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लैवेंडर की उन्नत खेती – Lavender farming

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लैवेंडर की उन्नत खेती - Lavender farming

लैवेंडर की उन्नत खेती – Lavender farming

नमस्कार किसान भाईयों, लैवेंडर की उन्नत खेती (Lavender farming) देश के कई राज्यों में की जाती है. इसका औषधीय उपयोग होने से इसकी खेती में काफी लाभ कमा सकते है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में लैवेंडर की उन्नत खेती (Lavender farming) के बारे में पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमा सके. तो आइये जानते है लैवेंडर की उन्नत खेती (Lavender farming) की पूरी जानकारी-

लैवेंडर के फायदे 

लैवेंडर का उपयोग बड़े पैमाने पर जड़ी बूटियों के रूप में किया जाता है. इससे बनी दवा का उपयोग बैचेनी, अनिद्रा, घबराहट, डिप्रेशन, भूख न लगना, उल्टी, सिरदर्द, दांत दर्द, मोच, नसों में दर्द, जोड़ों में दर्द, मुहांसे और कैंसर सम्बन्धी रोगों में किया जाता है. इसके अलावा इसका उपयोग कॉस्मेटिक एवं ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी किया जाता है. इससे साबुन, इत्र, रूम फ्रेशनर आदि. इसके फूलों का उपयोग सजावट के लिए भी किया जाता है. इसलिए इसकी बाजार में मांग अधिक रहती है.

क्षेत्र एवं विस्तार 

लैवेंडर का वैज्ञानिक लैवेंडुला (Lavandula) है. यह लेमिआसे (Lamiaceae) परिवार का सदस्य है. विश्व में इसकी खेती मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय देशों (इटली, फ़्रांस,स्पेन) के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि देशों में की जाती है. भारत में इसकी खेती कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में आदि राज्यों में की जाती है.

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जलवायु एवं भूमि 

लैवेंडर की उन्नत खेती के लिए ठन्डे मौसम एवं गर्मी के मौसम में सामान्य गर्म जलवायु उपयुक्त होती है. इसके पौधों के अच्छे विकास के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त होता है.लेकिन गर्मियों के लिए तापमान 20 से ३० डिग्री के बीच होना चाहिए.

इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. लेकिन भूमि में उचित मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होने चाहिए. क्षारीय भूमि में इसकी फसल से अधिक मात्रा में तेल पाया जाता है. भूमि का पी० एच० मान 7 से 8 के मध्य का होना चाहिए. भूमि से उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए.

उन्नत किस्में 

लैवेंडर की उन्नत किस्मों में भोर-ए-कश्मीर, मेलिसा लिलाक, काजन लुक, हेमस, ऐरामा, कारलोवो, स्वेटजैस्ट, वैनेस्ट आदि प्रमुख है.

खेत की तैयारी 

लैवेंडर की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी अच्छी प्रकार करनी चाहिए. इसके लिए खेत की अच्छी प्रकार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा और समतल बना लेना चाहिए. एक बार इसका पौधा लगाने के बाद कई वर्षों तक इसकी फसल ली जाती है.

खाद एवं उर्वरक 

लैवेंडर की अच्छी उपज के लिए खाद को खेत की तैयारी के समय ही 2 से 3 बार डालना चाहिए. इस बात का ध्यान अवश्य रखे खेत में खाद एवं उर्वरक मिट्टी जांच के बाद ही डाले.

खेत की तैयारी के समय लगभग 6 टन गोबर की सड़ी खाद एवं 8 किलो नाइट्रोजन, 16 किलो फ़ॉस्फोरस और 16 किलो पोटाश प्रति एकड़ की दर से बुवाई के पहले खेत में डाल देना चाहिए. इस बात का ध्यान अवश्य रखे इसकी अच्छी उपज के लिए फसल की हर कटाई के बाद खाद एवं उर्वरक की बताई गयी मात्रा का 1/4 भाग डाले.

बीजोपचार 

लैवेंडर की फसल को भूमि जनित रोगों से बचाने के लिए बीजोपचार जरुर करना चाहिए. इसके लिए बीज को बुवाई से पहले कैप्टान या थीरम से 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

नर्सरी की तैयारी 

लैवेंडर की नर्सरी की तैयारी नवम्बर से दिसम्बर सबसे उपयुक्त समय है. इसकी नर्सरी बीज और कटिंग दोनों माध्यम से तैयार कर सकते है.

कटिंग के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए एक या दो साल पुराने पौधों की शाखाओं का चयन करें.

नर्सरी के लिए भूमि तैयार करने के वक्त उचित मात्रा में जैविक खाद एवं उर्वरक जमीन सतह से उभरी हुई क्यारियाँ तैयार कर उपचारित बीज की बुवाई करे.

इस बात का ध्यान अवश्य रखे नर्सरी में बीज बुवाई के वक्त तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए, अन्यथा बीज का अंकुरण नही होगा.

रोपाई का उचित समय एवं विधि

लैवेंडर के पौधे की रोपाई का उचित समय अप्रैल का महीना होता है. लेकिन आप इसकी रोपाई किसी भी महीने में कर सकते है.

इसके पौधों की रोपाई 120 X 40 सेंटीमीटर की दूरी पर करना उचित होता है.

सिंचाई

लैवेंडर की फसल की सिंचाई इसकी रोपाई के तुरंत बाद में करनी चाहिए. इसके अलावा इसकी फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए. फसल को जलभराव से बचाना चाहिए. नहीं तो रोग लगाने की संभावना बढ़ जाती है.

खरपतवार नियंत्रण

लैवेंडर की अच्छी उपज के लिए रोपाई के 20 से 25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चहिये. इसके बाद आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. इसके अलावा पौधों के अच्छे विकास के लिए प्रत्येक कटिंग के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए.

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फसल कटाई 

लैवेंडर की फसल कटाई का मुख्य समय जुलाई माह से अगस्त माह तक का होता है. इसके पौधे पर फूल पहले साल ही आने लगते है. लेकिन अच्छी उपज तीन वर्ष बाद प्राप्त होती है. इससे पहले इसकी पैदावार काफी कम होती है. इसके पौधे से तीन साल बाद लगभग 4 से 5 साल तक अच्छी पैदावार प्राप्त होती है.

लैवेंडर के पौधों में जब लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा फूल खिल चुके हो, उसके बाद इसे हंसिये से जमीन से कुछ सेंटीमीटर ऊपर इसकी कटाई करनी चाहिए. इस बात का ध्यान रखे काटी गई शाखाओं की लम्बाई फूल सहित लगभग 10 से 12 सेंटीमीटर से कम नही होनी चाहिए.

लैवेंडर की उपज 

लैवेंडर की फसल की उपज मिट्टी, जलवायु, उन्नत किस्में आदि कारको पर निर्भर करता है. इसके फसल से पहले दो वर्ष कम उत्पादन प्राप्त होता है. जिसमें तेल की मात्रा 1.2 से 1.5 प्रतिशत तक होता है.

किसान भाइयों उम्मीद है लैवेंडर की उन्नत खेती के बारे में इस लेख के माध्यम आप जान पाए होगे. यह जानकारी आपको कैसी लगी कमेन्ट कर जरुर बातये. इसके अलावा इस जानकारी को आप सोशल मीडिया पर जरुर शेयर करे, जिससे यह जानकारी अधिक से अधिक लोगो तक पहुँच सके.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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