Baby Corn Farming – शिशु मक्का की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) कैसे करे ?

शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) देश के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है. यह मक्का का शिशु रूप होता है. इसकी खेती कर किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख के जरिये शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज ले सके. तो आइये जानते है शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) की पूरी जानकारी-

शिशु मक्का के फायदे 

शिशु मक्का एक स्वादिष्ट व पौष्टिक आहार है. इसके अलावा पत्ती में लिपटी होने कारण कीटनाशक दवाइयों के प्रभाव से भी मुक्त होता है. शिशु मक्का में फास्फोरस की मात्रा अधिक मात्रा में होती है. साथ ही इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा व विटामिन भी उपलब्ध है. कोलेस्ट्रोल रहित एवं रेशों के अधिकता के कारण यह निम्न कैलोरी युक्त आहार है. जो ह्रदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होती है. शिशु मक्का का उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार एवं कैंडी, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी लड्डू, हलवा, खीर, इत्यादि के रूप में होता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

शिशु मक्का मक्के का ही अनिषेचित भुट्टा है, जो सिल्क आने के 2 से 3 दिन के अन्दर तोड़कर उपयोग में लाया जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से चीन और थाईलेंड में की जाती है. एशियाई देशों में इसकी खेती की बढ़ावा देने की जरुरत है. भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्णाटक, मेघालय तथा आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है.

जलवायु एवं भूमि 

शिशु मक्का की खेती के लिए हल्की गर्म आर्द्रता वाली जलवायु सर्वोत्तम होती है. गर्मी और बारिश का मौसम इस लिए सबसे उपयुक्त है. इसकी संकर किस्में साल में तीन से चार बार उगाई जाती है.

इसकी खेती मक्के की तरह सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है. लेकिन दोमट मिट्टी जो जीवांशयुक्त हो इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है.भूमि का पी० एच० मान 7 के आसपास होना चाहिए.

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उन्नत किस्में (Baby Corn Farming)

शिशु मक्का की मध्यम ऊंचाई वाली जल्दी तैयार होने वाली किस्में एवं एकल क्रास संकर का चयन करना चाहिए. एच० एम०-4 किस्म में शिशु मक्का के सभी लक्षण मौजूद होते है. कुछ अन्य प्रजातियाँ जैसे गंगा-5, गंगा सफ़ेद-2, गंगा-11, बी० एल०-42, प्रकाश, आजाद कमल आदि किस्मों को भी उगाया सकते है.

खेत की तैयारी (Baby Corn Farming)

शिशु मक्का की बुवाई के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा शेष 2 से 3 जुताइयाँ देशी हल, कल्टीवेटर या रोटावेटर द्वारा करके पाटा लगाकर खेत को अच्छी प्रकार तैयार करना चाहिए. बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी के साथ-साथ खेत पलेवा करके तैयार करना चाहिए.

बुवाई का समय  

शिशु मक्का की बुवाई उत्तर भारत में दिसम्बर एवं जनवरी महीनों को छोड़कर पूरे साल बुवाई की जा सकती है. उत्तर भारत में मार्च से मई महीने तक शिशु मक्का की मांग अधिक रहती है. इसके लिए जनवरी महीने के अंतिम सप्ताह में बुवाई करना उपयुक्त होता है. दक्षिण भारत में इसे पूरे साल उगाया जा सकता है. इसलिए बाजर में शिशु मक्का की मांग के समय को ध्यान में रखते हुए बुवाई की जाय तो अधिक लाभ प्राप्त होता है.

बुवाई की विधि 

शिशु मक्का की बुवाई मेड़ों के दक्षिणी भाग में करनी चाहिए. मेड़ से मेड़ एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी० X 15 सेमी० रखनी चाहिए. अधिक फैलने वाले पौधों की 60 सेमी० X 20 सेमी० दूरी रखना चाहिए.

बीज दर (Baby Corn Farming)

संकर किस्मों के टेस्ट भार के अनुसार प्रति हेक्टेयर 22 से 25 किग्रा० बीज दर उपयुक्त होती है.

बीजोपचार 

शिशु मक्का की बुवाई से पहले प्रति किग्रा० बीज में एक ग्राम बाविस्टीन तथा एक ग्राम कैप्टान मिला देना चाहिए. रसायन उपचारित बीज को छाया में सुखाना चाहिए. इस तरह मक्का के फसल को टी० एल० बी०, एम० एल० बी०, बी० एल० एस० बी० आदि बीमारियों से बचाया जा सकता है. तना भेदक से बचाव के लिए फिप्रोनिल 4 से 6 मिली० प्रति किग्रा० बीज में मिलाना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

