बैंगन के कीट रोग एवं उनका प्रबंधन कैसे करे ?

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बैंगन के कीट रोग
बैंगन के कीट रोग एवं उनका प्रबंधन

बैंगन के कीट रोग एवं उनका प्रबंधन

नमस्कार किसान भाईयों, बैगन की खेती देश के सभी भागों की जाती है. लेकिन बैंगन के कीट रोग द्वारा फसलों को काफी हानि पहुंचती है जिससे उपज को नुकसान पहुंचता है. जिससे किसानों को घाटा हो जाता है. इसलिए गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख में बैंगन के कीट रोग एवं उनका प्रबन्धन कैसे करे ? जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई अपनी उपज को हानि से बचा सके और अच्छा लाभ कमा सके. तो आइये जानते है, बैंगन कीट एवं रोग प्रबंधन कैसे करे ?

बैंगन के प्रमुख कीट 

तना बेधक कीट

बैंगन के इस कीट की इल्लियाँ पौधे को हनो पहुंछाती है. जो पौधों के तनों में प्रवेश कर उसके कोमल भागों को खा जाती है. जिससे भोजन का प्रवाह रुक जाता है.

जैसिड कीट

इस कीट के प्रौढ़ तथा शिशु बैंगन के पौधे की कोमल पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते है. जिसके फल स्वरूप पत्तियां पीली या भूरी पड़ जाती है. तथा पौधों की वृध्दि प्रभावित होती है.

हड्डा बीटिल

इस कीट के ग्रब तथा प्रौढ़ पत्तियों को खुरचते हुए खाकर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर देते है. अधिक प्रकोप पर पत्तियों में सिर्फ शिरारों से ही शेष बचती है. ‘

जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि

इस सूत्रकृमि कीट से बैंगन की फसल को अत्याधिक क्षति पहुंचती है. सूत्रकृमि के प्रकोप से पौधों की जड़ों में छोटी-छोटी गांठे बन जाती है. जिससे पौधे को पोषक तत्वों की उचित मात्रा प्राप्त नही हो पाती है. पत्तियां पीली पड़ जाती है. तथा पौधे की बढ़वार रुक जाती है. फलतः पौधों में फल कम संख्या में लगते है.

फल बेधक कीट

बैंगन के इस कीट के गिडार पौधों के शीर्ष भागों में छेदकर घुस जाते है. जिससे शिखाएं कुम्हलाने एवं सूखने लगती है. बाद में कीड़ा फलों में छेदकर फसल को गंभीर नुकसान पहुंचता है. कीट द्वारा छेदित फलों को साफ़ पहचाना जा सकता है.

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बैंगन के प्रमुख रोग

आल्टरनेरिया पत्र दाग

बैंगन के इस रोग से पत्तियों पर गोलाकार या अनियमित धब्बे बनते है. जो हल्के रंग के होते है.

जड़ एवं तना गलन रोग

इस रोग से प्रभावित पौधे की जड़ एवं तने का वाहय ऊतक पत्रिका मध्य शिरा व फल का मृद सडन हो जाता है. तथा प्रभावित फल का पूरा बीज नष्ट हो जाता है.

लीटिल लीफ

यह रोग कारक माइकोप्लाज्मा (विषाणु की तरह) यह लीफ हापर (फुदका) नामक कीट से फैलता है. पौधे छोटे रह जाते है. तथा पत्तियां ज्यादा निकलती है. जो छोटी और गुच्छे में रहती है.

फामोप्सिस ब्लाइट

इस रोग के कारक फामोप्सिस वेक्सांस है. इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के अनियमित आकार के गोल धब्बे बन जाते है. फूलों पर पीले रंग के धब्बे बनते है. फल के अन्दर  का भाग सड़ जाता है. तथा धब्बे के ऊपर काले बिंदु आकार के कवक की बढवार दिखाई देती है. इस प्रकार यह रोग पौधे के लगभग सभी भागों पर अपना प्रभाव डालता है.

