Bamboo Farming – बांस की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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Bamboo Farming
बांस की खेती (Bamboo Farming) की पूरी जानकारी

बांस की खेती (Bamboo Farming) की पूरी जानकारी

किसान भाईयों नमस्कार, बांस एक महत्वपूर्ण वन उत्पाद है. इसका उपयोग क्षेत्र काफी ब्यापक है. किसान भाई बांस की खेती (Bamboo Farming) कर आप अच्छा मुनाफा कमा सकते है इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज के लेख में आप सभी को बांस की खेती (Bamboo Farming) की पूरी जानकारी देगा. वह भी अपने देश की अपनी भाषा हिंदी में.तो आइये जानते है बांस की खेती (Bamboo Farming) की पूरी जानकारी-

बांस का उपयोग (Bamboo Farming)

बांस के उत्पाद का निम्न क्षेत्र में उपयोग किया जाता है –

निर्माण कार्यों में 

बांस का प्रयोग इमारती लकड़ी के रूप किया जाता है. इसके अलावा भवन निर्माण के समय स्थाई रूप से मचान बनाने में, सीढ़ी बनाने में, पुलों में, छोटे जल मार्ग बनाने में बांस का प्रयोग किया जाता है. नाव एवं बेड़ा बनाने में भी बांस का उपयोग किया जाता है.

घरेलू उपयोगी वस्तु बनाने में

बांस के द्वारा मनुष्य के रोजना उपयोग में लायी जाने वाली विभिन्न उपयोगी बस्तुएं बनायी जाती है. इसके मुख्य उत्पाद बांस, जुआ, कुल्हाड़ी, औजार के हत्थे, जहाज आदि के किनारों पर बांधने में, चारपाई, छड़ी, टेंट के खम्बे, चक्र यंत्र, ब्रुश, पाइप, पंखे, खिलौने, छाता, वाद्य यंत्र, भाला, तीर, टोर्च आदि है. टोकरी डलिया बक्शे, फर्नीचर, चिक, चटाई, आदि उद्योगों के लिए बांस एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है. बांस की बनी चटाई पानी के जहाजों में प्रयोग में लाइ जाती है. बढ़िया बांस पानी में ख़राब नही होते है. इनका उपयोग मछली पकड़ने में किया जाता है. इसके अलावा बांस से पेन होल्डर, बोतल नापने के यंत्र, कलम, कुर्सी, मेज, रूल, स्क्रीन आदि वस्तुएं बनाने में करते है.

खाना व चारा के रूप 

कहीं-कहीं लोग इसके बीजों और नए प्ररोह को खाने व अचार-मुरब्बा बनाने में में भी करते है. इसके अलावा बांस की पत्तियां बैल, घोड़े एवं हाथी का पसंदीदा चारा है. साथ ही बांस का उपयोग कागज उद्योग, खेत की बाड़, भूमि कटाव, के लिए भी उपयोग किया जाता है.

औषधि के रूप में 

बांस के द्वारा प्राप्त ताबाशीर अथवा बांसलोचन से टॉनिक, दस्त रोकने वाली दवा, कामोद्दीपक औषधि आदि बनाने में किया जाता है.

बांस के प्रचलित नाम (Bamboo Farming)

बांस, बेम्बा, मनर बांस, नस बांस, बांस कबन (हिंदी), बम्बू (अंग्रेजी), कुल मुल्ला (मलयालम), मुंगल (तमिल), बोगुविदरू, पवेटी विदुरु, पोटू विदुरु (तेलगू), बांश (बंगाली).

उत्पत्ति एवं क्षेत्र (Bamboo Farming)

बांस का वानस्पतिक नाम डेन्ड्रोकेलेमस स्ट्रीकटस (Dendrocalamus srictus) है या ग्रेमिनी (gramineae) कुल का पौधा है. विश्व में बहुत से प्रकार के बांस के वंश पाए जाते है. जिनकी लगभग एक हजार जातियां है. विश्व में सबसे अधिक जातियां भारत में पायी जाती है. इनका जन्म स्थान भी यही है. इसके अलावा कुछ जातियां बाहर अन्य देशों की है. भारत में कुल बांस की जातियों की संख्या लगभग 115 है. भारत में ज्यादातर जातियां पूर्वी भागों में पाई जाती है इनमे अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल प्रमुख राज्य है. इसके अलावा बांस उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, जम्मू कश्मीर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि राज्यों में भी पाए जाते है.