शिशु मक्का की अच्छी उपज के लिए 8 से 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद एवं 150:60:60:25 किग्रा० प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस, पोटाश तथा जिंक सल्फेट का प्रयोग आवश्यक है. खरीफ में नाइट्रोजन को तीन भाग करके खेत में डालना चाहिए. पूरा फ़ॉस्फोरस, पूरा पोटाश, पूरा जिंक सल्फेट एवं 1/3 भाग नाइट्रोजन बुवाई के समय एवं 1/3 भाग बुवाई के 25 दिन बाद तथा शेष 1/3 भाग नाइट्रोजन 40 दिन बाद डालना चाहिए. रबी में नाइट्रोजन चार भाग में करके डालना चाहिए. 1/4 भाग नाइट्रोजन बुवाई के समय, 1/4 भाग 60 से 80 दिन के उपरांत तथा शेष नाइट्रोजन 80 से 110 दिन के बाद डालना चाहिए. बसंतकालीन शिशु मक्का में 1/4 भाग नाइट्रोजन बुवाई के समय 1/4 भाग नाइट्रोजन बुवाई के 25 दिन बाद, 1/4 भाग 40 से 45 दिन बाद तथा शेष 1/4 भाग नाइट्रोजन 60 से 65 दिन उपरांत डालना चाहिए.

खरपतवार प्रबन्धन 

शिशु मक्का की पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद तथा दूसरी 30 से 35 दिन बाद अवश्य करनी चाहिए. जिससे जड़ों में हवा का संचार होता है और दूर तक फैलकर भोज्य पदार्थ एकत्र करके पौधों को देती है. अधिक खरपतवार होने पर एट्राजीन 50 प्रतिशत डब्ल्यू० पी० 1.5 किग्रा० प्रति हेक्टेयर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर बीज के अंकुरण के पूर्व खेत में छिड़काव करना चाहिए.

सिंचाई प्रबन्धन (Baby Corn Farming)

शिशु मक्का की फसल एवं मौसम के अनुसार 2 से 3 सिंचाईयों की जरुरत होती है. पहली सिंचाई 20 दिन, दूसरी सिंचाई फसल के घुटने के ऊंचाई तक पहुँचने के समय व तीसरी फूल (झंडे) आने के पहले करनी चाहिए.

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फसल सुरक्षा 

शिशु मक्का में किसी तरह की बिमारी या कीट नही लगता है. क्योकि इसकी बाली पत्तियों में लिपटी रहने के कारण घातक कीट व बीमारी से मुक्त होता है.

झंडों को तोड़ना (डिटेसलिंग)

शिशु मक्का के झंडा बाहर दिखाई देते ही इसे निकाल देना चाहिए. इसे पशुओं को खिलाया जा सकता है.

तुड़ाई (Baby Corn Farming)

शिशु मक्का की गुल्ली को 3 से 4 सेमी०, सिल्क (जीरा) आने को तोड़ लेना चाहिए. गुल्ली तुड़ाई के समय के ऊपर की पत्तियों को नही हटाना चाहिए. पत्तियों को हटाने से ये जल्दी ख़राब हो जाती है. खरीफ में प्रति दिन एवं रबी में एक दो दिन छोड़कर गुल्ली की तुफ्दाई कर देनी चाहिए. एकल क्रास संकर मक्का में 3 से 4 तुड़ाई जरुरी है.

उपज 

इस प्रकार खेती करने से शिशु मक्का की छिलका रहित उपज 15 से 20 कुंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है. इसके अलावा 200 से 250 कुंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा भी प्राप्त होता है.

कटाई के उपरांत प्रबन्धन 

शिशु मक्का का छिलका सहित तोड़ाई करने के बाद प्लास्टिक की टोकरी, थैले या कंटेनर में रखकर तुरंत ही मंडी में पहुंचा दे.

अन्तः फसल (Baby Corn Farming)

खरीफ में हरी फली तथा चारा हेतु लोबिया, मूंग, तथा रबी में शिशु मक्का के साथ आलू, मटर, राजमा, मेथी, धनिया, गोभी, शलजम, मूली, गाजर आदि अन्तः फसल के रूप में लिया जाता है. इससे किसनों को अतरिक्त लाभ प्राप्त होता है.

विपणन 

शिशु मक्का की बिक्री बड़े शहरों की मंडियों में की जा रही है. कुछ किसान भाई इसको सीधे होटल, रेस्तरां, विभिन्न कंपनियों में बिक्री कर सकते है. विदेशों में इसके आचार और कैंडी की बहुत मांग रहती है. हरियाणा राज्य के पानीपत जिला से पचरंगा कंपनी द्वारा विदेशों में शिशु मक्का के अचार का निर्यात किया जा रहा है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है,गाँव किसान (Gaon Kisan)के इस लेख से शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) की सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा शिशु मक्का की खेती से लेकर विपणन तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी शिशु मक्का की खेती (Baby Corn Farming) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो आप कम्नेट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कम्नेट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

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