Chilli Farming – मिर्च की खेती कैसे करे ? जानिए, अपनी भाषा हिंदी में

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मिर्च की खेती (Chilli Farming) कैसे करे ?

मिर्च की खेती (Chilli Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, देश में मिर्च की खेती (Chilli Farming) अनेक क्षेत्रों में की जाती है. यह एक मसाले वाली फसल है. जिसकी खेती कर किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते है. इसलिए आज गाँव किसान (Gaon Kisan) अपने लेख में मिर्च की खेती (Chilli Farming) कैसे करे ? इसकी उरी जानकारी देगा. वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी खेती करके अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है मिर्च की खेती (Chilli Farming) के बारे में पूरी जानकारी-

मिर्च के फायदे 

हम सभी के घरों में मिर्च का उपयोग हरी मिर्च की तरह एवं मसाले के रूप में करते है. इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है.मिर्च के सुखाये हुए फलों में 0.16 से 0.39 प्रतिशत तक तथा सूखे बीजों में 26.1 प्रतिशत तेल पाया जाता है.मिर्च में तीखापन या तेजी ओलियोरेजिन कैप्सिन नामक उड़नशील एल्केलॉईड के कारण होती है तथा इसका लाल रंग कैप्सेन्थिन व कैप्सरूबीन नामक ओलियोरेजिन के कारण होता है. बाजार में आमतौर पर मिलने वाली मिर्च में कैप्सिन की केवल 0.1 प्रतिशत मात्रा पायी जाती है.मिर्च में अनेक औषधीय गुण भी होते है.इसके फलों में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

मिर्च का वानस्पतिक नाम केप्सिकम एनम (Capsicum annuum) है तथा यह सोलेनेसी (Solanaceae) कुल से सम्बन्ध रखता है. इसका उत्पत्ति स्थल दक्षिण अमेरिका है. भारत में अनेक राज्यों में पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में तीखे फलों के लिए मिर्च की खेती की जाती है.

जलवायु (Chilli Farming)

मिर्च की अच्छी उपज के लिए गर्म जलवायु अच्छी होती है लेकिन अधिक गर्मी या ठण्ड इसको नुकसान पहुंचा सकती है.अधिक बारिश भी नुकसान पहुंचती है.बारिश अगर 60 से 150 सेमी० के बीच की होती है. तो मिर्च का उत्पादन अच्छा होगा.

मिट्टी (Chilli Farming)

मिर्च की खेती कई प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है. लेकिन कार्बनिक तत्वों से युक्त दोमट मिट्टी इसके खेती के लिए उपयुक्त होती है. जहाँ फसल काल छोटा होता है. वहां बलुई दोमट मिट्टी मिट्टियों को प्राथमिकता दी जाती है. बारिश की फसल के लिए भारी तथा अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में बुवाई करनी चाहिए.

उन्नतशील किस्में (Chilli Farming)

मिर्च की उन्नत किस्मों में पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, काशी अनमोल, काशी गौरव, पन्त सी-1, जापानी लोंग, अर्का लोहित, एन० पी०- 46 ए, जवाहर-218, गुंटूर- 1, 2, 3, 4 व 5, पूरी रेड आदि प्रमुख है.

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बीजदर

मिर्च की बुवाई के लिए 1 से 1.5 किलोग्राम अच्छी मिर्च का बीज लगभग एक हेक्टेयर मिर्च रोपाई के लिए पर्याप्त होता है.

बुवाई का समय (Chilli Farming)

मिर्च की पौध की बुवाई और रोपाई अलग-अलग समय पर करते है. बीजों की पौधशाला में लगाया जाता है. मिर्च की पौध लगभग 6 सप्ताह में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है. पौध लगने का समय निम्नवत है-

ऋतु  बुवाई का समय  पौध रोपण का समय  रोपाई की दूरी 
जाड़ा जून-जुलाई अगस्त-सितम्बर 60 सेमी० x 45 सेमी०
गर्मी नवम्बर जनवरी 45 सेमी० x 30 सेमी०
बरसात / पहाड़ों अप्रैल-मई मई-जून 60 सेमी० x 45 सेमी०

खेत की तैयारी (Chilli Farming)

खेत को पाँच से छः बार जुताई करके हर बार पाटा लगा दे. जिससे मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाय. इसके अलावा उचित आकार की क्यारियाँ बना ले.

खाद एवं उर्वरक (Chilli Farming)

जुताई करते समय खेत में 300 से 400 कुंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद भूमि में मिला देना चाहिए. रोपाई से पहले 150 किलोग्राम यूरिया, 175 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश दिया जाता है. खड़ी फसल में 150 ग्राम यूरिया लगाने के 25 से 30 दिनों बाद दिया जाता है. यूरिया को मिर्च में फूल आने से पहले  देना चाहिए .

सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग 

तांबा, जस्ता, मैगनीज का प्रयोग रोपाई के 30 दिन बाद करने से मिर्च का उत्पादन बढ़ जाता है.तांबा और बोरान का उपयोग करने से मिर्च की कैप्सेसिन की मात्रा में बढ़ोतरी करता है.

