Berseem Farming – बरसीम की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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BERSEEM FARMING
बरसीम की खेती (Berseem Farming) की पूरी जानकारी 

बरसीम की खेती (Berseem Farming) की पूरी जानकारी 

नमस्कार किसान भाईयों, बरसीम की खेती (Berseem farming)  पशुओं के चारे के लिए की जाती है. यह रबी मौसम में चारा फसलों की प्रमुख फसल है. आज गाँव किसान (Gaon kisan) अपने इस लेख में आप सभी को बरसीम की खेती (Berseem farming)  की पूरी जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई पशुओं के लिए हरा चारा उपलब्ध करा सके. तो आइये जानते है बरसीम की खेती (Berseem farming)  की पूरी जानकारी-

बरसीम के फायदे 

बरसीम को चारे का राजा (King of fodder crop) भी कहा जाता है. बरसीम का चारा बहुत ही पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा 20 से 21 प्रतिशत, शुष्क पदार्थ की आधार पर रेशा 25 से 92 प्रतिशत, कैल्शियम 1.98 प्रतिशत तथा फ़ॉस्फोरस 0.28 प्रतिशत तक पाया जाता है. पोषक तत्वों के अलावा इसमें पाचनशीलता (70 प्रतिशत) भी अच्छी पायी जाती है. पहली कटाई से प्राप्त चारा अधिक पौष्टिक होता है, और इसमें रेशे की मात्रा भी कम होती है. बरसीम चारा फसल से लगभग 6 माह तक हरा चारा प्राप्त कर सकते है.

जाड़े के मौसम में बोई गयी बरसीम के पौधे पत्तीदार और मुलायम होते है. पहली कटाई से लेकर तीसरी कटाई तक प्रोटीन की मात्रा 25 से 28 प्रतिशत पायी जाती है, तथा शुष्क पदार्थ की मात्रा 12 से 14 प्रतिशत पायी जाती है, एवं यह मात्रा बढ़कर 18 से 20 प्रतिशत तक हो जाती है. तापमान वृध्दि के साथ, बरसीम के तने अधिक रेशेदार व कम पत्तियों वाले होते है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र वितरण 

बरसीम को मिस्री क्लोवर (Egyptian clover) भी कहते है.इसका वानस्पतिक नाम ट्राईफोलियम एलेक्जैन्ड्रिनम (Trifolium alexandrinum) है. वैज्ञानिको का अनुमान है कि बरसीम की उत्पत्ति एशिया माइनर में हुई, जहाँ से यह सीरिया और फिलिस्तीन होते हुए मिस्र पहुँच गयी. इसकी खेती मिस्र और भारत के बहुत से क्षेत्रों में प्राचीन काल से की जा रही है.एक अनुमान के अनुसार इसे सर्व प्रथम 1904 में मिस्र से सिंध (तब भारत और अब पकिस्तान) लाया गया और यहाँ से पंजाब और भारत के दूसरे स्थानों पर ले जाई गयी.

बरसीम की खेती उन सभी क्षेत्रों में की जा सकती है. जहाँ सिंचाई का उचित प्रबंध होता है. भारत में बरसीम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के कुछ भागों, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश के कुछ भागों तथा बिहार आदि राज्यों में इसकी खेती पशु चारे के लिए की जाती है. पहाड़ी क्षेत्रो में इसके पाले के डर से नही बोया जाता है.

जलवायु एवं भूमि 

यह शीतोष्ण और कम गर्मी वाले भागों में उगाई जाती है.यह पाले वाली जगहों पर कम उपज देती है. बरसीम की खेती के लिए कम से कम 25 से 30 सेमी० वर्षा होनी आवश्यक होती है. बरसीम की बुवाई के लिए अधिकतम तापमान लगभग 32 डिग्री सेंटीग्रेड तथा न्यूनतम तापमान 12.5 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए. फसल की अच्छी उपज के लिए 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच का तापमान अच्छा रहता है.

बरसीम की खेती प्रायः सभी प्रकार की भूमियों पर की जा सकती है. परन्तु सामान्य भारी दोमट मिट्टी, जिसकी जल धारण क्षमता अधिक होती है, फसल की बढ़ोत्तरी एवं उपज की द्रष्टि सबसे सर्वोत्तम होती है. खेत से जल निकासी और सिंचाई, दोनों को उचित प्रबंध होना चाहिए. मिट्टी का पी० एच० मान 7 से ऊपर होना चाहिए.

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फसल-चक्र (Berseem Farming)

बरसीम की खेती कई फसल-चक्रों में की जाती है. दाने की फसलों के साथ इसके फसल-चक्र निम्न है.

