिए.

सिंचाई (Emblica Farming) 

आंवला सूखा जैसे विषम परिस्थितियों को आसानी से सहन कर लेता है. इसलिए इसे सिंचाई की अधिक आवश्यकता नही पड़ती है. नए पौधे लगाने के लिए गर्मी में 10 से 15 दिन दिनों के अंतराल पर एवं पुराने वृक्षों में खाद डालने के तुरंत बाद सिंचाई की जाती है. फूल आने के समय सिंचाई नही करनी चाहिए.

पुष्पन एवं फलन (Emblica Farming)

आंवला के फूल सीमिति शाखाओं पर फरवरी से मार्च तक लगते है. पुष्पक्रम असीमाक्षी प्रकार का एवं गुच्छों में नर पुष्प पहले प्रकट होते है. फल सितम्बर माह में सर्वाधिक विकसित होकर उत्तर भारत में नवम्बर माह में परिपक्व हो जाते है तथा फरवरी तक उपलब्ध रहता है. फल सम्पुती (capsule) बेरी प्रकार का होता है.

तोड़ाई एवं उपज  

बीज द्वारा तैयार वृक्ष से 6 से 8 वर्ष बाद तथा वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार वृक्षों से 3 से 4 वर्षों में फल आना शुरू हो जाते है. आंवला फरवरी माह में तोड़ा जाता है. जब फल का रंग हल्का हरा से सुस्त पीला हो जाता है. पूरी तरह से विकसित आंवले का वृक्ष सामान्यतः 1 से 3 कुंटल उपज देता है.

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आंवला के कीट एवं रोग प्रबन्धन 

आंवला रस्ट

रोवेनेलिया अम्बलिका (Ravenellia embliieae) के कारण होता है. पत्तियों एवं फलों पर भूरे दाने बन जाते है.

रोकथाम 

इस रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक (0.4 प्रतिशत) या क्लोरोथालोनिल (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए.

काला फफूंदी रोग 

काला फंफूदी रोग स्केल कीट द्वारा फैलता है. इस रोग में पत्तियों टहनियों तथा फूलों पर काली फफूंद फैल जाती है.

रोकथाम 

काली फफूंद रोग की रोकथाम के लिए 2 प्रतिशत स्थार्च के घोल का छिड़काव करना चाहिए. अधिक प्रकोप होने पर स्टार्च में 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफ़ॉस तथा 0.2 प्रतिशत घुलनशील गंधक मिलकर इस घोल का छिड़काव करे.

फल सड़न रोग 

फल सड़न रोग ज्यादा तर नवम्बर माह में होता है. यह पेनिसिलियम आइसलेडिकम (Penicillium Islandicumm) फफूंदी के कारण होता है. फलों पर पानी से भरे भूरे धब्बे बज जाते है.

रोकथाम 

इसकी रोकथाम के लिये फल तोड़ने के 15 दिन पूर्व 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करना चाहिए.

छाल भक्षी कीट  

यह आंवला में लगने वाला प्रमुख कीट है. यह कीट आंवला वृक्ष के मुख्य तना में प्रवेश कर सुरंग नुमा संरचना बनाता है.

रोकथाम 

इसकी रोकथाम के लिए सुरंगों एवं छिद्रों को 0.025 प्रतिशत डाईक्लोरोफ़ॉस या केरोसिन तेल या पेट्रोल में रुई भिगोकर गोली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए.

शूट माल कीट 

इस कीट के केटरपिलर पौधों में छिद्र बनाकर शीर्ष तक पहुँच जाते है.

रोकथाम 

इस कीट की रोकथाम के लिए 2 प्रतिशत पेराथियान के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद हैं,गाँव किसान (Gaon kisan) का आंवला की खेती (Emblica Farming) सम्बन्धी इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा आंवले के फायदे से लेकर आंवला के कीट एवं रोग प्रबन्धन तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी आंवला की खेती (Emblica Farming) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कम्नेट कर पूछ सकते है. इसके अवाला यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द. 

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