पादप वृध्दि नियामकों का प्रयोग 

मिर्च में फूल आने पर 50 पी० पी० एम० नेप्थेलीन एसीटिक एसिड का छिड़काव से फूल गिरने की समस्या को नियंत्रित करता है. पहले फूल आने के समय 20 पी० पी० एम० नेप्थेलीन एसीटिक एसिड का प्रयोग तथा 30 दिनों के अंतराल पर इसके दो और छिड़काव करने पर फल की उपज, प्रति पौधों में फल की संख्या, फल का आकार, कैप्साइसिन की मात्रा, विटामिन सी की मात्रा बढाने में काफी उपयोगी होता है. कली निकलने की अवस्था में और उसके 20 दिन बाद 300 पी० पी० एम० पेक्लोबुट्राजोल के प्रयोग से फल की संख्या तथा वजन में वृध्दि होती है एवं गुणकारी प्रभाव भी पड़ता है. फूल आना शुरू होने पर 400 पी० पी० एम० इथरेल का छिड़काव करने से फल लगने में तथा उसकी गुणवत्ता बढाने में मदद मिलती है. उत्पादन ऋतु की समाप्ति के समय 3500 पी० पी० एम० मैलिक हाइड्राजाइड के छिड़काव से लाल मिर्च का अधिक उत्पादन होता है.

सिंचाई (Chilli Farming)

मिर्च में पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद अवश्य करना चाहिए. बाद में गर्म मौसम में हर पाँच से सात दिन तथा सर्दी में 10 से 12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करना आवश्यक है.

निराई-गुड़ाई (Chilli Farming)

मिर्च की पौध की वृध्दि आरम्भिक अवस्था में खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए दो तीन बार निराई करना आवश्यक होता है. पौध रोपण के दो या तीन सप्ताह बाद मिट्टी चढ़ाई जाती है. जिससे पौधा गिरने बच जाता है.

फलों की तुड़ाई 

मिर्च की तुड़ाई पहले हरे मिर्च के लिए की जाती है.नियमित अंतराल पर फल की तुड़ाई से फूल और फल लगना ज्यादा हो जाते है.हरे फलों की तुड़ाई के बाद छाया में रखते है. लाल मिर्च के लिए फल को पकने दिया जाता है, और पूरे पके हुए लाल अवस्था में इसकी तुड़ाई करके सुखाया जाता है.

उपज 

सिंचित क्षेत्रो में हरी मिर्च की औसत उपज लगभग 80 से 90 कुंटल प्रति हेक्टेयर और सूखे में फल की उपज 18 से 20 कुंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

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रोग एवं कीट नियंत्रण 

आर्द्रगलन रोग 

आर्द्रगलन रोग में सतह, जमीन के पास तना गलने लगता है तथा पौध मर जाती है.

रोकथाम 

आर्द्रगलन रोग की रोकथाम के लिए बीज को फफूंदनाशक दवा कैप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर देना चाहिए.

श्यामवर्ण रोग 

इस रोग से शुरू में पत्तियों पर पीले, गोल जलयुक्त धब्बे दिखाई देते है. रोगी पत्तियां सूख जाती है.

रोकथाम  

इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को थाइरम या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो० बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

पर्ण कुंचन रोग

यह एक विषाणु जनित रोग है. इस रोग से आक्रांत पौधों की पत्तियों आकार में सामान्य पत्तियों से छोटी एवं पीली हो जाती है एवं पौधा बौना हो  जाता है. ऐसे पौधों में पर या तो फलियाँ बनती ही नही या बनती है तो बहुत छोटी रह जाती है. यह विषाणु सफ़ेद मक्खी से फैलता है.

रोकथाम 

इसकी रोकथाम के लिए 15 दिन के अंतराल पर साइपरमेथ्रिन दवा के 0.15 प्रतिशत घोल का छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है.

फल सड़न रोग 

इस रोग के लक्षण पके हुए फलों पर दिखाई पड़ते है. जिसमें फलों पर गोल धब्बे दिखाई पड़ते है तथा फल सड़ने लगते है.

रोकथाम 

इस रोग की रोकथाम के लिए स्वस्थ तथा प्रमाणित बीजों की बुवाई करनी चाहिए. इस रोग के नियंत्रण के लिए ग्रसित पौधों पर ब्लाइटोक्स 50 या इंडोफिल एम-45   0.25 प्रतिशत का घोल का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.

थ्रिप्स,एफिड एवं जैसिड कीट 

यह कीट पत्तियों का रस चूस लेते है और उपज को नुकसान पहुंचाते है.

रोकथाम 

इन कीटों की रोकथाम के लिए रोगर या मेटासिस्टाक्स 2 मिली० प्रति लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड (1 मिली० प्रति 3 लीटर पानी में घोल कर) छिड़काव करने से इसका नियंत्रण किया जा सकता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) का यह मिर्च की खेती (Chilli Farming) सम्बंधित लेख से आप को जानकारी मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा मिर्च के फायदे लेकर कीट एवं रोग नियंत्रण तक सभी जानकारियां दी गयी है.फिर भी मिर्च की खेती (Chilli Farming) सम्बन्धित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में आकर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आप सभी को कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

 

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