  • मक्का (दाना)-बरसीम-मक्का (चारे के लिए) (एक वर्षीय)
  • ज्वार (दाना)-बरसीम-मक्का (दाना) + लोबिया (चारे के लिए) (एक वर्षीय)
  • मक्का (दाना)-बरसीम-मूंग (एक वर्षीय)
  • धान-बरसीम (एक वर्षीय)
  • जूट-बरसीम (एकवर्षीय)

केवल चारे की फसलों के साथ उपयुक्त फसल चक्र निम्नवत है-

  • नेपियर घास+बरसीम (एकवर्षीय)
  • ज्वार-बरसीम-मक्का (एकवर्षीय)
  • सूडान घास-बरसीम+लोबिया (एकवर्षीय)
  • गिनी घास+बरसीम (एकवर्षीय)

उन्नत किस्में (Berseem Farming)

बरसीम की उन्नत किस्मों में मिसकावी तथा खादरवी आदि प्रमुख प्रचलित किस्में है लेकिन उन्नत किस्मों में पूसा जायंट, टी० 780, टी० 526, टी० 560, टी० 724, तथा टी० 678 आदि मुख्य है.

खेत की तैयारी (Berseem Farming)

बरसीम की बुवाई के लिए एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. उसके बाद 5 से 6 बार हैरो चलाकर पाटा लगाना चाहिए. जिससे खेत की सख्त मिट्टी भुरभरी हो जाय. खेत को बुवाई से पहले समतल जरुर कर ले.

बीज की दर 

बरसीम की एक हेक्टेयर की बुवाई के लिए 25 से 35 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है. बरसीम की बीज की मात्रा बीज आकर पर निर्भर करती है. देशी या द्विगणित किस्मों के छोटे बीज होते है. इसकी बीज दर 25 किग्रा० प्रति हेक्टेयर होती है. चतुर्गुणित किस्मों के बीज बड़े होते है. इसलिए इनकी बीज दर 30 से 35 किग्रा० प्रति हेक्टेयर होती है.

बुवाई का समय (Berseem Farming)

बरसीम की बुवाई का उचित समय सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर तक होता है. नवम्बर माह में बोई गयी फसल में एक से दो कटाई कम मिलती है.

बुवाई की विधि 

बरसीम की बोने की दो विधियाँ है, जो निम्नवत है-

पानी भरकर बुवाई 

बरसीम की बुवाई पानी भरकर की जाती है. यह तरीका बहुत अधिक प्रचलित है. खेत में भरे पानी के साथ बुवाई करने के लिए खेत तैयार होने के बाद उसमें सुविधानुसार क्यारियां या पत्तियां बना लेनी चाहिये. इन क्यारियों में सिंचाई द्वारा 6 से 7 सेमी० तक पानी भरकर इसमें पटेला चलाकर या किसी दूसरी तरह से पानी और मिट्टी का घोल बना लेना चाहिए. इसके तुरंत बाद इसमें बीज छिटकर बुवाई की जाती है.

इस तरह की बुवाई करने से मुख्य लाभ यह होता है, कि बुवाई के पश्चात बीजों पर मिट्टी की एक तह जैम जाती है, जिससे बीजों को चिड़िया या दूसरे जानवर नही खा पाते है. इसके साथ बीज के चारों तरफ से नमी उचित मात्रा में मिल जाने से बीज का अंकुरण अच्छा और शीघ्र हो जाता है.

सूखे खेत में बुवाई 

सूखे खेत में बोवाई के लिए खेत की मिट्टी अच्छी प्रकार भुरभरी बना लेनी चाहिए. खेत में बुवाई से पहले यह ध्यान रखे भूमि में उचित मात्रा में नमी होनी चाहिए. अन्यथा बुवाई के तुरंत बाद पानी की आवश्यकता पड़ती है. सूखे खेतों में बरसीम की बुबाई दो प्रकार से की जाती है-

छिटकवाँ विधि 

छिटकवाँ विधि में तैयार खेत में बीज छिटकर उसे हल्का हीरों चलाकर मिट्टी में मिला देते है. ताकि बीज 1.5 से 2 सेमी० की गहराई तक मिट्टी ढक ले.

कतार विधि 

कतार विधि में बरसीम की बुवाई कतारों में सीड ड्रिल या देशी हल की सहायता से 15 से 20 सेमी० की दूरी पर 1.5 से 2.0 सेमी० गहरे कूडों में बीज की बुवाई की जाती है.

इन दोनों तरीको में बुवाई के पश्चात पटेला चलाकर मिट्टी की सतह सख्त बना लेनी चाहिए, ताकि बीज, मिट्टी और पानी अच्छे संपर्क में होने से अच्छी तरह अंकुरित हो सके.

बीजोपचार (Berseem Farming)

जिस भी खेत में पहली बार बरसीम की खेती करना हो तो बुवाई के पहले बीज का उपचार राइजोवियम जीवाणु संवर्ध द्वारा करते है, ताकि वायुमंडल से नत्रजन पौधों की जड़ों में जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन उपलब्ध कराने की क्रिया भली प्रकार संपन्न होता है.