जलवायु एवं भूमि (Bamboo Farning)

बांस की विभिन्न जातियां देश के लगभग हर भाग में भिन्न-भिन्न जलवायु एवं मृदा में पाई जाती है. यह सदाबहार वनों की जलवायु के साथ-साथ शुष्क क्षेत्रों में सफलता पूर्वक स्थापित की जा सकती है. बांस अच्छे जल निकास वाली वाली बलुई मिट्टी में अच्छी वृध्दि करता है. बांस की कुछ जातियों को पानी के निरंतर स्रोतों के समीप नम जगहों पर बलुई मिट्टी में अच्छी प्रकार उगाया जा सकता है.

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बांस की प्रजातियाँ (Bamboo Farming)

बांस की विभिन्न जातियां निम्नवत है-

बेम्बूसा ऑरनदिनेसी, बेम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेन्ड्रोकेलेमस स्ट्रीकटस, डेन्ड्रोकेलेमस हेमिलटोनी, मेलोकाना बेक्किफेरा, ऑकलेन्ड्रा ट्रावनकोरिका, ऑक्सीटिनेनथेरा एबीसिनिका, फाइलोंस्तेकिस बेम्बूसांइडिस, थाइरसोस्टेकिस ऑलीवेरी आदि प्रमुख है.

रोपण एवं प्रबन्धन (Bamboo Farming)

बांस के बीज 

बांस में फूल आने के बाद पूर्ण परिपक्व बीज प्राप्त करने के लिए पर्याप्त समय लगता है. जो कि कभी-कभी एक वर्ष लग जाता है. जब बीज पूर्ण रूप से पकने की स्थिति में होते है तो उस बांस के झुण्ड के नीचे घास आदि निकाल कर भूमि की सतह अच्छी तरह से साफ कर लेते है. इस तरह झुण्ड में से गिराने वाले बीज एकत्रित किये जा अकते है. बांस का बीज लगभग गेंहू के दाने के आकार का एवं वजन में कुछ हल्का होता है. एक किग्रा० में बीजों की संख्या लगभग 10,000 से 15,000 के मध्य होती है.

बीज जब पककर गिरने का समय होता है. तब बांस के आस-पास की भूमि में चूहे एवं गिलहरी की संख्या बढ़ जाती है. इसलिए बीजों की इनसे सुरक्षा अति आवश्यक है. बीजों को इकठ्ठा करके हवा से रहित थैली या टीन के डिब्बों में रखना चाहिए.

कायिक प्रवर्धन 

चूंकि बांस में बीज लम्बे समय के अंतराल पर प्राप्त होता है.इसलिए इसका कायिक प्रवर्धन प्रकन्द द्वारा किया जाता है. भूमिगत प्रकन्द को प्राप्त करने के लिए अच्छे प्रकार के विकसित बांस का चुनाव कर प्रकन्द की खुदाई करते है. प्रकन्द निकालते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रकन्द हष्ट-पुष्ट एवं उसी वर्ष वृध्दि प्राप्त किया हो. एक वर्ष की वृध्दि किये हुए विकसित प्रकन्द के 15 से 25 सेमी० लम्बाई के टुकडे को ऑफसेट कहा जाता है.इन टुकड़ों को पौधशाला में अच्छी प्रकार तैयार की गयी क्यारी में 30 X 30 सेमी० की दूरी पर लगाते है. कलमों के नए-नए कल्लों के जमीन से ऊपर आने तक क्यारी में नमी निरंतर बनी रहनी चाहिए. एक बात का ध्यान जरुर रखे इस प्रक्रिया के समय भूमि में कीटनाशक का जरुर प्रयोग करे. जिससे कीड़े एवं चूहे आदि प्रकन्द को खाकर नुकसान न पहुंचा सके.

बांस की नर्सरी तैयार करना 

पौधशाला में बीजों द्वारा बांस नर्सरी तैयार की जाती है.नर्सरी में 12 X 15 मीटर की क्यारी 30 सेमी० गहरी खुदाई कर इसमें गोबर की सड़ी खाद मिलाकर, सिंचाई की सुविधानुसार छोटी-छोटी क्यारियाँ बना लेना चाहिए. बुवाई से पहले बांस के बीजों को आठ घंटे पानी में भिगोकर रखते है. बाद में ऊपर तैरते बीजो को निकाल कर फेक देते है. जो बीज नीचे सतह पर होते है. उन्हें क्यारियों में बो दिया जाता है. 12 X 15 मीटर की क्यारी में लगभग आधा किलो बीज लगता है. क्यारियों में बोने से पहले बीज को बी० एच० सी० रसायन के चूर्ण से बीज को उपचारित करना आवश्यक है. बीज को चूहों से बचाने के लिए गैमेक्सीन का उपयोग करना चाहिए. अच्छी नमी बनाये रखने से 6 से 10 दिनों में अंकुरण हो जाता है. इन अंकुरित बीजो में दो से तीन सप्ताह में 15 से 20 सेमी० लम्बाई का थोडा मुड़ा हुआ प्रकन्द विकसित हो जाता है. फिर इन प्रकंदों को पालीथीन के थैलों में लगाकर समय-समय पर सिचाई करते रहे. जिससे प्रकंदों में नए कल्लों का विकास जल्दी हो जाय.

