सतावर की लाभकारी खेती – Asparagus farming

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सतावर की लाभकारी खेती
सतावर की लाभकारी खेती

सतावर की लाभकारी खेती – Asparagus farming

नमस्कार किसान भाईयों, सतावर की खेती देश में विभिन्न भागों में की जाती है. इस औषधीय फसल का उपयोग औषधि के रूप में आदिकाल से होता आ रहा है. इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके की जाय तो अधिक लाभ कमाया जा सकता है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस में सतावर की लाभकारी खेती (Satavar ki kheti ki jaankari) की पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है सतावर की लाभकारी खेती की पूरी जानकारी –

सतावर के औषधीय फायदे 

सतावर की विभिन्न किस्में पायी जाती है. परन्तु औषधि के रूप सबसे अधिक उपयोग एसपेरेगस रेसीमोसर का किया जाता है. सतावर के कंदों का उपयोग शक्ति वर्धक, महिलाओं तथा पशुओं का दूध बढाने, शारीरक दर्द, चर्म रोग, बुखार इत्यादि के उपचार में किया जाता है.

क्षेत्र एवं विस्तार 

सतावर का वानस्पतिक नाम (Asparagus racemosus) है. यह लिलियसी कुल का पौधा है. इसकी उत्पत्ति एशिया द्वीप समूह में हुई है. भात में यह अरुणाचल प्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरला और पंजाब आदि राज्यों में इसकी खेती की जा सकती है. भारत के अलावा अफ्रीका, श्री लंका, चीन, नेपाल, बांग्लादेश, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया भी पायी जाती है.

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भूमि एवं जलवायु 

सतावर की खेती अधिक ठन्डे स्थानों को छोड़कर सभी स्थानों पर की जा सकती है. देश कई राज्यों में इसकी खेती सफलतापूर्वक कर सकते है. इसके लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु अधिक उपयुक्त होती है. यह 50 डिग्री से तापमान तक हो सकती है.

हल्की तथा गर्म मिट्टी जो कंदों के विकास को अवरूध्द न करे अधिक उपयुक्त मानी जाती है. मार और काबर भूमि में भी गड्ढे खोदकर गोबर की खाद और हल्की मिट्टी अथवा रेत मिलाकर आसानी से उगा सकते है.

खेत की तैयारी 

खेत की गहरी जुताई करके 60-60 सेमी० की दूरी पर एक फिट गहरे गड्ढे की खुदाई कर खाद और मिट्टी से भराई कर दे.

बीज एवं बीज दर 

सतावर के पौधे प्रायः बीज द्वारा तेयार कर रोपण किया जाता है. सतावर का रोपण पुराने पौधे से प्राप्त डिस्क अथवा खुदाई के समय प्राप्त अंकुरों का भी उपयोग रोपण हेतु किया जा सकता है.

प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किग्रा० बीज की आवश्यकता होती है. जिसमें करीब 40 प्रतिशत अंकुरण होता है.

रोपण विधि एवं दूरी 

पौध का रोपण 60 सेमी० की दूरी पर मेढ़ों अथवा गड्ढों में करना चाहिए.

रोपण समय 

वर्षाकाल रोपण के लिए उपयुक्त माना जाता है. इसलिए यदि रोपण मध्य जुलाई तक कर लिया जाय तो लताओं की बढवार और कन्द का विकास अच्छा होता है.

सिंचाई 

प्रायः इसकी खेती असिंचित दशा में की जाती है. परन्तु सिंचाई करने पर अच्छी पैदावार प्राप्त होती है. वर्षा को छोड़कर प्रत्येक माह एक सिंचाई करने पर उत्पादन में आशातीत वृध्दि प्राप्त की जा सकती है.

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खुदाई  

फसल रोपण के 24 से 40 माह बाद फसल की खुदाई की जाती है. खुदाई का उपयुक्त समय अप्रैल-मई का महीना उपयुक्त होता है. तब तक लताओं पर लगे बीज पाक चुके होते है. खुदाई के पूर्व यदि सिंचाई की व्यवस्था हो तो सिंचाई कर देनी चाहिए. जिससे खुदाई का कार्य आसान हो जाता है.

उपज 

कंदों को निकाल कर उनके ऊपर के छिलके को चाकू की सहायता से अलग कर छायादार स्थान में सुखा लेना चाहिए.

24 माह की फसल से प्रति हेक्टेयर औसतन 625 कुंटल गीली तथा 10 प्रतिशत सूखी अर्थात 62.5 कुंटल जड़ों की प्राप्ति होती है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उमीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से सतावर की लाभकारी खेती की पूरी जानकारी मिल पायी होगी. फिर भी अगर आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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