पद गलन 

यह रोग फाइटोफथोरा या पिथियम कारक के कारण होता है. यह रोग पौधों में नर्सरी अवस्था में ही लगता है. अंकुरण के पूर्व या बाद में जमीन के समीप तना सड़ने लगता है. जिससे पौधा एक तरफ गिर जाता है.

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बैगन के कीट एवं रोग प्रबंधन 

  • खेत में फसल काटने के पश्चात बचे अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. जिससे उसमें विद्यमान फफूंदी के विषाणुओ से स्वस्थ पौधे संक्रमित न हो जाय.
  • गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए. जिससे नाशीजीवों के अवशेष सीधे सूर्य प्रकाश में आकार नष्ट हो जाते है.
  • निम्न प्रतिरोधी प्रजातियां बोनी चाहिए – बनारस जाइंट, विजय हाइब्रिड, बनारस जाइंट, आजाद हाइब्रिड, पूसा भैरव (यह प्रजातियाँ जड़ गाँठ सूत्रकृमि फामोप्सिस ब्लाइट आदि में फायदेमंद होता है)
  • इसके अलावा प्ररोह तथा फलबेधक तथा हड्डा बीटिल से प्रतिरोधी किस्मों में पूसा कान्ति, पूसा पर्पल लॉन्ग, डोली-5, आजाद-पी-1, पंत रितुराज प्रमुख किस्में है.
  • सूत्रकृमि से बचाव के लिए डीडी या नेमागान से भूमि ध्रूमण करना चाहिए.
  • बैंगन के साथ गेंदा की सहफसली खेती करने से भी सूत्रकृमि की समस्या से बचा जा सकता है.
  • उचित जल निकासी वाली भूमि में नर्सरी लगानी चाहिए. जिससे डैम्पिग ऑफ बीमारी से बचाव हो सके.
  • बीज को ट्राइकोडरमा से शोधित करके बोने से बीज जनित रोगों के फसल का बचाव होता है.
  • हड्डा बीटिल के ग्रब को हाथों से इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए.
  • रस चूसने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए चिपकाने वाले ट्रैप का प्रयोग करना चाहिए.
  • परभक्षी कीटों, जैसे काकसीनेलिड (लेडी वर्ड बीटिल), ड्रेगनफ्लाई लकड़ी, परभक्षी माईट आदि का संरक्षण करना चाहिए.
  • ट्राइकोडरमा किलोनिस के बेने ट्राइकोकार्ड 20,000 कीट संख्या प्रति कार्ड एकड़ की दर से प्रयोग करने से तना एवं फल बेधक कीट का नियंत्रण किया जा सकता है.
  • जड़ एवं तना गलन की रोकथाम के लिए दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू०पी० 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे.
  • फामोप्सिस ब्लाइट से बचाव के लिए बुवाई के पूर्व कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा० की दर से बीज शोधन तथा बाद में पौधों की जड़ को 0.05 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में डुबाना चाहिए.
  • लीटिल लीफ के बाच के लिए टेट्रासाइक्लिन 0.05 प्रतिशत घोल से पौधे को 20 मिनट तक शोधित कर लगाते है. तथा 15 दिन के अंतराल पर इसका छिड़काव करते है.

यदि बैंगन में कीटों का अधिक प्रकोप है तो निम्न रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है. 

कीट  संस्तुत रसायन  मात्रा/हेक्टेयर 
प्ररोह एवं फली भेदक, फदका कीट इंडोसल्फान 35 ई० सी०,  बी० टी० (डिपेल 8 एल०) 1.5 ली०, 1.0 कि० ग्रा०
एपीलेकना बीटिल इंडोसल्फान 35 ई० सी०, कार्बरिल 50 डब्ल्यू० पी० 1.25 किग्रा०, 2.0 किग्रा०
जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि फोरेट 10 जी०, नीम केक 10 किग्रा०/हेक्टेयर, 1-2 कुंटल/हेक्टेयर

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon kisan) के इस लेख से बैंगन के कीट रोग और प्रबन्धन सम्बंधित सभी जानकारियां आप को मिल पायी होगी. फिर भी इससे सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा आपको यह लेख कैसा लगा कमेन्ट बॉक्स में कमेंट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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