बांस के पौधों का रोपण 

बांस को रोपण खेतों के किनारे बाड़ के रूप में या खाली पड़ी जमीन पर किया जा सकता है. बांस की रोपाई करने के लिए 5 X 5 मीटर की दूरी उचित होती है. जिस भी जगह लगाना हो उस जगह को बरसात से पहले 5 X 5 मीटर की दूरी पर 0.3 X 0.3 X 0.3 मीटर के गड्ढे खोद लेना चाहिए. और तैयार प्रकंदों की रोपाई कर देनी चाहिए.

सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई 

रोपाई किये गए पौधों को निरंतर सिंचाई करते रहे जिससे जल्दी अच्छा विकास करे.नमी के अभाव में बांस के पौधों की वृध्दि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.

रोपाई के बाद एक वर्ष तक हर माह पौधे के आस-पास निराई-गुड़ाई कर घास व खरपतवार नही पनपने देना चाहिए. दूसरे वर्ष जनवरी-फरवरी माह में पौधों के पास दो मीटर की घेरे में 15 से 30 सेमी० गहरी गुड़ाई कर उल्टी कढाई आकार में मिट्टी चढा देनी चाहिए. इसी तरह तीसे वर्ष में भी यही कार्य दुहराना चाहिए.

बांस के पौधों के रोपण के बाद पहले तीन साल तक पौधे की देखभाल बहुत ही आवश्यक है. इससे प्रकन्द एवं प्ररोह दोनों लम्बाई व चौड़ाई में वृध्दि कर अच्छी तरह स्थापित हो जाते है.

कटाई एवं ध्यान रखने योग्य बाते 

बीजो द्वारा रोपाई किये गए बांस 6 साल बाद उपयोग के लिए तैयार होता है. बांस में नए-नए कल्लों का विकास हर वर्ष होता है.इसलिए दो या तीन सालों में पुराने कल्लों को काट लेना चाहिए.बांस के झुंडों की कटाई-छंटाई जलाई से अक्टूबर के मध्य में करनी चाहिए. इस समय करने से प्रकंदों का विकास एवं वृध्दि अच्छी होती है. इसके अलाव इस बात का ध्यान रखे कि कटाई करते समय बांस के प्रकंदों को नुकसान न पहुंचे साथ ही ये ऊपर खुले रूप में भूमि के ऊपर न आ जाए.

बांस के टुकड़ों से बांस काटते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

  • एक झुण्ड में छः बसों का होना जरुरी होता है.
  • दो या कम वर्ष के बांस नहीं काटने चाहिए.
  • भूमि की सतह से एक फुट उंचाई पर लगभग दूसरी गाँठ पर से बांस को काटना चाहिए.
  • जुलाई से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कांट-छांट नही करनी चाहिए.

बांस में लगभग 25 से 35 प्रतिशत तक नमी होती है. एक टन शुष्क बांसों की संख्या 700 तक हो जाती है. जबकि हरे बांस 500 के आस-पास आ जाते है.

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रोग एवं कीट (Bamboo Farming)

बांस में ज्यादा रोग या कीटों का प्रकोप नहीं होता है फिर भी कुछ बांस की जातियों में कुछ कवक रोग जैसे काला धब्बा आदि  तथा कुछ कीट जो बांस के कल्लों को नुकसान पहुचाते है.इनके उपचार के लिए आप कवकनाशी तथा कीटनाशी का उपयोग कर सकते है. इसके लिए आप नजदीकी कृषि रक्षा इकाई से भी संपर्क कर सकते है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) का बांस की खेती (Bamboo Farming) सम्बन्धित इस लेख से आप को सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा बांस के उपयोग से लेकर रोग एवं कीट तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी बांस की खेती (Bamboo Farming) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में आकर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट करकर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

 

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