उर्वरक की मात्रा 

बरसीम की फसल के लिए सामान्य रूप से 25 से 30 किग्रा० नाइट्रोजन तथा 50 से 60 किग्रा० फ़ॉस्फोरस की आवश्यकता होती है, क्योकि इस समय तक पौधों की जड़ों में ग्रंथिकाओं या गाँठ विकसित नही होती है. जीवाणु ग्रंथियों के विकास के बाद वायुमंडल की स्वत्रंता नाइट्रोजन का भूमि में स्थापना कार्य प्रारम्भ हो जाता है. जिसके फलस्वरूप बरसीम के पौधे नाइट्रोजन सम्बन्धी आवश्यकता स्वतंत्र रूप से पूर्ण करते रहते है.

स्फूर (50 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) तथा पोटाश (40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) तथा नत्रजन 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अनुमोदित मात्रा बुवाई से ठीक पहले अंतिम जुताई के समय देना चाहिए.

सिंचाई 

जहाँ खेत में पानी भरकर बुवाई की गई हो, वहां बुवाई के 4 से 5 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए. शीतकाल में 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करना चाहिये. मार्च महीने के बाद सिंचाई 12 से 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण 

बीज उत्पादन के लिए खरपतवार कासनी (Cuscuta intybus) को नियंत्रण करने के लिए डाईनोसेव एसिटेट (Dynoceb acetate) को एक किलोग्राम (सक्रीय अवयव) को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फसल सुरक्षा 

सामन्यतः चारे के लिए बरसीम में रोगों तथा कीड़ों का प्रकोप नही देखा गया है. कभी-कभी इस फसल में गेरुई रोग, जड़ सड़न या झुलसा रोग लग जाते है. इसके लिए बरसीम की प्रतिरोधी किस्में उगाना चाहिए.

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कटाई प्रबन्धन 

बरसीम चारे की बहु कटाई वाली फसल है. बरसीम की पहली कटाई 50 से 60 दिनों बाद करनी चाहिए, इसके बाद की कटाईयों को 30 से 35 दिन के अंतराल पर करते है. फरवरी से मध्य मई तक पौधों के शीघ्र वृध्दि के लिए कटाईयां 25 दिनों के अंतराल पर की जाती है. कटाई के समय इस बात का ध्यान देना चाहिए कि पौधे कम से कम भूमि से 6 से 10 सेमी० की ऊंचाई से काटें, जिससे दोबारा उगने में सहायक मुकुट के ऊपर स्थित कलिकाओं कोई छति न हो. इसके अलावा ऊपर से काटने पर नीचे की हरी पत्तियां बच जाती है जो कि प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट और अन्य पोषक तत्वों को उत्पादित करके दोबारा उगने में सहायक तत्वों का भी उत्पादन करती है.

विभिन्न कटाईयों में बरसीम की उपज (कुंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर)

कटाईयों की संख्या  1 2 3 4 5 6 कुल चारा कुंटल प्रति हेक्टेयर
हरा चारा  75-80 150-200 250-300 300-400 200-250 100-150 1075-1150

उपज (Berseem Farming)

उचित प्रबन्धन द्वारा 5 से 6 कटाइयों से बरसीम हरा चारा की उपज 1000 से 1200 कुंटल प्रति हेक्टेयर होती है. जिसमें 15 से 18 प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाया जाता है.

बीज की उपज 

उचित प्रबन्धन द्वारा बरसीम की खेती से 6 से 8 कुंटल बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon kisan) के बरसीम की खेती (Berseem farming)  से सम्बंधित लेख से आप सभी को पूरी जानकारी मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा बरसीम के फायदे से लेकर बरसीम की उपज तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी बरसीम की खेती (Berseem farming)  से सम्बंधित आप का कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामाएं, धन्यवाद, जय हिन्द. 

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3 COMMENTS

  1. सर जी नमस्कार मुझे बरसीम की बीच की आवश्यकता है और क्या रेट मिल सकता है और सुड़ेना घास भी क्या रेट मिल सकता है जो रबी की फसल में काम आते हैं जो भी बीज और मेरा होलसेल का काम है मैं बीच भेजता हूं

  2. सर जी नमस्कार मुझे बरसीम की बीच की आवश्यकता है और क्या रेट मिल सकता है और सुड़ेना घास भी क्या रेट मिल सकता है जो रबी की फसल में काम आते हैं जो भी बीज और मेरा होलसेल का काम है मैं बीच भेजता हूं

  3. सर जी नमस्कार मुझे बरसीम बीज की आवश्यकता है और क्या रेट मिल सकता है

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